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इस्लाम असहाय!

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मुसलमान अब अशक्त हैं। 9/11 से सात अक्टूबर 2023 के मध्य इस्लाम ने दुनिया को जैसा हैरान, परेशान किया था वह खत्म है। तभी कश्मीर, केरल का मुसलमान हो या पाकिस्तान, इंडोनेशिया का या उलनबटोर व अमेरिका और यूरोप तथा अफ्रीकी-अरब देशों का, सभी फड़फड़ा रहे हैं लेकिन कुछ नहीं कर सकते। कोई साथ नहीं दे रहा। किसने सोचा था कि मुट्ठी भर यहूदी उस अरब-खाडी क्षेत्र में कहर बन कर बरपेंगे जो इस्लाम का जन्मस्थान है? जबकि इतिहास में दास्तां यहूदियों की असहायता की है।

लेकिन उन्हें 1948 में इजराइल नाम का छोटा देश मिला तो तब से वे प्रमाणित करते हुए हैं कि इस्लाम जैसा पिलपिला, असहाय धर्म कोई नहीं है! यों हम हिंदुओं का भी ज्ञात इतिहास भयाकुलता का है, गुलामी का है। लेकिन इस्लाम में तो आज हद है। दुनिया भर में इस्लामी कट्टरता की घुट्टी बांटने वाला, ओसामा बिन लादेन, बगदादी जैसे आतंकी, जिहादी पैदा करने वाले सऊदी अरब के मुंह से भी एक वाक्य इजराइल को हड़काने का नहीं है!

सोचें, सऊदी अरब, ईरान, इराक सहित 58 देशों के इस्लामी संगठन ओआईसी ने अस्सी साल फिलस्तीनियों के हक का राग आलापा। पीएलओ से लेकर हमाम, हिजबुल्लाह जैसे असंख्य लड़ाकों-आतंकी संगठनों को पाला पोसा। तमाम अरब देशों की विशाल पैदल सेना तथा एटमी महाशक्ति के बड़बोले पाकिस्तान, महाअमीर सऊदी अरब, खाड़ी देश, तालिबानी, ईरान के क्रांतिकारी और मिस्र, जोर्डन, तुर्की आदि मुस्लिम देश कब से इजराइल को मिटाने की कसम खाएं हुए हैं।

जिहादियों ने अमेरिका, यूरोपीय देशों के खिलाफ खूब धमाके किए लेकिन कुल नतीजा क्या है? इजराइल लगातार इन्हें नाक रगड़वाता हुआ है। सात अक्टूबर 2023 को जब हमास ने आतंकी हमला किया तब दुनिया के कितने मुसलमान उछले थे लेकिन आज वे सब किस मनोदशा में होंगे? 58 इस्लामी देशों के संगठन में इतनी भी हिम्मत नहीं है जो अपने ही सदस्य देशों से वह इजराइल के आर्थिक बहिष्कार या उस पर पाबंदियों का फैसला थोपे।

तब कथित मुस्लिम ब्रदरहुड कहां और क्या है? सऊदी अरब, मिस्र, वहाबी या शिया अयातुल्लाह आदि फतवे देने वाले धर्मगुरू कहां हैं? सऊदी अरब का बादशाह हो या दुनिया भर के वैश्विक इस्लामी स्कॉलर कहां मुंह छुपाए हुए हैं। इन सबने पश्चिमी सभ्यता, ईसाईयत, हिंदू, बौद्ध आदि तमाम धर्मों और सभ्यताओं की तुलना में इस्लामी ताकत और श्रेष्ठता, एकजुटता का जो डंका बनाया हुआ वह क्या खोखला साबित नहीं है? सात अक्टूबर 2023 से सात अक्टूबर 2024 के एक वर्ष में इस्लाम ने क्या यह प्रमाणित नहीं किया है कि थोथा चना बाजे घना!

इस्लाम का सिर्फ और सिर्फ अब एक अर्थ बचा है। वह संख्या, आबादी और भीड़ में दुनिया की नंबर एक पैदल सेना (वह भी पीठ पीछे से, हुजूम, आतंकी हमलों, पत्थरबाजी) में भले नंबर एक बने लेकिन वह बुद्धि, ज्ञान-विज्ञान, सत्य तथा विवेक में समर्थ नहीं होगी। पेट्रोल-गैस बेचकर महाअमीर सऊदी अरब, दुबई, कतर आदि सभी यदि इजराइल के आगे मुंह चुराते हुए हैं तो इस्लाम की पैदल सेना का भविष्य तो वही होगा जो हिजबुल्लाह, फिलस्तीनी, इराकी, ईरानी, तालिबान, पाकिस्तान के अनुभव हैं।

खासकर भविष्य के इस सिनेरियो में कि आने वाले दशकों में हर मुसलमान एआई के जरिए कैमरों की नेटवर्किंग, महीन और अचूक निगरानी, वैश्विक आईटी-सोशल मीडिया कंपनियों के जाले में फंसा होगा। जैसे इजराइल इन दिनों अपनी तीसरी आंख से सीरिया, लेबनान, गाजा, वेस्ट बैंक, ईरान, यमन सभी तरफ घरों में एक-एक चेहरे को चिन्हित कर, पकड़, उन पर निशाना साध उन्हें मार रहा है।

इसलिए मेरा मानना है कि इक्कीसवीं सदी में 9/11 से आने वाले 2025 के पच्चीस वर्षों में यदि इस्लाम दुनिया की नंबर एक समस्या रहा और आतंकवाद के खिलाफ वैश्विक जंग जो की उथल पुथल हुई तो वह समय आगे नहीं। खत्म। इजराइल और उसके नेतन्याहू ने बताया है कि करोड़ों की नफरती भीड़ के आगे पौने दो लाख लोगों की सेना भी बहुत है, बशर्तें वह बुद्धि, तकनीक, इरादों में पुख्ता हो। और बर्बरता को निष्ठुरता से खत्म किया जाना चाहिए। और इस्लाम के मामले में बाकू सभ्यताओं का मौन एका है।

इजराइल के पीछे अमेरिका और पश्चिमी सभ्यता है तो रूस और चीन भी दिखावे के लिए भले ईरान के साथ हैम लेकिन इजराइल से पंगा नहीं ले रहे हैं। इजराइल चाहे जो कर रहा है और अमानवीयता की हद तक कर रहा है मगर गलत इसलिए नहीं माना जा रहा है क्योंकि आतंकी जब अमानवीय हैं तो उससे ऐसे ही निपटा जाएगा। ऐसा रूस ने चेचेन्या में किया तो चीन अपने मुस्लिम इलाके शिनजियांग में करता है!

इसका अर्थ यह नहीं कि इस्लाम की जिद्द और पैदल सेना बिखरनी है। उसे अपने पर इसलिए भरोसा है क्योंकि उसकी भीड़ लगातार बढ़ रही है। 1948 के मुकाबले इजराइल अब मुस्लिम पैदल सेना से कई गुना अधिक घिरा हुआ है। ईरान-इराक, फिलस्तीन, सीरिया, लेबनान, मिस्र में इतनी अधिक मुस्लिम आबादी और लड़ाके हैं कि यदि कुल इस्लामी पैदल सेना का उसके साधनों, अमीरी, हथियारों और भीड़ से हिसाब लगाएं तो इजराइल चींटी जैसा लगेगा। लेकिन वह बुद्धि, ज्ञान-विज्ञान, तकनीक तथा बौद्धिक ईमानदारी से संचालित है। ये कसौटियां ही भविष्य में निर्णायक होंगी। इनकी बौद्धिक ईमानदारी के अनुष्ठानों से ही धर्म, नस्ल और सभ्यता का मान, गरिमा व भविष्य है।

By हरिशंकर व्यास

मौलिक चिंतक-बेबाक लेखक और पत्रकार। नया इंडिया समाचारपत्र के संस्थापक-संपादक। सन् 1976 से लगातार सक्रिय और बहुप्रयोगी संपादक। ‘जनसत्ता’ में संपादन-लेखन के वक्त 1983 में शुरू किया राजनैतिक खुलासे का ‘गपशप’ कॉलम ‘जनसत्ता’, ‘पंजाब केसरी’, ‘द पॉयनियर’ आदि से ‘नया इंडिया’ तक का सफर करते हुए अब चालीस वर्षों से अधिक का है। नई सदी के पहले दशक में ईटीवी चैनल पर ‘सेंट्रल हॉल’ प्रोग्राम की प्रस्तुति। सप्ताह में पांच दिन नियमित प्रसारित। प्रोग्राम कोई नौ वर्ष चला! आजाद भारत के 14 में से 11 प्रधानमंत्रियों की सरकारों की बारीकी-बेबाकी से पडताल व विश्लेषण में वह सिद्धहस्तता जो देश की अन्य भाषाओं के पत्रकारों सुधी अंग्रेजीदा संपादकों-विचारकों में भी लोकप्रिय और पठनीय। जैसे कि लेखक-संपादक अरूण शौरी की अंग्रेजी में हरिशंकर व्यास के लेखन पर जाहिर यह भावाव्यक्ति -

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