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किसानों से किया वादा कब पूरा होगा

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पंजाब और हरियाणा के शंभू बॉर्डर पर धरने पर बैठे किसानों के धरने के 10 महीने हो गए। दूसरी सर्दियां आ गईं लेकिन केंद्र सरकार के कानों पर जूं नहीं रेंग रही है। उलटे हरियाणा की भाजपा सरकार इस तैयारी में है कि अगर किसानो ने शंभू या खनौरी ब़ॉर्डर पर से एक कदम भी दिल्ली की ओर बढ़ाया तो उनकी टांगें तोड़ देंगे। 101 किसानों का जत्था लेकर दिल्ली की ओर कूच करने का तीन बार प्रयास किया गया लेकिन घग्गर नदी के पुल पर ही हरियाणा पुलिस ने किसानों को रोक दिया। हरियाणा पुलिस के अधिकारी के कह रहे हैं कि किसान दिल्ली जाने की परमिशन दिखाएं।

ज्ञात इतिहास में संभवतः कभी ऐसा नहीं हुआ कि देश के नागरिकों को राजधानी जाने के लिए परमिशन लेने की जरुरत हो। लेकिन दुनिया के सबसे बड़े लोकतंत्र में किसानों से इस बात के सबूत मांगे जा रहे हैं कि अगर दिल्ली में कहीं बैठ कर उनको प्रदर्शन करने की अनुमति मिली हो तभी उनको दिल्ली जाने दिया जाएगा। इधर दिल्ली में यह सुनिश्चित कर दिया गया है कि किसी को भी प्रदर्शन करने की अनुमति नहीं देनी है। अगर अनुमति नहीं है तब भी कोई पुलिस या प्रशासन नागरिकों को दिल्ली आने से नहीं रोक सकता है लेकिन किसान रोके जा रहे हैं। देश की न्यायपालिका में भी इस बात की फिक्र नहीं है कि लोगों को देश के किसी भी हिस्से में आने जाने के मौलिक अधिकार को बाधित किया जा रहा है।

सवाल है कि किसान क्यों दिल्ली आना चाहते हैं? अपना कामकाज, खेती किसानी छोड़ कर वे दिल्ली इसलिए आना चाहते हैं क्योंकि सरकार ने दिल्ली की सीमा पर हुआ किसानों का आंदोलन खत्म कराने के लिए कुछ वादे किए थे, जिन्हें पूरा नहीं किया गया है। गौरतलब है कि देश भऱ के किसानों ने केंद्र सरकार के बनाए तीन केंद्रीय कानूनों के खिलाफ दिल्ली की सीमाओं पर प्रदर्शन किया था। आंदोलन शुरू होने के ठीक एक साल बाद प्रधानमंत्री ने खुद टेलीविजन चैनलों पर आकर ऐलान किया कि सरकार तीनों केंद्रीय कृषि कानूनों को वापस लेती है। हालांकि तब भी प्रधानमंत्री ने नहीं माना कि कानूनों में कुछ गड़बड़ी है। उन्होंने कहा कि उनकी तपस्या में कुछ कमी रह गई होगी और वे किसानों को समझा नहीं पाए कि यह कानून उनके हित में है। बहरहाल, चाहे जिस कारण से हो लेकिन सरकार पीछे हटी।

उस समय किसान आंदोलन खत्म करने के लिए संयुक्त किसान मोर्चा के साथ जो बातें हुई थीं उसमें सरकार ने वादा किया था कि वह किसानों की फसलों के न्यूनतम समर्थन मूल्य यानी एमएसपी की कानूनी गारंटी करेगी। यानी ऐसा कानून लाया जाएगा, जिसमें प्रावधान होगा कि एमएसपी से कम कीमत पर फसलों की खरीद बिक्री नहीं हो सकेगी और उससे कम पर खरीद बिक्री करने वालों को सजा मिलेगी। लेकिन 2021 के अंत में किसान आंदोलन खत्म करने के बाद सरकार इस वादे को भूल गई। अब किसान उसको यह वादा याद दिला रहे हैं और दिल्ली आना चाहते हैं लेकिन सरकार उनको दिल्ली नहीं आने दे रही है। पंजाब और हरियाणा के शंभू बॉर्डर पर किसान 10 महीने से बैठे हैं तो खनौरी बॉर्डर पर एक महीने से किसान नेता जगजीत सिंह डल्लेवाल आमरण अनशन पर बैठे हैं। वे मरणासन्न हैं लेकिन किसी को परवाह नहीं है।

किसानों के साथ सिर्फ यह धोखा नहीं है कि 2021 के नवंबर में उनसे कहा गया कि एमएसपी की कानूनी गारंटी देंगे और नहीं दी गई, बल्कि उससे पहले उनसे कहा गया था कि 2022 तक उनकी आय दोगुनी कर दी जाएगी। लेकिन आय की बजाय कृषि पैदावारों की उत्पादन लागत दोगुनी से ज्यादा हो गई है। किसानों का संकट जस का तस है। तभी पंजाब और हरियाणा के किसान आंदोलित हैं तो उत्तर प्रदेश के किसान भी आंदोलन कर रहे हैं। कहीं भूमि अधिग्रहण की गड़बड़ियां हैं, तो कहीं कर्ज माफी को लेकर वादाखिलाफी है तो कहीं एमएसपी को लेकर चिंता है। किसानों की दशा ठीक करने के लिए दीर्घावधि की कोई योजना नहीं शुरू हो रही है। किसानों को सम्मान निधि के नाम पर पांच सौ रुपया महीना दिया जा रहा है। सोचें, चुनाव जीतने के लिए महिलाओं को 11 सौ, 21 सौ या ढाई हजार रुपया महीना देने की होड़ मची है तो किसानों को पांच सौ रुपया देकर काम चलाया जा रहा है। बड़े बड़े धन्ना सेठ कृषि पैदावार बेचने के धंधे में उतर गए हैं, जो बड़े गोदाम बनवा रहे हैं और आपूर्ति शृंखला निर्मित करके बाजार को  नियंत्रित करने का प्रयास कर रहे हैं।

By हरिशंकर व्यास

मौलिक चिंतक-बेबाक लेखक और पत्रकार। नया इंडिया समाचारपत्र के संस्थापक-संपादक। सन् 1976 से लगातार सक्रिय और बहुप्रयोगी संपादक। ‘जनसत्ता’ में संपादन-लेखन के वक्त 1983 में शुरू किया राजनैतिक खुलासे का ‘गपशप’ कॉलम ‘जनसत्ता’, ‘पंजाब केसरी’, ‘द पॉयनियर’ आदि से ‘नया इंडिया’ तक का सफर करते हुए अब चालीस वर्षों से अधिक का है। नई सदी के पहले दशक में ईटीवी चैनल पर ‘सेंट्रल हॉल’ प्रोग्राम की प्रस्तुति। सप्ताह में पांच दिन नियमित प्रसारित। प्रोग्राम कोई नौ वर्ष चला! आजाद भारत के 14 में से 11 प्रधानमंत्रियों की सरकारों की बारीकी-बेबाकी से पडताल व विश्लेषण में वह सिद्धहस्तता जो देश की अन्य भाषाओं के पत्रकारों सुधी अंग्रेजीदा संपादकों-विचारकों में भी लोकप्रिय और पठनीय। जैसे कि लेखक-संपादक अरूण शौरी की अंग्रेजी में हरिशंकर व्यास के लेखन पर जाहिर यह भावाव्यक्ति -

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