पता नहीं मोदी-शाह ने क्या सोच कर अरविंद केजरीवाल को जेल में डाला? ऐसे ही हेमंत सोरेन का सवाल है तो कांग्रेस की चुनावी पैसे की जब्ती का भी मामला है। वजह या तो अंहकार है या तो नरेंद्र मोदी के ग्रह-नक्षत्र खराब हैं या विनाशकाले विपरीत बुद्धि है। नरेंद्र मोदी हिंदी भाषी इलाकों के मन में भले बैठे हों और मुमकिन है उत्तर भारत में छप्पर फाड़ जीतें।
लेकिन बावजूद इसके जिस भी चुनावीसीटपर जमीनी हवा-गणित और जात-पांत तथा उम्मीदवार विशेष की दबंगी पर वोटिंग होगी वहां मोदी हवा का पंक्चर होना तय है। और गुजरे सप्ताह का घटनाक्रम भाजपा की मुट्ठी से बिहार, झारखंड, पंजाब, महाराष्ट्र, कर्नाटक और बंगाल फिसला दिख रहा है। सो, खटका है इन छह राज्यों की 165 सीटों में मोदी-शाह की जोड़-तोड़ कही फेल न हो जाए।
मैं दिल्ली, हरियाणा, हिमाचल प्रदेश और उत्तर प्रदेश, राजस्थान, मध्यप्रदेश, छतीसगढ़, गुजरात आदि में केजरीवाल-कांग्रेस-इंडिया की हवा बनते नहीं देख रहा हूं। इन राज्यों में भाजपा की एकतरफा आंधी है लेकिन बाकी राज्यों में नरेंद्र मोदी व मोदी सरकार के खिलाफ वैसा ही हल्ला है, जैसा पिछले सप्ताह दुनिया में बना है। केरल, तमिलनाडु, आंध्र प्रदेश (हालांकि तेलुगू देशम से एलायंस में भाजपा एक-दो सीटें जीत सकती है) तेलंगाना, ओडिशा में नरेंद्र मोदी कितनी ही मेहनत करें इन राज्यों से हिंदी भाषी राज्यों में एक-एक, दो-दो सीटों के भाजपाई नुकसान की भरपाई नहीं होनी है।
जानकारों का यह मानना गलत नहीं है कि केजरीवाल की गिरफ्तारी का दिल्ली, हरियाणा, गोवा में असर होगा। दरअसल केजरीवाल की गिरफ्तारी व रामलीला मैदान में विपक्ष की साझा रैली का मुख्य जमीनी असर यह है कि विरोधी पार्टियों का काडर एक-दूसरे के साथ कंधे से कंधा मिलाकर वोट पड़वाएगा। मतलब दिल्ली में आप और कांग्रेस दोनों के कार्यकर्ता अब एक-दूसरे से खींचे नहीं रहेंगेबल्कि चुनाव जीतने की साझा सोच व मेहनत लिए हुए हैं।
कांग्रेस और विपक्षी गठबंधन ‘इंडिया’ के सभी दलों के नेता-कार्यकर्ताओं में आपसी समझदारी व सहयोग बना है। इसका बड़ा मनोवैज्ञानिक असर होगा। फिर केजरीवाल की गिरफ्तारी से सोशल मीडिया, वैश्य वोट, दिल्ली में गरीब-झुग्गी-झोपड़ी वोट सुलगा है। तभी गौर करें नरेंद्र मोदी और अमित शाह जनसभाओं में केजरीवाल पर बोलने से बच रहे हैं। इनकी वह आक्रामकता खत्म है जो दस दिन पहले थी।
सबसे बडी बात मोदी-शाह की सारी होशियारी ओडिशा, महाराष्ट्र, बंगाल, बिहार, पंजाब सभी तरफ पंक्चर है। महाराष्ट्र के घर-घर यह चर्चा बनी बताते हैं कि एकनाथ शिंदे और अजित पवार बेऔकात व न घर के न घाट की हैसियत के नेता हैं। सो, इन्हें क्या वोट दें! अमित शाह ने मुंबई-ठाणे-कोंकण क्षेत्र में एकनाथ शिंदे के बेटे से लेकर सीटिंग सांसदों के टिकट ऐसे काटे, और दोनों से ऐसा सलूक किया जो सारे शिव सैनिक अब उद्धव ठाकरे को असली शेर समझ चुके हैं।
शरद पवार और राहुल गांधी ने अच्छा किया जो उद्धव ठाकरे का रोब बनने दिया। प्रदेश में लोकसभा के बाद विधानसभा चुनाव है तो तमाम शिव सैनिक अब उद्धव पार्टी से टिकट, सत्ता पाने के जुगाड़ में रहेंगे, मेहनत करेंगे। आखिर शिंदे जब अपने सीटिंग सांसदों को टिकट नहीं दिला पाए तो लोगों को शिंदे और पवार की पार्टी जीरो होते साफ दिख रही है। कांग्रेस के दलबदलुओं या राज ठाकरे जैसे पीटे हुए चेहरे पहले भी बेमतलब थे तो एकनाथ शिंदे, अजित पवार की दुर्दशा देख मराठा नैरेटिव की यह धारणा घर-घर है कि मराठा शेर तो उद्धव और शरद पवार हैं। बाकी तो दलबदलू-गिरगिट। और भाजपा मराठी सियासी अस्मिता को जलील करने वाली पार्टी!
यही स्थिति बंगाल में बनी दिख रही है। जानकारों की मानें तो बंगाल में भाजपा ने खराब उम्मीदवार दिए। ऐसे ही बिहार में पुराने-बूढ़े नेताओं को वापिस टिकट दे कर पार्टी ने महा गलती की। हालांकि लालू यादव गड़बड़ करते हुए हैं और तेजस्वी नए चेहरों को उतारने पर आमदा हैं। मगर पूरे प्रदेश की तस्वीर में बिहार में पुराने-बासी चेहरों की एनडीए बनाम ‘इंडिया’ के नौजवान-यूथ हल्ले की है। ऐसा मुकाबला भाजपा के लिए सदमे वाला हो सकता है।
लब्बोलुआब, पिछले दस दिनों के घटनाक्रम ने केजरीवाल, ‘इंडिया’ को घर-घर पहुंचाया है वही भाजपा के नैरेटिव का सार यह हल्ला है कि देखो, हमारे यहां कितने दलबदलू आ रहे हैं। इसलिए देखना दिलचस्प होगा कि दलबदलुओं से महाराष्ट्र, बंगाल, बिहार, कर्नाटक, हरियाणा, पंजाब (अमरिंदर सिंह और उनकी पत्नी) में भाजपा कितनी जीतती है!