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मोदी का चेहरा, जाहिर नतीजा !

लोकसभा चुनाव 2024 की खूबी है जो एक तरफ प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के चेहरे से हताशा-निराशा झलकी रही वहीं पढ़े-लिखे, नैरेटिव बनाने वाले जानकार विश्वास में हैं कि कुछ भी हो बहुमत मोदी का होगा। भक्तों में यह भी विश्वास है कि नरेंद्र मोदी ईवीएम पर ध्यान धरेंगें तो मजाल जो ईवीएम से वे नतीजे नहीं निकलें जो उनके भगवान चाहते हैं। तब भला शाम को आने वाले एक्जिट पोल का क्या मतलब है। इतना ही देखना है कि नरेंद्र मोदी की चार सौ पार सीटों का अनुमान कौन बताता है? और कोई सर्वे भाजपा की खुद की सीटों और वोट शेयर का अनुमान बताता है या नहीं? संभवतया सभी एनडीए के नाम पर गोलमाल बनाए हुए होंगे। 

असल सवाल है कि भाजपा की संख्या 272 से पार होगी या नहीं? भाजपा के वोट शेयर और उसकी सीटों में 2014 या 2019 रिपीट होगा या वह 2014 के आंकड़ों से नीचे जाएगी? एक्जिट पोल के आंकड़े 2019 के नतीजों के आधार वर्ष पर हिसाब बनाए हुए होंगे। 2019 की भाजपा की 303 सीट और 37.7 प्रतिशत वोट से अधिक का प्रोजेक्शन होगा। ध्यान रहे जनवरी से शुरू सभी ओपिनियन पोल में एनडीए की 350 से 411 के बीच सीटों का अनुमान था। वहीं वोट शेयर का अनुमान 42 से 48 प्रतिशत के बीच है। लोकनीति-सीएसडीएस का अनुमान था कि इंडिया गठबंधन की 34 प्रतिशत लोकप्रियता के मुकाबले भाजपा की 40 प्रतिशत लोकप्रियता है। मतलब छह प्रतिशत की बढ़त।

ये अनुमान अखिल भारतीय पैमाने के हैं। अपना मानना है कि भाजपा के वोट केरल, तमिलनाडु, आंध्र, तेलंगाना, ओडिशा, बंगाल में चाहे जितना बढ़े उसका विशेष अर्थ नहीं है। असल बात 11 प्रदेशों (उत्तर प्रदेश, महाराष्ट्र, कर्नाटक, गुजरात, मध्य प्रदेश, राजस्थान, छतीसगढ़, दिल्ली, बिहार, असम, झारखंड) की 318 सीटों की है। इन राज्यों में भाजपा ने 2014 में 31 प्रतिशत वोटों पर भी मैक्सिमम सीटें जीती थी और 2019 के 37.7 प्रतिशत वोट शेयर में भी उतनी ही (यूपी में कम) अधिकतम सीटें जीती थी। और सब जानते हैं कि 2014 में अच्छे दिनों के नाम पर नरेंद्र मोदी की आंधी थी वहीं 2019 में पुलवामा के कारण मोदी की सुनामी थी।  

लेकिन इस चुनाव में न आंधी है और न सुनामी। 

उलटे हर कोई इतना तो मानेगा कि इस दफा इन 11 प्रदेशों के माहौल तथा मतदान के प्रतिशत व रूझानों से नरेंद्र मोदी का क्रेज घटा लगा है। सामान्य तथ्य नहीं जो 2019 के मुकाबले इस चुनाव में जिन सीटों पर पांच चरण के मतदान तक सर्वाधिक कम मतदान हुआ, वे पच्चीस सीटें मध्य प्रदेश, राजस्थान और उत्तर प्रदेश की हैं। वहीं जिन 25 सीटों पर सर्वाधिक मतदान बढ़ा उनमें 20 सीट कर्नाटक, तेलंगाना और महाराष्ट्र में है। इसलिए कई जगह भाजपा का वोट शेयर व पिछली जीत का मार्जिन घटेगा। क्लोज या कम मार्जिन वाली सीटों पर भाजपा लुढ़केगी। सोचें, गुजरात में भी मतदान में रिकॉर्ड कमी है। इसे मोदी को जिताने के जोश में कमी ही मानेंगे। जैसे बारदोली सीट पर नौ प्रतिशत कम मतदान। ऐसे ही इन 11 राज्यों में भाजपा की परंपरागत पुरानी शहरी सीटों पर जहां कम मतदान है वहीं विपक्ष की दमदारी के मुकाबले वाली सीटों (जैसे  बाडमेर, बारांबकी, बीड) पर ज्यादा मतदान। 

तभी मेरी धारणा है कि भाजपा के पुख्ता 11 प्रदेशों में 318 सीटों पर इस बार चुनाव 2014 की आंधी की बात तो दूर सामान्य हवा भी नहीं है। जिन राज्यों में दो चुनावों में भाजपा का रिकॉर्ड तोड़ वोट शेयर (गुजरात 60 प्रतिशत तो राजस्थान व मध्य प्रदेश में 55-55 प्रतिशत) था वहां बेरूखी, निराशा और ठहरी हवा में मतदान कम हुआ है। 

इसलिए 2024 का फैसला इन 11 राज्यों में 2014 की आंधी में भाजपा को प्राप्त वोट शेयर में गिरावट से तय होगा। आंकड़ा भले प्रदेशवार वोट शेयर में गिरावट के पैमाने में सोचें या 2014 चुनाव में भाजपा के कुल आंकड़े 31 प्रतिशत वोट शेयर को इन राज्यों पर लागू कर सोचें। इन राज्यों में भाजपा का वोट घटेगा तो सीटें भी निश्चित ही कम होंगी। इनमें भी उत्तर प्रदेश, बिहार, महाराष्ट्र और कर्नाटक की चारों राज्यों से भाजपा की सीटें तय होनी हैं। और नोट करें चारों राज्यों में भाजपा को सीट और वोट शेयर दोनों के लाले हैं। 

कुल मिलाकर 11 प्रदेशों के भाजपा बनाम ‘इंडिया’ गठबंधन के वोट शेयर से चुनाव का इतिहास बनेगा। इंदिरा गांधी, राहुल गांधी और अटल बिहारी वाजपेयी की अप्रत्याशित हार जैसा इतिहास। इसी के खटके में नरेंद्र मोदी की भाव-भंगिमा छह चरण लगातार बिगड़ी रही। उनका एक भी ऐसा भाषण नहीं हुआ, जिसमें 140 करोड़ लोगों की आर्थिकी, विदेश नीति, जलवायु, स्वास्थ्य, शिक्षा की दशा-दिशा और समाज-संस्कृति को लेकर एक भी कायदे की बात हो। इस नाते 2024 का चुनाव नरेंद्र मोदी के नेतृत्व, व्यक्तित्व-कृतित्व और उनके दस साला झूठे-टुच्चे, घटिया राज के वे सभी सत्य लिए हुए है, जिससे इतिहास निश्चित ही उनका मूल्यांकन करेगा। 

By हरिशंकर व्यास

मौलिक चिंतक-बेबाक लेखक और पत्रकार। नया इंडिया समाचारपत्र के संस्थापक-संपादक। सन् 1976 से लगातार सक्रिय और बहुप्रयोगी संपादक। ‘जनसत्ता’ में संपादन-लेखन के वक्त 1983 में शुरू किया राजनैतिक खुलासे का ‘गपशप’ कॉलम ‘जनसत्ता’, ‘पंजाब केसरी’, ‘द पॉयनियर’ आदि से ‘नया इंडिया’ तक का सफर करते हुए अब चालीस वर्षों से अधिक का है। नई सदी के पहले दशक में ईटीवी चैनल पर ‘सेंट्रल हॉल’ प्रोग्राम की प्रस्तुति। सप्ताह में पांच दिन नियमित प्रसारित। प्रोग्राम कोई नौ वर्ष चला! आजाद भारत के 14 में से 11 प्रधानमंत्रियों की सरकारों की बारीकी-बेबाकी से पडताल व विश्लेषण में वह सिद्धहस्तता जो देश की अन्य भाषाओं के पत्रकारों सुधी अंग्रेजीदा संपादकों-विचारकों में भी लोकप्रिय और पठनीय। जैसे कि लेखक-संपादक अरूण शौरी की अंग्रेजी में हरिशंकर व्यास के लेखन पर जाहिर यह भावाव्यक्ति -

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