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भक्त बन रहे हैं रेडिकल!

मेरा मानना है कि अगले चुनाव का फैसला हिंदीभाषी नौजवानों से होगा। तभी हिंदू नौजवान की मनोदशा का मसला अहम है। नीतीश कुमार भले जातीय जनगणना से पिछड़ी जातियों के नौजवानों को लुभाएं या राहुल गांधी नौजवान ऊर्जा से अपना दम दिखलाएं मगर युवा मनोदशा जस की तस है। हां, नरेंद्र मोदी के 36-38 प्रतिशत भक्त वोट पक्के हैं। पिछले नौ वर्षों में ये और रेडिकल हुए हैं। योगी आदित्यनाथ के बुलडोजर से या बागेश्वर के आचार्य धीरेंद्र शास्त्री के भक्त जगाओ प्रवचनों से या और सोशल मीडिया से।

सोचें, इसी सप्ताह ज्ञानवापी मस्जिद पर योगी आदित्यनाथ ने क्या कहा? ऐसे ही बागेश्वर के आचार्य धीरेंद्र शास्त्री की हिंदुओं को कथित तौर पर जगाने की एक वीडियो क्लिप दिखी। उस नाते कोई जरूरत नहीं है नरेंद्र मोदी और अमित शाह को मेहनत करने की। मैंने पहले कभी किसी मुख्यमंत्री, पदासीन मंत्री-नेता के मुंह से वह नहीं सुना जैसे गुजरे सप्ताह योगी आदित्यनाथ के मुंह से सुना। मुख्यमंत्री- मैं, भय या पक्षपात, अनुराग या द्वेष के बिना, सभी प्रकार के लोगों के प्रति संविधान और विधि के अनुसार न्याय करूंगा- की शपथ लिए हुए होता है। उस अनुसार ज्ञानवापी पर योगी को बोलना ही नहीं था। अदालत को काम करने देना था। सुप्रीम कोर्ट द्वारा व सरकार द्वारा अयोध्या छोड़ बाकी सभी स्थानों पर 1947 के वक्त की यथास्थिति में धर्मस्थानों के अधिकार के कानून की पालना होनी थी। लेकिन योगी ने इलाहाबाद हाई कोर्ट के फैसले से ठीक पहले कहा- वहां की (ज्ञानवापी) दीवारें चिल्ला चिल्ला कर कहती हैं….।

जाहिर है यह कल्याण सिंह से योगी आदित्यनाथ के सफर का रेडिकल मुकाम है तो ऐसे ही आचार्य धीरेंद्र शास्त्री भी हिंदुओं को आह्वान करते हुए हैं। क्या लगता नहीं कि नौ वर्षों में बहुत कुछ बदल गया है? पुराने सब आउट हैं। उमा भारती, गिरिराज किशोर, साध्वी प्रज्ञा, प्रवीण तोगड़िया से लेकर राम-रहीम, आसाराम आदि से जो हिंदू जन जागरण हुआ था वह अब नए रेडिकल लेवल पर लाल-पीला है।

सवाल है अगले नौ-दस महीनों में यूथ वोट को उन्मादी बनाने के और कितनी तरह के जतन होंगे? इनसे वोटर में वोट राजनीति की वाह बनेगी या नफरत पैदा होगी? लोगों को क्या समझ में आएगा?  वोट के लिए उन्हें उल्लू बना रहे हैं या यह जिद्द बनेगी कि मोदी के बिना देश नहीं बचेगा? हिंदू नहीं बचेंगे?

सोचें, सोमवार को जयपुर से मुंबई जा रही ट्रेन के उस आरपीएफ़ जवान चेतन सिंह पर, जिसकी रायफल से चार लोग मरे। उसका गोली चलाना क्या। था? वह मोदी-योगी का भक्त था या रेडिकल या सिरफिरा व पागल? चाहे जो मानें, असल बात है कि उसने होशोहवास में ट्रेन में ढूंढ कर मुसलमानों को मारा! और वह भी नौजवान उम्र का था!

By हरिशंकर व्यास

मौलिक चिंतक-बेबाक लेखक और पत्रकार। नया इंडिया समाचारपत्र के संस्थापक-संपादक। सन् 1976 से लगातार सक्रिय और बहुप्रयोगी संपादक। ‘जनसत्ता’ में संपादन-लेखन के वक्त 1983 में शुरू किया राजनैतिक खुलासे का ‘गपशप’ कॉलम ‘जनसत्ता’, ‘पंजाब केसरी’, ‘द पॉयनियर’ आदि से ‘नया इंडिया’ तक का सफर करते हुए अब चालीस वर्षों से अधिक का है। नई सदी के पहले दशक में ईटीवी चैनल पर ‘सेंट्रल हॉल’ प्रोग्राम की प्रस्तुति। सप्ताह में पांच दिन नियमित प्रसारित। प्रोग्राम कोई नौ वर्ष चला! आजाद भारत के 14 में से 11 प्रधानमंत्रियों की सरकारों की बारीकी-बेबाकी से पडताल व विश्लेषण में वह सिद्धहस्तता जो देश की अन्य भाषाओं के पत्रकारों सुधी अंग्रेजीदा संपादकों-विचारकों में भी लोकप्रिय और पठनीय। जैसे कि लेखक-संपादक अरूण शौरी की अंग्रेजी में हरिशंकर व्यास के लेखन पर जाहिर यह भावाव्यक्ति -

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