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झूठी फिल्में और झूठी उपलब्धियां

हिंदी फिल्मों की बात करें। एक फिल्म आई थी बेबी। भारत सरकार और प्रधानमंत्री के प्रिय अभिनेता अक्षय कुमार की फिल्म थी। उसमें वे देश की सीमा पार कर पड़ोसी देश में जाते हैं और भारत के मोस्ट वांटेड आतंकवादी को पकड़ कर भारत ले आते हैं। फिल्म में उसका जो परिचय है वह हाफिज सईद से मिलता-जुलता है। सोचें दुनिया में सच में ऐसी घटनाओं को अंजाम देने के बाद उस पर तथ्यपरक फिल्में बनती हैं लेकिन भारत में फिल्म बना कर यह दिखा दिया गया कि देश के सबसे बड़े दुश्मन को हम सीमा पार से उठा लाए। इस फिल्म ने सौ करोड़ रुपए से ऊपर का कारोबार किया था। वहीं अभिनेता ‘मिशन मंगल’ नाम से भी फिल्म बना चुके हैं। वास्तविकता चाहे कुछ भी हो लेकिन फिल्मों में भारत मंगल ग्रह पर जा चुका है। अब इसकी पोल खोलने का कोई मतलब नहीं है कि हाफिज सईद अब भी भारत विरोधी गतिविधियां चला रहा है और हम अभी मंगल पर नहीं पहुंचे हैं।

ऐसी झूठी फिल्मों को लोगों ने खूब प्यार दिया है। भारत ने कोरोना की सबसे भयावह लहर झेली है, जिसमें इंसान की दशा जानवरों से बदतर थी। गंगा में बहती या गंगा किनारे दफनाई गई लाशें सचाई बयान करती रही हैं लेकिन ‘द वैक्सीन वार’ नाम से फिल्म आई है, जिसमें बताया जा रहा है कि भारत ने कैसे सबसे पहले वैक्सीन बनाई, अपने लोगों को बचाया और फिर दुनिया के लोगों को बचाया। लोग अपनी भुगती हुई सचाई को भूल कर इस फिल्म में बताए गए अधूरे सच पर यकीन करेंगे।

विपक्ष पता नहीं क्यों इस सबके अर्थ नहीं समझ रहा है? वह बड़ा झूठ बोल कर नैरेटिव अपने पक्ष में करने की बजाय नरेंद्र मोदी के झूठ की पोल खोलने में लगा है। विपक्ष बता रहा है कि मोदी ने कितने वादे किए थे और उन्हें नहीं पूरा किया। सोचें, प्रधानमंत्री ने दो सौ से ज्यादा नई योजनाएं शुरू की हैं, जिनमें से ज्यादातर को वे खुद ही भूल चुके होंगे। पर विपक्ष लोगों को उनकी याद दिला रहा है। लोगों को क्या खाक याद होगा? लोगों के सामने तो हर दिन नई चीज आ जाती है। लोग अभी मोदीजी की एक उपलब्धि को प्रोसेस कर ही रहे होते हैं कि दूसरी उपलब्धि की खबर आ जाती है। पहले प्रधानमंत्री अपने पूरे कार्यकाल की उपलब्धियां बताते थे लेकिन मोदी तो एक महीने में इतनी उपलब्धि हासिल कर लेते हैं कि वह कई बरसों की उपलब्धियों से ज्यादा हो जाती है। अभी इसी हफ्ते प्रधानमंत्री यूनिवर्सिटी कनेक्ट के प्रोग्राम में पहुंचे, जहां उन्होंने कहा कि छोड़िए पहले की बात आपको 30 दिन की उपलब्धि बताते हैं। उन्होंने 30 दिन के अपने विदेश दौरे, ब्रिक्स की बैठक, आसियान की बैठक, जी-20 की बैठक, अफ्रीकी संघ, दोपक्षीय वार्ताओं, चंद्रयान-तीन, महिला आरक्षण आदि का जिक्र किया और उनकी उपलब्धियों पर तालियां बजती रहीं। यह भी एक किस्म की होशियारी है, जो प्रधानमंत्री मोदी हमेशा करते हैं। जिन बातों की पोल खुल जाए या जिन बातों की सचाई जनता समझने लगे उन्हें छोड़ कर दूसरा नया एजेंडा उसके सामने रख दो। जैसे अभी चंद्रयान-तीन, जी-20 की बैठक, अफ्रीकी संघ को उसका सदस्य बनवाना, ग्लोबल साउथ का नेता बनना, ब्रिक्स की बैठक में शामिल होना, कनाडा, पाकिस्तान व ब्रिटेन की धरती पर भारत के दुश्मनों का सफाया करना आदि नए मुद्दे आ गए हैं। कुछ दिन पहले तक इनके बारे में कोई चर्चा नहीं थी। लोग अब इन मुद्दों में उलझे हैं। जब तक विपक्ष इनकी सचाई बताने में वक्त जाया करेगा तब तक मोदीजी नया मुद्दा लेकर आ चुके होंगे और जनता उसमें भाव-विभोर हो रही होगी।

By हरिशंकर व्यास

मौलिक चिंतक-बेबाक लेखक और पत्रकार। नया इंडिया समाचारपत्र के संस्थापक-संपादक। सन् 1976 से लगातार सक्रिय और बहुप्रयोगी संपादक। ‘जनसत्ता’ में संपादन-लेखन के वक्त 1983 में शुरू किया राजनैतिक खुलासे का ‘गपशप’ कॉलम ‘जनसत्ता’, ‘पंजाब केसरी’, ‘द पॉयनियर’ आदि से ‘नया इंडिया’ तक का सफर करते हुए अब चालीस वर्षों से अधिक का है। नई सदी के पहले दशक में ईटीवी चैनल पर ‘सेंट्रल हॉल’ प्रोग्राम की प्रस्तुति। सप्ताह में पांच दिन नियमित प्रसारित। प्रोग्राम कोई नौ वर्ष चला! आजाद भारत के 14 में से 11 प्रधानमंत्रियों की सरकारों की बारीकी-बेबाकी से पडताल व विश्लेषण में वह सिद्धहस्तता जो देश की अन्य भाषाओं के पत्रकारों सुधी अंग्रेजीदा संपादकों-विचारकों में भी लोकप्रिय और पठनीय। जैसे कि लेखक-संपादक अरूण शौरी की अंग्रेजी में हरिशंकर व्यास के लेखन पर जाहिर यह भावाव्यक्ति -

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