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ममता कुलकर्णी को क्यों नहीं मानेंगे महामंडलेश्वर?

mamta kulkarniImage Source: ANI

Mamta Kulkarni: जब समय नीच है तो हिंदुओं की नई महामंडलेश्वर ‘श्री यमाई ममतानंद गिरि’ उर्फ ममता कुलकर्णी पर कुंभ में साधु-संत, बाबा रामदेव, धीरेंद्र कृष्ण शास्त्री आदि क्यों यह सब कह रहे हैं कि किसी की भी मुंडी पकड़ कर महामंडलेश्वर बना दिया जाता है!

या यह भाषण कि ग्लैमर की दुनिया से जुड़े लोगों को साध्वी के तौर पर पेश कर दिया जा रहा है। रामदेव के अनुसार, ‘कुछ लोग, जो कल तक सांसारिक सुखों में लिप्त थे, अचानक एक ही दिन में संत बन जाते हैं, महामंडलेश्वर जैसी उपाधियां पा लेते हैं’। इतना ही नहीं उन्होंने महाकुंभ के नाम के दुरुपयोग पर चिंता जताई।

पर यही तो आज के नीच काल का रिवाज है। सब कुछ उलटा पुलटा ही होना है। मैंने बहुत पहले, सुदंरलाल पटवा के मुख्यमंत्री रहते समय के उज्जैन के सिहंस्थ को लेकर ‘गपशप’ कॉलम में लिखा था।

भाजपा सरकार ने तब सिहंस्थ क्षेत्र में अखाड़ों की जगह कथावाचकों को प्राथमिकता दी था। अखाड़ों को उनके परंपरागत क्षेत्र व आकार का स्थान आवंटित नहीं किया।(Mamta Kulkarni)

उनकी जगह विश्व हिंदू परिषद्, भाजपाईयों ने भीड़ के कथावाचकों का महत्व बनाना शुरू किया। अखाड़ों ने इसका विरोध किया, हल्ला हुआ और आसाराम का नाम सुनाई दिया तो ‘गपशप’ में पटवा राज की नासमझी पर लिखा था।

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सनातन धार्मिकता का सत्य है कि प्रथम पंक्ति में तपस्वी, अखाड़ों के साधु-संतों और शंकराचार्य हैं। फिर मंदिर पुजारी, बाबा और कथावाचक या महामंडलेश्वरों का सिलसिला है।

कुंभ और महाकुंभ में तो परंपरागत तौर पर अखाड़ों और शंकराचायों का महात्म्य है।(Mamta Kulkarni)

लेकिन संघ परिवार और वीएचपी के अशोक सिंघल जब प्रमुख शकंराचार्यों को अपनी दुकान का हिस्सा नहीं बना पाए तो उन्होंने एक तरफ महामंडलेश्वरों की दुकान लगवा कर उसकी उपाधियां बंटवाई

वहीं बाबाओं और गुरूओं, प्रवचकों का रैला बना कर हिंदू धर्म को वह बना दिया, जिनके चेहरों की भीड़ अब मार्केटिंग, ग्लैमर, व्यापार का वह बिजनेस मॉडल है, जिसकी पचास साल पहले कल्पना नहीं थी।

सदी में हिंदुओं का पुनर्जागरण(Mamta Kulkarni)

याद करें आजादी के बाद, उससे पहले और उन्नीसवीं-बीसवीं सदी के सनातन-हिंदू धर्माचायों के चेहरों को। तब के अखाड़ों के तपस्वियों, शंकाराचार्य के चेहरों और मठाधीशों, मीमांसकों के चेहरों को।

स्वामी दयानंद सरस्वती, रामकृष्ण परमहंस, विवेकानंद, महर्षि अरविंद, करपात्री महाराज आदि का सिलसिला। और अब वह साधु समाज है, जिसका एक प्रतिनिधि चेहरा योगी आदित्यनाथ और कथित धर्म संसद का साधु समाज उनको सर्टिफिकेट देते हुए है।

मौनी अमावस्या से पहले, अमित शाह के स्नान के दिन कुंभ क्षेत्र में धर्म संसद का भी आयोजन था। उसमें न तीनों शंकाराचार्य थे और व तेरह अखाड़ों के प्रमुख।(Mamta Kulkarni)

मगर कथावाचक देवकीनंदन की अध्यक्षता के जमावड़े में सीधे सरकार से आह्वान गया कि वह एक सनातन धर्म बोर्ड बनाए।

सबकी अपनी-अपनी दुकान है और वह नाम, ब्रांड, जलवा और ग्लैमर सब लिए हुए हैं तो बॉलीवुड या किसी भी एक्सवाईजेड़ ग्लैमर हस्ती अपने को महामंडलेश्वर बनाए तो अनहोनी क्या है?

मां ममतानंद, राधे मां, या आईआईटीयन बाबा, निर्मल बाबा, बाबा रामेदव, पूकी बाबा उर्फ अनिरूद्धाचार्य, मां हिमांगी सखी आदि, आदि तो वे चेहरे हैं, जिनसे इस सदी में हिंदुओं का पुनर्जागरण है, कल्कि अवतारों की शृंखला है। हिंदुओं की विश्वगुरूता, विश्व भव्यता है।(Mamta Kulkarni)

By हरिशंकर व्यास

मौलिक चिंतक-बेबाक लेखक और पत्रकार। नया इंडिया समाचारपत्र के संस्थापक-संपादक। सन् 1976 से लगातार सक्रिय और बहुप्रयोगी संपादक। ‘जनसत्ता’ में संपादन-लेखन के वक्त 1983 में शुरू किया राजनैतिक खुलासे का ‘गपशप’ कॉलम ‘जनसत्ता’, ‘पंजाब केसरी’, ‘द पॉयनियर’ आदि से ‘नया इंडिया’ तक का सफर करते हुए अब चालीस वर्षों से अधिक का है। नई सदी के पहले दशक में ईटीवी चैनल पर ‘सेंट्रल हॉल’ प्रोग्राम की प्रस्तुति। सप्ताह में पांच दिन नियमित प्रसारित। प्रोग्राम कोई नौ वर्ष चला! आजाद भारत के 14 में से 11 प्रधानमंत्रियों की सरकारों की बारीकी-बेबाकी से पडताल व विश्लेषण में वह सिद्धहस्तता जो देश की अन्य भाषाओं के पत्रकारों सुधी अंग्रेजीदा संपादकों-विचारकों में भी लोकप्रिय और पठनीय। जैसे कि लेखक-संपादक अरूण शौरी की अंग्रेजी में हरिशंकर व्यास के लेखन पर जाहिर यह भावाव्यक्ति -

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