इस सप्ताह ममता बनर्जी ने विधानसभा में कानून बना मोदी सरकार के पाले में गेंद डाली तो योगी आदित्यनाथ से मोदी, शाह को फिर मैसेज मिला कि एक योगी कभी सत्ता का गुलाम नहीं होता है। उन्होंने पिछले महीने कहा था मैं नौकरी करने नहीं आया हूं। और इसका अर्थ है अब योगी स्वेच्छाचारी हैं। उन्हें जो जंचेगा वही करेंगे। उत्तर प्रदेश में योगी ही सवर्ज्ञ, सर्वोच्च हैं। प्रदेश में मोदी, शाह की प्रशासनिक, राजनीतिक, चुनावी दखल या सलाह खत्म है। और वे ही प्रदेश के आगामी उपचुनावों के कर्ताधर्ता हैं। इसी कराण उन्होंने बुलडोजर राजनीति को गरमा दिया है। योगी बनाम अखिलेश का वह नैरेटिव बन रहा है, जिससे उपचुनावनों में योगी भारी हो जाएं।
उधर ममता बनर्जी को प्रधानमंत्री, राष्ट्रपति, गृह मंत्री और भाजपा ने जितना घेरा उस सबसे वे अब बाहर निकल आई हैं। विधानसभा से दो दिन में बलात्कारी को फांसी की फटाफट सजा का उन्होंने जो कानून बनाया है वह मोदी सरकार के लिए मुश्किल वाला है। इस कानून की लीक पर केंद्र सरकार का कानून बनाना ममता के बनाए कानून की नकल होगी। जबकि शरद पवार आदि विपक्षी नेता कहने लग गए हैं कि ममता सरकार जैसा कानून बनना चाहिए।
लेकिन बंगाल के गर्वनर ने अपराजिता बिल पर फुर्ती नहीं दिखाई। उलटे गवर्नर ने अपराजिता बिल को आंध्र प्रदेश, महाराष्ट्र और अरुणाचल प्रदेश के बिल का कॉपी पेस्ट बताया। गवर्नर के मुताबिक, इस तरह के बिल राष्ट्रपति के पास पहले से पेंडिंग हैं। ममता सरकार सिर्फ राज्य के लोगों को धोखा देने के लिए धरना, प्रदर्शनों में भाग ले रही हैं, क्योंकि उन्हें भी पता है कि ऐसे बिल राष्ट्रपति के पास पेंडिंग पड़े हैं।
पर ममता बनर्जी आगे अब अपनी तह मोदी सरकार पर दबाव बनाएंगी। हकीकत है कि राहुल गांधी, ममता बनर्जी, शरद पवार और अखिलेश यादव विपक्ष के ऐसे चार चेहरे हैं, जिनके आगे भाजपा की राजनीति ठहरी और फेल होती हुई है। इसकी लाचारगी जम्मू कश्मीर, हरियाणा, झारखंड, यूपी के उपचुनावों तथा महाराष्ट्र के विधानसभा चुनावों में साफ दिखलाई देगी। कितनी हैरानी की बात है कि कांग्रेस और नेशनल कांफ्रेंस का एलायंस हुआ लेकिन जम्मू क्षेत्र में भी भाजपा आक्रामक नहीं है। वहां भाजपा किस एजेंडे पर चुनाव लड़ेगी, यह उसके उम्मीदवारों को भी मालूम नहीं होगा।
ऐसा ही हरियाणा में होना है। हरियाणा में भाजपा के पास कहने को केवल यह है कि केंद्र में तीसरी बार मोदीजी की सरकार बनी तो हरियाणा में भी तीसरी बार बने ताकि डबल इंजिन की सरकार चलती रहे। पर सोचें, जब मुख्यमंत्री को पता नहीं हुआ कि वे किस सीट से चुनाव लड़ेंगे तो वे पूरे प्रदेश में पार्टी की ओर से क्या तो एजेंडा बनवाएंगे और अपने चेहरे क्या वोट मांगेंगे!