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क्या संसद सड़क छाप नहीं?

क्या संसद सड़क  छाप नहीं?

स्वभाविक है जो 2024 के आम चुनाव की नजदिकी में संसद की कार्रवाई चुनावी राजनीति लिए हुए हो। लोकसभा का अविश्वास प्रस्ताव उसमें ढला-बना हो। तभी विपक्ष ने मणिपुर की वीभत्सता में अविश्वास प्रस्ताव ला कर चुनाव पूर्व का पेंतरा चला। इसे समझते हुएप्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने भी कमर कसी। भाषण तैयार किया। ऐसा आजाद भारत में पहले भी हुआ है। और यह संसदीय राजनीति में मान्य है। लेकिन यह मान्य नहीं है कि इस चक्कर में ससंद की गरिमा को ताक में रख दें। उसे सब्जीबाजार बना दे। संसदीय बहस चुनाव की सड़क छाप भौ-भौ में कनवर्ट हो जाए। कोई माने या न माने,पर मेरा मानना है कि अगस्त 2023 के अविश्वास प्रस्ताव पर संसदीयइतिहास में अनिवार्यत यहलिखा होगा कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के राज में भारत की संसद, ससंदीय गरिमा और संसद के नेता उर्फ प्रधानमंत्री की जुबा चुनावों की सडक छाप नुक्कड भाषणों का प्रतिमान थी।

मैं इंदिरा गांधी के समय से संसद के भाषणों, अविश्वास प्रस्तावों, पक्ष-विपक्ष की बहसबाजी, गाली-गलौज सबका साक्षी रहा हूं।राजनारायण, मनिराम बांगड़ी के हल्लों तक को सुना है। लेकिन मैंने कभी न देखा और न सुना कि विपक्ष का नेता कहे आपने हिंदुस्तान का क़त्ल किया है या भारत माता की हत्या की है या देशद्रोह किया है। और इसके जवाब में प्रधानमंत्री देश को कहे इस खानदान ने मां भारती को छिन्न-भिन्न किया। इसके नाना ने, दादी ने देश तोड़ा। तू चोर, तेरा खानदान चोर। विपक्ष… अंतिम संस्कार और क्रियाकर्म करता हुआ… खंडहर पर प्लास्टर करता हुआ।… ये इंडिया नहीं, घमंडिया गठबंधन… विपक्ष ने इंडिया के टुकड़े कर दिए- I.N.D.I.A। कांग्रेस की कोई चीज़ अपनी नहीं है, न नाम , न चुनाव चिन्ह और न विचारधारा। संस्थापक था अंग्रेज और झंडा भी कांग्रेस ने चुराया।( कल्पना करें यह सब सुन गांधी, पटेल, सुभाष बोस, लोहिया आदि उन तमाम स्वंतत्रा सेनानी नेतओं की आत्माओं की दशा पर जिनके हाथ में कभी कांग्रेसी झंडा था)…, …तुम्हारे खानदान की दुकान ने इमरजेंसी बेची। बंटवारा बेचा। मिजो लोगों पर सेना से बमबारी कराई। सिखों पर अत्याचार बेचा। इतिहास बेचा। सेना का स्वाभिमान बेचा।माँ भारती को छिन्न-भिन्न किया।

सोचे, कथित अमृतवर्ष, अमृतकाल में संसद मेंबोले गए भारत के प्रधानमंत्री के कोई सवा दो घंटे के लंबे भाषण के  जुमलों पर। यदि नरेंद्र मोदी ने बंगाल, यूपी, बिहार याकि किसी चुनावी नुक्कड़ सभा में ऐसा भाषण दिया होता(हालांकि प्रधानमंत्री पद के लिए ऐसा वहा भी बोलना शोभादायी नहीं है) तो वह सुना-अनसुना होता। आया-गया होता। लेकिन कथित अमृतकाल की 16वी लोकसभा के रिकार्ड में अंकित प्रधानमंत्री का अविश्वास प्रस्ताव पर दिया यह भाषण सोचे, सुनहरे अक्षरों में लिखा होगा या काले अक्षरों में?

मगर जैसा समय वैसा राजाऔर नतीजतन वैसी ही कमान तथा उससे बनी-ढली संसद। निश्चित ही प्रधानमंत्री और उनके भाषण लेखक जानते है कि उन्होने नौ सालों में देश के लोगों को जैसा गंवार और भक्त बनाया है तो उनके लिएनरेंद्र मोदी का कहा हर वाक्य अमृत। आज के नौजवान को क्या पता कि राजनीति और संसद के नेहरू से वाजपेयी-मनमोहन काल तक भाषण, बहस, विचार का राष्ट्र दिमाग क्या था? सदन में कैसे नेता थे, कैसे स्पीकर थे और कैसे वक्ता। फिर नरेंद्र मोदी चारणों के मसीहा नैरेटर है तोटीवी चैनलों के प्राइमटाइम पर उन्हे सुनते हुए लोग जब पुराने नेताओं, विरासत, नाना, दादी, पिता, खानदान आदि का खोला जाता चिठ्ठा सुनेंगे तो तालियां बजेगी। भक्त चैनलों को मसाला और टीआरपी मिलेगी। पूरा देश मानेंगा कि नरेंद्र मोदी ने कांग्रेस को, विपक्ष को, नेहरू, इंदिरा, राजीव सबको धो डाला। देश को पहली बार मालूम हुआ कि इंदिरा गांधी ने पाकिस्तान को तोड कर, बांग्लादेश बना कर मां भारती को छिन्न-भिन्न किया।सेना का ब्ल्यूस्टार आपरेशन उग्रवादियों के खिलाफ नहीं था बल्कि सिखों पर अत्याचार था।

हां, निसंदेह आज के अमृतकाल में इस बात का अर्थ नहीं है कि क्या सत्य है और क्या असत्य? आखिर झूठ जब अमृत काल का राष्ट्रधर्म है और बांटो व राज करोंसत्ता प्राप्ति की नंबर एक राजनीति तो प्रजा को यह सुध हो ही नहीं सकती है कि राष्ट्र-राज्य की बरबादी कैसे हुआ करती है। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और उनके कथित चाणक्य अमित शाह को समझ नहीं है कि मिजोरम, नार्थ ईस्ट, खालिस्तान, तमिलनाडु, जम्मू-कश्मीर, बंगाल, बिहार याकि आजादी बाद के तमाम अनुष्ठानों में पूर्ववर्ती सरकारों ने पृथकताओं को मिटाने, नस्ल-समूहों के विलय के येन-केन-प्रकारेण जितनी तरह के प्रयास किए, नार्थ-ईस्ट को जैसे संभाला वह सब बिखरी-गुलाम कौम के राष्ट्र निर्माण के ध्येय से भी था। आखिर यह तो तथ्य है कि बिखरा होना हमारी तासीर है। हम हिंदू सदियों बंटे रहेतभी तो खैबर पार से पांच हजार घुडसवार आते थे और भारत के सम्राट बन जाते थे। अंग्रेजों या मुगलों ने हिंदुओं को नहीं बांटा, हिंदू बंटे हुए थे वे सत्ता के खातिर बंटे होते थे या बांटे जाते थे जैसे कि पिछले नौ वर्षों में जांत-पांत में लगातार बंटते हुए है तो वैसी ही बटी हुई राजनीति है, संसद है। दुनिया के लोकतांत्रिक देशों में ऐसी कोई दूसरी संसद नहीं है जिसमें विपक्ष सरकार से कहे तुमदेशद्रोही तो प्रधानमंत्री बोले तू, तेरी पार्टी और तेरा खानदानमाँ भारती को छिन्न-भिन्न करने वाला!

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Published by हरिशंकर व्यास

मौलिक चिंतक-बेबाक लेखक और पत्रकार। नया इंडिया समाचारपत्र के संस्थापक-संपादक। सन् 1976 से लगातार सक्रिय और बहुप्रयोगी संपादक। ‘जनसत्ता’ में संपादन-लेखन के वक्त 1983 में शुरू किया राजनैतिक खुलासे का ‘गपशप’ कॉलम ‘जनसत्ता’, ‘पंजाब केसरी’, ‘द पॉयनियर’ आदि से ‘नया इंडिया’ तक का सफर करते हुए अब चालीस वर्षों से अधिक का है। नई सदी के पहले दशक में ईटीवी चैनल पर ‘सेंट्रल हॉल’ प्रोग्राम की प्रस्तुति। सप्ताह में पांच दिन नियमित प्रसारित। प्रोग्राम कोई नौ वर्ष चला! आजाद भारत के 14 में से 11 प्रधानमंत्रियों की सरकारों की बारीकी-बेबाकी से पडताल व विश्लेषण में वह सिद्धहस्तता जो देश की अन्य भाषाओं के पत्रकारों सुधी अंग्रेजीदा संपादकों-विचारकों में भी लोकप्रिय और पठनीय। जैसे कि लेखक-संपादक अरूण शौरी की अंग्रेजी में हरिशंकर व्यास के लेखन पर जाहिर यह भावाव्यक्ति -

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