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विश्वासप्रगट या बौखलाहट?

लोकसभा में नरेंद्र मोदी का भाषण शुरूआत में अपने आप पर, अपनी उपलब्धियों और जनता के विश्वास का हवाला देने वाला था। उन्होने विपक्ष के अविश्वास प्रस्ताव को भगवान का आशीर्वाद बताया।देश की जनता को अखंड विश्वासी बताया। मतलब यह कि मेरा विश्वास जनता पर और जनता का विश्वास मेरे पर! और इसे मानने में हर्ज नहीं है। जनता का मूड और खासकर हिंदीभाषी प्रदेशों में लोगों का मूड ऐसा ही है। हिंदीभाषी हिंदुओंऔर देश के कोई 38 प्रतिशत मतदाताओं की मोदी के प्रति अंधभक्ति है। तभी सवाल है कि उन्हे सवा दो घंटे के अपने भाषण में विपक्ष और कांग्रेस के इतने क्रियाकर्म की क्या जरूरत थी? नरेंद्र मोदी ने कोई 45 बार कांग्रेस का जिक्र किया। कांग्रेस और कांग्रेस के खानदान की हर तरह से ऐसी तैसी की।

सोचे, जब विपक्ष जर्जर है। खुद मोदी यूपीए का बेगलूरू में अंतिम संस्कार हुआ बता रहे है। उसे खंडहर बता रहे है। सत्ता पक्ष चौके-छक्के मारते हुए है जबकि विपक्ष नो बॉल करता हुआ। विपक्षियों को बहीखाता बिगड़ा हुआ है। वे शुतुरमुर्गी है। विपक्ष के काले कपड़ों से मोदी का मंगल है। विपक्ष जो चाहेंगा उससे उलटा मेरा भला होगा, हमारा कल्याण होगा का उनका अनुभव है। तो अपने पर ईश्वर के इस वरदान (विपक्ष) पर नरेंद्र मोदी को वह सब क्यों बोलना था जिससे उनकी जुबान गंदी हुई। उनका भाषण सड़क छाप हुआ?

राहुल गांधी या विपक्ष कुछ भी बोले, यदि इससे उनका (मोदी का) भाग्योदय था और वरदान है तो नरेंद्र मोदी को वैसा ही नहीं बोलना था जैसे बतौर प्रधानमंत्री अटलबिहारी वाजपेयी ने या इंदिरा गांधी ने अपने खिलाफ रखे गए अविश्वास प्रस्तावों पर बोला?

हां, याद करें, सन् 2014 या 2019 के संसद में बतौर प्रधानमंत्री के खुद नरेंद्र मोदी के शुरूआती तथा अविश्वास प्रस्ताव के भाषण को। सन् 2019 में भी नरेंद्र मोदी का कांग्रेस पर हमला था। पर इस अंदाज में कि ये मेरे खिलाफ अविश्वास प्रस्ताव लाए हुए है जबकि खुद बिना आत्म विश्वास के है। ये कैसे देश की रक्षा करेंगे। गांधी परिवार का इतिहास सुभाष चंद्र बोस, सरदार पटेल, चरणसिंह, मोरारजी आदि सभी के साथ धोखे का रहा है। तब राफेल का मामला था और राहुल गांधी भाषण के बाद मोदी के पास जा कर उनके गले लगे थे।

ठिक पांच वर्ष बाद राहुल गांधी ने क्या बोला? नरेंद्र मोदी ने सवा दो घंटे क्या कहा? कुछ मामलों में भाषण के एक ही पैटर्न के बावजूद नरेंद्र मोदी और अमित शाह दोनों की विपक्ष और खासकर कांग्रेस व इंडिया एलायंस से बनी घनघोर-जानी चिढ़ कई जुमलों से जाहिर हुई है। चेहरे से भी झलकी।

दरअसल, मणिपुर मसले पर विपक्ष ने एकजुटता से नरेंद्र मोदी के मौन को मुद्दा बनाया।इससे मोदी-अमित शाह दोनों में झुंझलाहट बनी। विपक्ष में किसी ने बतौर गृह मंत्री अमित शाह पर ठीकरा नहीं फोड़ा। कोई नहीं बोला कि बतौर गृहमंत्री वे दोषी है और इस्तीफा दे। तभी अमित शाह को गिला यह था कि विपक्ष उन्हे सुनने को तैयार नहीं। अमित शाह ने अपने भाषण में बाकायदा  कहा कि विपक्ष मणिपुर जैसे मुद्दे पर गृह मंत्री को सुनना नहीं चाहता। आप (गृह मंत्री) मुझे चुप नहीं कर सकते हैं।

जाहिर है विपक्ष ने पहले दिन से मणिपुर पर नरेंद्र मोदी के बोलने का मांग पकड़ी हुई थी।जब अमित शाह ने संसद में अपना भाषण दिया तो मामूली बात नहीं जो कांग्रेस के अधिरंजन चौधरी ने कहा कि हमें डीएम को सुनना है कोतवाल को नहीं!

तभी नरेंद्र मोदी ने कांग्रेस और विपक्ष को घमंडिया कहा तथा इंडिया एलायंस पर बरसे। इसके पीछे नवंबर बाद की उन घटनाओं का भी योगदान है जो मोदी राज के लिए अप्रत्याशित है। घटनाएं क्योंकि अब नरेंद्र मोदी के कैलेंडर व रणनीति माफिक नहीं हो रही है तो नित नई परेशानी है।सोचे, अरविंद केजरीवाल और कांग्रेस के तालमेल में राज्यसभा में जब डा मनमोहन सिंह पहुंचे तो कितने परेशान हुए होंगे। कर्नाटक में बुरी हार हुई और राहुल गांधी जेल की बजाय लोकसभा लौट आए तो बौखलाना स्वभाविक।तभी नरेंद्र मोदी ससंद में वह बोले जो हिसाब प्रधानमंत्री पद पर बैठे व्यक्ति को कतई नहीं बोलना चाहिए। पीएम के लिए तो सडक की नुक्कड सभा में भी ऐसा भाषण शोभादायी नहीं हो सकता।

क्या आप नहीं मानते?

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By हरिशंकर व्यास

मौलिक चिंतक-बेबाक लेखक और पत्रकार। नया इंडिया समाचारपत्र के संस्थापक-संपादक। सन् 1976 से लगातार सक्रिय और बहुप्रयोगी संपादक। ‘जनसत्ता’ में संपादन-लेखन के वक्त 1983 में शुरू किया राजनैतिक खुलासे का ‘गपशप’ कॉलम ‘जनसत्ता’, ‘पंजाब केसरी’, ‘द पॉयनियर’ आदि से ‘नया इंडिया’ तक का सफर करते हुए अब चालीस वर्षों से अधिक का है। नई सदी के पहले दशक में ईटीवी चैनल पर ‘सेंट्रल हॉल’ प्रोग्राम की प्रस्तुति। सप्ताह में पांच दिन नियमित प्रसारित। प्रोग्राम कोई नौ वर्ष चला! आजाद भारत के 14 में से 11 प्रधानमंत्रियों की सरकारों की बारीकी-बेबाकी से पडताल व विश्लेषण में वह सिद्धहस्तता जो देश की अन्य भाषाओं के पत्रकारों सुधी अंग्रेजीदा संपादकों-विचारकों में भी लोकप्रिय और पठनीय। जैसे कि लेखक-संपादक अरूण शौरी की अंग्रेजी में हरिशंकर व्यास के लेखन पर जाहिर यह भावाव्यक्ति -

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