लोकतंत्र की सेहत बताने वाली अंतरराष्ट्रीय एजेंसियां भारत की रैंकिंग लगातार कम करती जा रही हैं। दुनिया की जानी मानी संस्था वी-डेम की ताजा रिपोर्ट के मुताबिक डेमोक्रेसी इंडेक्स में भारत 179 देशों की सूची में सौवें स्थान पर है। इस संस्था ने भारत को ‘निर्वाचित निरंकुशता’ की श्रेणी में रखा है। इसी को अघोषित इमरजेंसी कहा जा रहा है। सवाल है कि क्या ‘निर्वाचित निरंकुशता’ के बावजूद भारत में काम वैसे हो रहे हैं, जैसे घोषित इमरजेंसी के कथित अनुशासन पर्व में था? सारे आंकड़े इशारा कर रहे हैं कि काम की बजाय सरकार शत-प्रतिशत प्रोपेगेंडा केंद्रीत है। ‘न खाऊंगा, न खाने दूंगा’ के नारे के बावजूद भारत भ्रष्टाचार के वैश्विक इंडेक्स में लगातार नीचे गिरता जा रहा है।
और जब भ्रष्टाचार की रैंकिंग नहीं सुधरी तो भारत सरकार ने रैंकिंग बनाने वाली संस्था एमनेस्टी इंटरनेशनल को ही भारत में बंद करा दिया। उसके खाते वगैरह सील कर दिए और कार्यालयों पर ताला लगवा दिया। उसके कर्मचारियों से एजेंसियों के चक्कर कटवाए। हालांकि इससे भी भ्रष्टाचार के मामले में भारत की रैंकिंग नहीं सुधरी। ट्रेनों का समय पर चलना अब भी भारत के लोगों के लिए एक दुर्लभ चीज है। पहले के मुकाबले बदलाव यह हुआ है कि हर नई ट्रेन को प्रधानमंत्री खुद हरी झंडी दिखा रहे हैं। इंदिरा गांधी ऐसा नहीं करती थी। अब ट्रेन हादसे वगैरह होने पर रेल मंत्री वहां पहुंच कर रील बनवाते हैं। जिम्मेदारी किसी की नहीं होती है। हाल में अहमदाबाद में भीषण हवाई दुर्घटना हुई तो प्रधानमंत्री से लेकर नागरिक विमानन मंत्री वहां पहुंच कर अलग अलग एंगल से वीडियो शूट करा रहे थे और रील बनवा रहे थे।
काम के नाम पर ताजा उपलब्धि यह है कि राजधानी दिल्ली में एक दिन में 3,433 गड्ढे भरे गए। मंत्री, विधायक सब गड्ढे भरे जाने की तस्वीरें और वीडियो शेयर कर रहे थे। गड्ढों की बात चली तो गुजरात का ध्यान आया, जहां मानसून की बारिश हो रही है और हाईवे पर बड़े बड़े गड्ढों की वजह से अहमदाबाद-मुंबई हाईवे पर 15 किलोमीटर से ज्यादा लंबा जाम लग गया था। लेकिन प्रचार में कोई कमी नहीं है। प्रधानमंत्री पिछले दिनों बिहार के दौरे पर गए तो कहा गया कि 10 हजार करोड़ रुपए की परियोजनाओं का उद्घाटन औरर शिलान्यास करेंगे। बाद में पता चला कि सारी परियोजनाएं सीवरेज और सीवर ट्रीटमेंट प्लांट की थीं। हर शहर में दो-दो, चार-चार सौ करोड़ की परियोजनाएं थीं, जिनका उद्घाटन और शिलान्यास खुद प्रधानमंत्री कर रहे थे।
जहां तक स्कूल, कॉलेजों की स्थिति या सरकारी दफ्तरों के कामकाज की बात है तो ज्यादातर जगह सब कुछ भगवान भरोसे है। नारे जरूर खूब सारे गढ़ दिए गए हैं। यह भी संयोग है कि इमरजेंसी में भी खूब नारे गढ़े गए थे। उसी समय ‘बातें कम काम ज्यादा’, ‘सावधानी हटी दुर्घटना घटी’, ‘अनुशासन ही देश को महान बनाता है’ आदि नारे गढ़े गए थे। अब भी बहुत सारे नारे गढ़े गए हैं। ‘न खाऊंगा न खाने दूंगा’, ‘मेक इन इंडिया’, ‘बेटी बचाओ बेटी पढ़ाओ’ आदि। लेकिन इन नारे को असल में कोई असर नहीं दिख रहा है। लिंगानुपात में सुधार नहीं हुआ है और महिलाओं के खिलाफ अपराध पर कोई अंकुश नहीं है। ‘मेक इन इंडिया’ के नाम पर भारत में कंपनियां चीन से आए उत्पाद असेम्बल कर रही हैं और बेच रही हैं।