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एक देश एक परीक्षा में धोखे

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युवाओं के साथ धोखे का यह सिर्फ एक पहलू है। अगर केंद्र सरकार की बात करें तो ‘एक देश, एक कुछ भी’ की जिद में सरकार ने ‘एक देश, एक परीक्षा’ की घोषणा की थी। इसके लिए नेशनल टेस्टिस एजेंसी यानी एनटीए का गठन किया गया था। देश की सारी प्रवेश और प्रतियोगिता परीक्षाओं का जिम्मा इसी एजेंसी को दिया गया। जब एक के बाद एक परीक्षा में गड़बड़ियां होने लगीं तब इस एजेंसी की हकीकत सामने आई। पता चला कि इस एजेंसी के अधिकारियों और कर्मचारियों का अपना कोई काडर नहीं बना है। इधर उधर के विभागों से एक दर्जन अधिकारी लाकर इस एजेंसी में बैठा दिए गए। किराए के मकान में इसका कार्यालय शुरू हुआ और डेपुटेशन पर लाए गए कर्मचारियों और अधिकारियों ने आउटसोर्सिंग के जरिए काम कराना शुरू किया। सोचें, जिस एजेंसी के ऊपर देश के करोड़ों युवाओं के भविष्य का जिम्मा डाला गया था उसका सारा काम आउटसोर्सिंग से चल रहा है।

इस साल सबसे बड़ा विवाद मेडिकल में दाखिले के लिए होने वाली प्रवेश परीक्षा नीट, 2024 के पेपर लीक का था। इस परीक्षा का आयोजन एनटीए को कराना था। लेकिन जून के पहले हफ्ते में परीक्षा के पेपर लीक होने की खबर आई। सिर्फ पेपर लीक नहीं, बल्कि परीक्षा केंद्रों के अपने हिसाब से चयन, कुछ परीक्षा केंद्रों पर खास छात्रों के लिए परीक्षा आयोजन करने जैसी गड़बड़ियां भी सामने आईं। गुजरात के एक खास शहर के परीक्षा केंद्र को बिहार, झारखंड से लेकर कर्नाटक तक के छात्रों ने चुना था। सो, गुजरात से लेकर बिहार और झारखंड सहित कई अनेक शहरों में पेपर लीक का रैकेट पकड़ा गया। परीक्षा रद्द करनी पड़ी और तभी एनटीए की जांच और उसके कामकाज की समीक्षा भी शुरू हुई। तभी उसकी हकीकत सामने आई। अंत में इस एजेंसी की जांच करने वाली कमेटी ने कहा कि सिर्फ उच्च शिक्षण संस्थानों में दाखिले के लिए होने वाली प्रवेश परीक्षा कराने का जिम्मा ही एनटीए को दिया जाए और नौकरी के लिए प्रतियोगिता परीक्षाएं दूसरी एजेंसियां कराएं।

सोचें, कितने साल बरबाद करने और समूची परीक्षा प्रक्रिया को अविश्वसनीय बनाने के बाद सरकार ने यह फैसला किया है।

पूरे देश में उच्च और तकनीकी शिक्षण संस्थानों में दाखिले की परीक्षा हो या नौकरियों के लिए होने वाली प्रतियोगिता परीक्षा हो, सबकी विश्वसनीयता कम हो गई है। बिहार और उत्तर प्रदेश दोनों जगह परीक्षा कार्यक्रम जारी होने के बाद छात्रों को सामान्यीकरण की जानकारी दी गई थी। पेपर लीक होने से लेकर, परीक्षा केंद्र पर कुछ खास छात्रों को मदद पहुंचाने और पेपर की जांच में गड़बड़ी से लेकर नतीजे आने के बाद अदालतों में उसको चुनौती देने जैसे कई पड़ाव  हैं, जहां नतीजे अटक सकते हैं। उसके बाद छात्र मामला सुलझने का इंतजार करते हैं और कई मामलों में ऐसा होता है कि मामला सुलझता है उससे पहले हजारों छात्रों की उम्र निकल जाती है। पेपर लीक की वजह से हो या नतीजों में गड़बड़ी की वजह से हो, हर परीक्षा रद्द होने पर बड़ी संख्या में छात्र परीक्षा देने से वंचित हो जाते हैं।

By हरिशंकर व्यास

मौलिक चिंतक-बेबाक लेखक और पत्रकार। नया इंडिया समाचारपत्र के संस्थापक-संपादक। सन् 1976 से लगातार सक्रिय और बहुप्रयोगी संपादक। ‘जनसत्ता’ में संपादन-लेखन के वक्त 1983 में शुरू किया राजनैतिक खुलासे का ‘गपशप’ कॉलम ‘जनसत्ता’, ‘पंजाब केसरी’, ‘द पॉयनियर’ आदि से ‘नया इंडिया’ तक का सफर करते हुए अब चालीस वर्षों से अधिक का है। नई सदी के पहले दशक में ईटीवी चैनल पर ‘सेंट्रल हॉल’ प्रोग्राम की प्रस्तुति। सप्ताह में पांच दिन नियमित प्रसारित। प्रोग्राम कोई नौ वर्ष चला! आजाद भारत के 14 में से 11 प्रधानमंत्रियों की सरकारों की बारीकी-बेबाकी से पडताल व विश्लेषण में वह सिद्धहस्तता जो देश की अन्य भाषाओं के पत्रकारों सुधी अंग्रेजीदा संपादकों-विचारकों में भी लोकप्रिय और पठनीय। जैसे कि लेखक-संपादक अरूण शौरी की अंग्रेजी में हरिशंकर व्यास के लेखन पर जाहिर यह भावाव्यक्ति -

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