संसद के विशेष सत्र के साथ ऐसे किसी मकसद की बात अपने को नहीं जमती है। हालांकि मोदी है तो सब मुमकिन है (जैसे अमृतकाल, विश्वगुरू, विश्व पिता आदि-आदि) बावजूद इसके संविधान संशोधन के लिए दोनों सदनों में दो-तिहाई बहुमत चाहिए। सत्र पांच दिन का है और जब संसद के सामान्य सत्र में शांति से काम नहीं होता है तो बिना एजेंडे के विशेष सत्र में शुरूआती दिन विपक्ष अडानी, मंहगाई, मणिपुर आदि पर हंगामा न करें, यह भला कैसे संभव? चारण मीडिया ने सभी चुनाव एक साथ कराने, महिला आरक्षण बिल, आरक्षण के भीतर आरक्षण या भारत को हिंदू राष्ट्र घोषित करने या संसदीय व्यवस्था की जगह नई व्यवस्था मतलब राष्ट्रपति प्रणाली के प्रस्ताव या किसी अफसर के लिए विशेष पोस्ट क्रिएट करने जैसी कई अटकले चलाई है। इन सबका मतलब नहीं है।
क्यों? पहली बात, छोटे काम अध्यादेश जारी करके भी हो सकते है। ऐसे काम के लिए विशेष सत्र बेतुकी बात है। फिर महिने बाद यों भी संसद का शीतकालीन सत्र होना है। दो-तिहाई बहुमत से पास होने वाले संविधान संशोधन का काम पांच दिन के सत्र में संभव नहीं है।
तभी अपना मानना है कि जी-20 के सफलतापूर्वक संपन्न होने, चंद्रयान के मिशन की वाह के धन्यवाद प्रस्ताव जैसे मकसद का यह सत्र होगा। इसके हवाले प्रधानमंत्री भाषण करके अपना यशोगान बनवाएंगे। सर्वसम्मति से भारत के वैज्ञानिकों व प्रधानमंत्री की वाह का प्रस्ताव पारित होगा। मेरा मानना है कि यदि चीन के राष्ट्रपति शी जिनपिंग जी-20 की बैठक में दिल्ली नहीं आते है। रूस के पुतिन और चीन की शी जिनपिंग गैर-मौजूद रह प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी का मजा किरकिरा करते है तो संभव है अरूणाचल प्रदेश व अक्साईचीन को नए नक्शे में दिखलाने की चीनी हिमाकत की भत्सर्ना का प्रस्ताव संसद में रखवाया जाए। स्वभाविक जो वह सर्वसम्मति से पारित हो।
अपनी जगह दमदार तर्क है कि विधानसभा चुनावों में भाजपा को मुश्किल है। इसलिए मोदी विधानसभा व लोकसभा चुनाव साथ कराने की उधेडबुन में है। ध्यान रहे इस विशेष सत्र के बाद नवंबर-दिशंबर में शीतकालीन सत्र की जरूरत नहीं होगी। पांच विधानसभा चुनावों में से यदि भाजपा दो-तीन विधानसभा चुनावों में हारती है तो बड़ी किरकिरी होगी। इसलिए मोदी-शाह सोच सकते है कि राममंदिर की प्राण प्रतिष्ठा के बाद फरवरी-मार्च में विधानसभा और लोकसभा चुनाव साथ-साथ हो। सरकार को चुनाव आयोग की चिंता नहीं है। दिक्कत लोगों के मूड से है। विधानसभा चुनाव टाले या वन नेशन, वन इलेक्शन जैसी बातों से जनता में यह मैसेज बनेगा कि मोदी सरकार विधानसभाओं में हार रही है इसलिए इधर-उधर के रास्ते तलाश रही है। ग्राफ और डाउन होगा। अपना मानना है कि मोदी-शाह विधानसभा चुनावों को जीतने के विश्वास में है। जीतने के लिए येन-केन सभी जुगाड़ होंगे। तभी विशेष सत्र से हवा बनाने के मतलब वाहवाही, विश्वगुरू बनने, विश्व पिता बनने जैसे यशोगान होंगे न कि कोई ठोस काम या परिवर्तन।