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गपशप

विपक्ष के लिए मौका है विशेष सत्र

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पता नहीं केंद्र सरकार और सत्तारूढ़ भारतीय जनता पार्टी ने संसद का विशेष सत्र बुलाने का फैसला करने से पहले इस पर विचार किया या नहीं कि विपक्ष भी इसे मौके में तब्दील कर सकता है। संसद के विशेष सत्र से विपक्ष को सरकार पर हमला करने का मौका और मंच मिलेगा। अगर किसी भी मुद्दे पर चर्चा होती है तो सरकार विपक्षी पार्टियों के सांसदों को बोलने से नहीं रोक सकती है। अगर बोलने से रोकती है तो विपक्ष को दबाने और लोकतंत्र कमजोर करने का नैरेटिव बनाने में विपक्ष को मदद मिलेगी। ध्यान रहे मानसून सत्र में अविश्वास प्रस्ताव पर या उससे पहले बजट सत्र में राष्ट्रपति के अभिभाषण पर चर्चा के दौरान कांग्रेस नेता राहुल गांधी के भाषण की काफी तारीफ हुई थी और सोशल मीडिया के अलग अलग प्लेटफॉर्म पर बड़ी संख्या में लोगों ने उसे देखा था। दोनों सदनों में विपक्ष के दूसरे नेताओं के भाषण भी चर्चा में रहते हैं।

परिस्थितियों के कारण विपक्ष के पास इस समय कई ऐसे मुद्दे हैं, जिन पर सरकार घिरेगी। संसद सत्र में विपक्षी पार्टियां इन मुद्दों का जम कर इस्तेमाल कर सकती हैं। एक मुद्दा अडानी समूह का है। विपक्ष इस साल जनवरी में संसद के बजट सत्र के समय से इस मुद्दे को उठा रहा है। जब हिंडनबर्ग की रिपोर्ट आई थी तभी विपक्षी पार्टियों ने इसकी जांच के लिए संयुक्त संसदीय समिति गठित करने की मांग की थी। अब राहुल गांधी ने प्रेस कांफ्रेंस करके फिर से कहा है कि सरकार अडानी समूह की जांच के लिए संयुक्त संसदीय समिति यानी जेपीसी का गठन करे। विशेष सत्र में विपक्ष जेपीसी की मांग लेकर हंगामा करेगा। अगर संसद में यह मुद्दा उठाने की इजाजत नहीं दी गई तो संसद भवन के परिसर में इस मुद्दे पर प्रदर्शन होगा।

पिछली बार सरकार यह कहते हुए जेपीसी का गठन टाल रही थी कि सुप्रीम कोर्ट में इस मामले की सुनवाई हो रही है। सुप्रीम कोर्ट ने इसकी जांच के लिए विशेषज्ञों की एक कमेटी बना दी थी। साथ ही बाजार नियामक सेबी को भी जांच करने के लिए कहा था। अब विशेषज्ञों की कमेटी की रिपोर्ट भी आ गई है और पांच महीने के जांच के बाद सेबी ने भी अपनी रिपोर्ट दे दी है। इसके बाद अडानी समूह को लेकर नई रिपोर्ट आई है। इसमें कृत्रिम तरीके से शेयरों के दाम बढ़ाने के साथ-साथ कई एजेंसियों की मिलीभगत की ओर भी इशारा किया गया है। राहुल गांधी ने भी अपनी प्रेस कांफ्रेंस में सवाल उठाया कि सेबी के जिस अधिकारी ने अडानी समूह की जांच की वे बाद में कैसे अडानी समूह की मीडिया कंपनी में निदेशक बन गए? सो, ऐसा लग रहा है कि विशेष सत्र बुला कर सरकार ने विपक्ष को यह मुद्दा उठाने का मौका दे दिया है।

चीन का मुद्दा सरकार को बहुत भारी पड़ सकता है। संसद का विशेष सत्र बुलाए जाने से ठीक पहले चीन ने अपना आधिकारिक नक्शा जारी किया, जिसमें उसने अरुणाचल प्रदेश और अक्साई चिन को अपना हिस्सा बताया। भारत की ओर से कूटनीतिक प्रतिरोध दर्ज कराने के बाद चीन के विदेश मंत्री के प्रवक्ता ने बयान दिया तो कहा कि भारत इस पर ओवररिएक्ट कर रहा है, अरुणाचल और अक्साई चिन कानूनी रूप से चीन का हिस्सा हैं। सोचें, यह विश्वगुरू भारत की हकीकत है! इसके बाद यह भी खबर आई कि चीन अक्साई चिन में सुरंग बना रहा है। राहुल गांधी ने चीन के मुद्दे पर सरकार को घेरा और कहा कि चीन भारत की जमीन हड़प रहा है लेकिन सरकार चुपचाप बैठी है। सो, चीन का मुद्दा भी विपक्षी पार्टियां संसद में जोर-शोर से उठाएंगी।

इसी तरह महंगाई का मुद्दा है। संसद का मानसून सत्र खत्म होने के बाद जुलाई महीने की खुदरा महंगाई का डाटा आया, जिसमें बताया गया कि महंगाई दर 7.7 फीसदी से ज्यादा हो गई है। यह रिर्जव बैंक की ओर से तय की गई छह फीसदी की अधिकतम सीमा से काफी ज्यादा है। खराब मानसून और अल नीनो की वजह से खरीफ की फसल प्रभावित हुई है। इसका असर आने वाले दिनों में दिखेगा। तभी सरकार महंगाई काबू में करने और अनाज की उपलब्धता सुनिश्चित करने के लिए चावल के निर्यात पर पाबंदी लगा रही है। प्याज के निर्यात को भी सीमित किया गया है। सो, खाद्यान्न को लेकर सरकार की नीतियां और महंगाई का मुद्दा भी विपक्ष उठाएगा, जिस पर सरकार के लिए जवाब देना मुश्किल होगा।

इसके अलावा मणिपुर का मुद्दा है। जिस दिन केंद्र सरकार ने विशेष सत्र बुलाने का ऐलान किया उसी दिन राज्य में कई जगह गोलीबारी की खबर आई और एक लोकप्रिय लोक गायक सहित पांच लोग मारे गए। सरकार शांति बहाली का दावा कर रही थी लेकिन गुरुवार की घटना ने सरकार की पोल खोल दी। जैसे तैसे राज्य सरकार ने विधानसभा का एक दिन का विशेष सत्र बुलाया था लेकिन वह सत्र भी नहीं चल सका। कुकी-जोमी समुदाय के विधायकों ने इसका बहिष्कार किया। सरकार ने हंगामे की वजह से बिना सदन में पेश किए एक प्रस्ताव स्वीकार करने का ऐलान कर दिया, जिसमें बातचीत और संवैधानिक तरीके से विवाद सुलझाने की बात कही गई है। लेकिन हकीकत यह है कि राज्य में कोई सुलह समझौता होता नहीं दिख रहा है और मणिपुर से सटे मिजोरम में विधानसभा का चुनाव होना है।

By हरिशंकर व्यास

मौलिक चिंतक-बेबाक लेखक और पत्रकार। नया इंडिया समाचारपत्र के संस्थापक-संपादक। सन् 1976 से लगातार सक्रिय और बहुप्रयोगी संपादक। ‘जनसत्ता’ में संपादन-लेखन के वक्त 1983 में शुरू किया राजनैतिक खुलासे का ‘गपशप’ कॉलम ‘जनसत्ता’, ‘पंजाब केसरी’, ‘द पॉयनियर’ आदि से ‘नया इंडिया’ तक का सफर करते हुए अब चालीस वर्षों से अधिक का है। नई सदी के पहले दशक में ईटीवी चैनल पर ‘सेंट्रल हॉल’ प्रोग्राम की प्रस्तुति। सप्ताह में पांच दिन नियमित प्रसारित। प्रोग्राम कोई नौ वर्ष चला! आजाद भारत के 14 में से 11 प्रधानमंत्रियों की सरकारों की बारीकी-बेबाकी से पडताल व विश्लेषण में वह सिद्धहस्तता जो देश की अन्य भाषाओं के पत्रकारों सुधी अंग्रेजीदा संपादकों-विचारकों में भी लोकप्रिय और पठनीय। जैसे कि लेखक-संपादक अरूण शौरी की अंग्रेजी में हरिशंकर व्यास के लेखन पर जाहिर यह भावाव्यक्ति -

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