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विपक्ष के कारण विशेष सत्र

आयोग

संसद के विशेष सत्र को लेकर चल रहे गेसिंग गेम में कई दिलचस्प पहलू हैं। हेडलाइन मैनेजमेंट या विपक्ष में फूट डालने के लिए किए जाने वाले तरह तरह के भाजपा प्रयासों के इतिहास को देखते हुए यह भी लग रहा है कि विपक्षी गठबंधन ‘इंडिया’ को ध्यान में रख कर विशेष सत्र आहूत है। विशेष सत्र से विपक्ष कई तरह से जुड़ा हो सकता है। एक तो हेडलाइन मैनेजमेंट की संभावना है। विशेष सत्र की घोषणा ऐन 31 अगस्त को की गई, जब मुंबई में विपक्षी पार्टियों की बैठक शुरू हुई। उधर विपक्ष के 28 नेता मुंबई पहुंचे और इधर संसदीय कार्य मंत्री ने सोशल मीडिया में विशेष सत्र बुलाने की घोषणा कर डाली।

हेडलाइन मैनेजमेंट एक दूसरे कारण से भी जरूरी लग रहा है। गुरुवार को ही ‘द गार्डियन’ और ‘द फाइनेंशियल टाइम्स’ ने अडानी समूह को लेकर फिर से रिपोर्ट छापी। इसमें कहा गया कि अडानी समूह से जुड़े लोगों ने खुद ही लाखों डॉलर का निवेश करके अपनी कंपनी के शेयर खरीदे और शेयर के दाम बढ़ाए। इस रिपोर्ट ने एक तरह से हिंडनबर्ग रिपोर्ट की पुष्टि की है। भाजपा को पता था कि यह रिपोर्ट आने के बाद विपक्ष हमलावर होगा। राहुल गांधी ने मुंबई में प्रेस कांफ्रेंस करके केंद्र सरकार पर हमला बोला और कई तीखे सवाल पूछे। लेकिन संसद का विशेष सत्र बुलाने की घोषणा के कारण मीडिया ने सारा अटेंशन उधर कर दिया। विपक्ष की मुंबई बैठक में भी सस्पेंस बन गया और ज्यादा चर्चा इसी बात की होती रही कि विशेष सत्र किस मकसद से बुलाया गया है। यह एक तीर से दो शिकार करने वाली बात है। एक तरफ अडानी समूह को लेकर आई रिपोर्ट पर उतना फोकस नहीं बना तो दूसरी ओर विपक्ष की तीसरी और अहम बैठक भी राजनीतिक चर्चा में दूसरे नंबर पर चली गई।

विशेष सत्र को लेकर जो अटकलें लगाई जा रही हैं उनमें महिला आरक्षण और एक साथ चुनाव की बात भी विपक्ष को ध्यान में रख कर की जा रही है। ये दोनों ऐसे मुद्दे हैं, जिन पर विपक्षी पार्टियों में फूट पड़ सकती है। ध्यान रहे राष्ट्रीय जनता दल और समाजवादी पार्टी ने हमेशा महिला आरक्षण का विरोध किया है। वे महिला आरक्षण के भीतर पिछड़ी, दलित, आदिवासी महिलाओं के लिए आरक्षण चाहते हैं। राजद के सांसद ने इसी वजह से संसद में महिला आरक्षण बिल की कॉपी फाड़ी थी। अगर महिला आरक्षण का बिल आता है तो विपक्षी पार्टियों में मतभेद हो सकता है। दूसरे, अगर एक साथ सारे चुनाव कराने की बात होती है तब भी विपक्षी पार्टियों में मतभेद हो सकता है क्योंकि कई पार्टियां लोकसभा चुनाव में सीटों के बंटवारे और तालमेल के लिए तैयार हैं लेकिन राज्यों के चुनाव में उनका नजरिया दूसरा है। कांग्रेस के साथ लड़ने को जो पार्टियां तैयार हैं वे भी विधानसभा में उससे अलग लड़ना चाहेंगी। हालांकि एक साथ चुनाव के लिए कोई चर्चा कराने या बिल लाए जाने की संभावना बहुत कम है।

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