मोदी-शाह को नहीं चाहिए संघ!

मोदी-शाह को नहीं चाहिए संघ!

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हां, लोकसभा चुनाव के दौरान भाजपा अध्यक्ष जेपी नड्डा का कहा गया यह वाक्य जस का तस सत्य है कि पार्टी को अब आरएसएस की आवश्यकता नहीं है। मैं इसका हवाला अभी इसलिए दे रहा हूं कि क्योंकि इन दिनों व्यर्थ में सोशल मीडिया पर इस नैरेटिव की बाढ़ है कि मोदी का कोई विरोधी भाजपा का अध्यक्ष बनने वाला है। संघ को खुश करने के लिए मोदी-शाह उसकी लल्लोचप्पो कर रहे हैं। संघ माफिक कोई अध्यक्ष बनेगा। सो, कभी संजय जोशी का हल्ला तो कभी वसुंधरा राजे का हल्ला। संघ जैसे नरेंद्र मोदी को रिटायर करा देगा या मोदी ने संजय जोशी को लंच पर बुलाया। सारी बकवास तथा सौ टका झूठी बाते है। नोट कर लें नरेंद्र मोदी और अमित शाह ने भाजपा से आरएसएस को रिटायर कर दिया है। भाजपा अध्यक्ष वही होगा जो नरेंद्र मोदी तय करेंगे और संभव है इसमें अमित शाह माफिक खेला हो। फिर भले हरियाणा, जम्मू कश्मीर, झारखंड व महाराष्ट्र में भाजपा का सूपड़ा क्यों न साफ हो।

सवाल है तब कैसे देवेंद्र फड़नवीस, संजय जोशी, वसुंधरा राजे आदि के नाम सोशल मीडिया में चले हैं या चल रहे हैं? यह मोदी-शाह प्रेरित ही हल्ला है? ताकि आरएसएस नरेंद्र मोदी के आगे डिफेंसिव बना रहे? मोदी अपने सुरेश सोनी जैसे दूतों से या बीएल संतोष, अरूण कुमार आदि को कह सकें कि हमें क्या जरूरत है अपने नाम बताने की। जब संघ की ओर से उनके विरोधियों के नाम चलाए जा रहे हैं तो जरा दिखा दें भाजपा में अपना अध्यक्ष बना कर!

हां, दिसंबर में ऐसा शक्ति परीक्षण होगा। तब नरेंद्र मोदी चुपचाप अपने किसी करीबी या संघ को चिढ़ाने के लिए राम माधव को भाजपा अध्यक्ष बना देंगे। और भी एक दो नाम हैं, जिनकी फिलहाल चर्चा ठीक नहीं होगी। एक पेंच अमित शाह का भी है। वे भी नरेंद्र मोदी और संघ के सीधे गतिरोध के बीच अपने खास को अध्यक्ष बनाने के जुगाड़ में हैं। वे भी मौके का फायदा उठा कर अपने चहेते पर सहमति बनवा सकते हैं।

तो सोशल मीडिया में चल रहे नाम और नैरेटिव में मोदी-शाह के मीडिया प्रबंधन के एंगल हैं। असल बात है मोदी को संघ की जरूरत नहीं है। इस हकीकत को नोट करें कि हरियाणा, जम्मू कश्मीर, झारखंड व महाराष्ट्र चुनाव में आरएसएस और उसके सहयोगी संगठनों के पदाधिकारियों की भागदौड़ जीरो है। संगठन मंत्री और संघ की ओर के अरूण कुमार, बीएल संतोष आदि की समन्वय बैठकें भले हो रही हों लेकिन संघ के पदाधिकारी गुस्साए, निराश और जात पांत में बंट गए हैं। जम्मू क्षेत्र में राजपूत और ब्राह्मण वोटों की गणित अहम है लेकिन इनके पुराने भाजपाई वोट भी इस समय एक दूसरे से बिदके हुए हैं।

हिसाब से जम्मू क्षेत्र में अनुच्छेद 370 खत्म होने की हकीकत में मोदी, शाह की हवा होनी चाहिए लेकिन अमित शाह को पसीना बहाना पड़ रहा है। नरेंद्र मोदी द्वारा अमित शाह से पंगा लिए हुए राम माधव को श्रीनगर में बैठाने के बावजूद जम्मू क्षेत्र में अमित शाह चुनाव जीतने के लिए जी तोड़ मेहनत कर रहे हैं। अपने घोर विरोधी योगी आदित्यनाथ को भी राजपूत वोटों के लिए जम्मू में उतारा है तो वही राजनाथ सिंह भी प्रचार में हैं। वही ब्राह्मण वोटों के लिए नीतिन गडकरी के दौरे हैं। लेकिन इस सबके बीच संघ के संगठनों के पदाधिकारी तमाशबीन या उदासीन बताए जा रहे हैं।

उस नाते जम्मू कश्मीर राज्य मोदी-शाह बनाम संघ की संवादहीनता का एक केस स्टडी राज्य है। मोदी और शाह ने एक तरह से संघ को चिढ़ाते हुए अभियान बनाया। नरेंद्र मोदी ने राम माधव के जरिए कश्मीर घाटी के छुटभैयों को चुनाव में उतार वोट काटने की रणनीति पर अमल कराया तो अमित शाह ने अपने हिसाब में जमात, इंजीनियर राशिद, बुखारी आदि से चुनावी बिसात बिछाई। वही जम्मू क्षेत्र में अपनी तह उम्मीदवारों व दलबदलुओं का सहारा लिया।

इसलिए इन विधानसभा चुनावों में भाजपा अध्यक्ष जेपी नड्‍डा का यह कहा सौ टका सही साबित है कि भाजपा को अब आरएसएस की जरूरत नहीं है। इसका अनुमान हरियाणा में भी लग सकता है। हरियाणा में नरेंद्र मोदी ने अपने मनोहर लाल खट्टर के सुपुर्द सब कुछ कर रखा है। खट्टर सर्वेसर्वा हैं और बतौर व्यवस्थापक केंद्रीय मंत्री के नाते धर्मेंद्र प्रधान हैं वैसे ही जैसे जम्मू कश्मीर में जी किशन रेड्डी हैं। अमित शाह अपनी तह हरियाणा से इसलिए बचे हुए हैं क्योंकि उन्हें पता है कि वहां नतीजा क्या आना है। इन दो राज्यों के बाद के झारखंड और महाराष्ट्र की चुनाव तैयारियों में भी ऐसी ही स्थिति होनी है। दोनों राज्यों में भाजपा को संघ की जरूरत नहीं है। झारखंड का चुनाव पूरी तरह अमित शाह के हिमंता बिस्वा और नरेंद्र मोदी के बाबूलाल मरांडी के बूते है। वही महाराष्ट्र में मोदी, शाह अपने भूपेंद्र यादव व अश्विनी वैष्णव के जरिए सब कुछ अपने हाथ में लिए हुए हैं।

वैसे यदि यह अनहोनी हो कि जोड़ तोड़ से जम्मू कश्मीर में भाजपा की सरकार बने तो राम माधव को पार्टी अध्यक्ष बना मोदी वह कमाल करेंगे कि संघ और अमित शाह दोनों देखते रह जाएं। यदि ऐसा कमाल धमेंद्र प्रधान हरियाणा में दिखा दें तो उनकी भी अध्यक्ष पद की लॉटरी खुल सकती है। नरेंद्र मोदी अब संघ को बाईपास कर भाजपा में उस अगली पीढ़ी को तैयार करने की कोशिश में हैं, जिससे 2029 तक का उनका रास्ता साफ रहे तो अमित शाह के अनुकूल सब ढला हुआ हो।

बहरहाल, इन ख्यालों में ज्यादा नहीं भटकना चाहिए क्योंकि समय तेजी से बदल रहा है। भाजपा को चुनावों में इतने झटके मिलने हैं कि किसी को समझ नहीं आएगा कि यह मोदी की भाजपा है या संघ की भाजपा है या रामभरोसे की भाजपा!

Published by हरिशंकर व्यास

मौलिक चिंतक-बेबाक लेखक और पत्रकार। नया इंडिया समाचारपत्र के संस्थापक-संपादक। सन् 1976 से लगातार सक्रिय और बहुप्रयोगी संपादक। ‘जनसत्ता’ में संपादन-लेखन के वक्त 1983 में शुरू किया राजनैतिक खुलासे का ‘गपशप’ कॉलम ‘जनसत्ता’, ‘पंजाब केसरी’, ‘द पॉयनियर’ आदि से ‘नया इंडिया’ तक का सफर करते हुए अब चालीस वर्षों से अधिक का है। नई सदी के पहले दशक में ईटीवी चैनल पर ‘सेंट्रल हॉल’ प्रोग्राम की प्रस्तुति। सप्ताह में पांच दिन नियमित प्रसारित। प्रोग्राम कोई नौ वर्ष चला! आजाद भारत के 14 में से 11 प्रधानमंत्रियों की सरकारों की बारीकी-बेबाकी से पडताल व विश्लेषण में वह सिद्धहस्तता जो देश की अन्य भाषाओं के पत्रकारों सुधी अंग्रेजीदा संपादकों-विचारकों में भी लोकप्रिय और पठनीय। जैसे कि लेखक-संपादक अरूण शौरी की अंग्रेजी में हरिशंकर व्यास के लेखन पर जाहिर यह भावाव्यक्ति -

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