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‘बीहड़’ में किसकी, कब ‘आजादी’?

IndependenceImage Source: ANI

Independence: ‘गुलामी’ और ‘स्वतंत्रता’ दोनों मनुष्य जनित हैं! मनुष्य वह जानवर है, जिससे पृथ्वी पर गुलाम, पालतू, बंधुआ और ‘स्वतंत्र’ ‘आजाद’, ‘स्वच्छंद’ की विभिन्न किस्मों के विभिन्न वर्ग तथा सिस्टम बने हैं!

भारत के लोगों से ही वह कलियुगी बीहड़ (गुलामी का बुद्धिहीन तंत्र) है, जिसमें हिंदू फर्क नहीं कर पाते कि मुगलों, अंग्रेजों के कोतवाल तंत्र से न स्वतंत्रता है और न भय, भूख, भक्ति से मुक्ति संभव!

हमें स्वतंत्रता ने ताजी हवा नहीं दी। ताजा परिवेश नहीं दिया। स्वतंत्र बुद्धि नहीं दी। हिम्मत नहीं दी, निर्भयता नहीं दी। यह आत्मबोध नहीं बनाया कि सत्य और झूठ में क्या फर्क!

न ही कलेजा दिया भ्रष्टाचार, अन्याय और लूट के खिलाफ उठने का। आंखें नहीं दी गंदगी, बदसूरती को देखने और समझने की! सत्य और मन की कहने की आवाज नहीं दी।

इतनी बेसिक समझदारी भी नहीं बनवाई कि अंधविश्वासों में जीना पशुओं से बदतर है। और पत्थर की मूर्ति दूध नहीं पीती व कोई मनुष्य अजैविक नहीं होता!

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तभी हास्यास्पद है मोहन भागवत और राहुल गांधी का भारत के ‘सच्चे स्वतंत्रता दिवस’ का बखेड़ा!

कोई 15 अगस्त 1947 को आजादी का दिन माने या संघ परिवार राम मंदिर में प्राण प्रतिष्ठा की ‘पौष शुक्ल द्वादशी’ तिथि (सन् 2024 में ग्रेगोरियन कैलेंडर मुताबिक 22 जनवरी तथा सन् 2025 में 11 जनवरी की तारीख) को ”प्रतिष्ठा द्वादशी” का नाम दे और उसे सांस्कृतिक प्रतिष्ठा का दिन कहे तो उससे क्या बनना व बिगड़ना है? क्या लोगों का, भारत का भाग्योदय होना है?

भारत के लोग 15 अगस्त 1947 के दिन भी बेसुध थे और आज भी हैं। क्या आपको पता है स्वतंत्र भारत का पहला गर्वनर जनरल कौन था? लार्ड माउंटबेटन!

उस दिन इंडिया गेट पर प्रिंसेज पार्क में तिरंगा फहराने का पहला सार्वजनिक कार्यक्रम था।

उस मौके का डोमिनीक लापिएर और लैरी कॉलिंस ने ‘फ़्रीडम एट मिडनाइट’ में विवरण देते हुए लिखा है कि लाखों लोगों की भीड़ में फंसे माउंटबेटन ने ज्योंहि तिरंगे झंडे को फहरा उसे सैल्यूट किया,

तो लोगों के मुंह से बेसाख़्ता आवाज़ निकली, ‘माउंटबेटन की जय….. पंडित माउंटबेटन की जय!’…अगले दिन माउंटबेटन के प्रेस अटैची एलन कैंपबेल जॉन्सन ने अपने एक साथी से हाथ मिलाते हुए कहा था, ‘आखिरकार दो सौ सालों के बाद ब्रिटेन ने भारत को जीत ही लिया!’

वह दिन विभाजन का कलंक लिए हुए

सोचें, इसके अर्थ! मुझे ध्यान नहीं है कि दुनिया में कहीं किसी गुलाम आबादी में औपनिवेशिक सत्ता का इस तरह पॉवर हस्तांतरित हुआ हो।

वह दिन विभाजन का कलंक लिए हुए था। फिर भी सत्ता पर बैठे अंग्रेजों से मुक्ति की स्वतंत्रता का दिन तो था। आजादी तो मिली।

मगर जिन हाथों में बागडोर थी उन पंडित नेहरू ने, कांग्रेस ने अपने आइडिया में आजादी के अवसर का उपयोग किया तो उसका परिणाम क्या था?

गुलामी में रचा पका तंत्र और खौफनाक बीहड़ हुआ जिससे आज कांग्रेस व राहुल गांधी का स्यापा है कि, ‘आरएसएस की विचारधारा की तरह हमारी विचारधारा भी हजारों साल पुरानी है। हमारी विचारधारा हजारों साल से आरएसएस की विचारधारा से लड़ती आ रही है।

ये मत समझिए कि हम एक ऐसी लड़ाई लड़ रहे हैं, जिसके नियम पारदर्शी हैं। इस लड़ाई में कोई पारदर्शिता नहीं है।

अगर आप समझते हैं कि हम सिर्फ बीजेपी या आरएसएस जैसे राजनीतिक संगठन से लड़ रहे हैं तो आप ये समझ नहीं पा रहे हैं कि आख़िर हो क्या रहा है। हम बीजेपी, आरएसएस और अब खुद इंडियन स्टेट से लड़ रहे हैं’।

1947-48 में यह नारेबाजी नहीं की

क्या राहुल गांधी को पता है इन वाक्यों का अर्थ? क्या कांग्रेस के साठ वर्षों में बनाए तंत्र की बदौलत से ही तो यह नौबत नहीं है?(Independence)

पूरे देश में आज जो भी स्यापा है, उसके लिए कौन दोषी है? यदि स्वतंत्र भारत ने लोगों को बुद्धिमान, सत्यवादी, स्वाभिमानी, निर्भयी, निडर और काबिल बनाया होता तो न अडानी, अंबानी पैदा होते

और न मंदिर मस्जिद, अंधविश्वासों और जिसकी लाठी उसकी भैंस का वह मायाजाल बना होता, जिसमें दिखावे का विकास है और ठीक नीचे गोबर है!(Independence)

हमें गुलामी का बीहड़ मिला था और उसी के परिवेश के हाकिमों की सत्ता में जी रहे हैं। तब भी, 15 अगस्त 1947 के समय और उसके बाद हिंदुवादी हो या कम्युनिस्ट और मुस्लिम सब सोचते हुए थे यह कैसी आजादी?

क्या कम्युनिस्टों ने 1947-48 में यह नारेबाजी नहीं की थी कि, यह आजादी झूठी है! भाकपा के बीटी रणदिवे ने झूठी आजादी का हल्ला बना कर तब बाकायदा सशस्त्र क्रांति की थीसिस दी थी।

नेहरू ने हैदराबाद नवाब की रियासत के विलय के बाद मौजूदा तेलंगाना में कम्युनिस्टों के सशस्त्र आंदोलन को सेना से कुचलवाया था। कोई चार हजार वामपंथी मारे गए और हजारों जेल गए थे।

जैसे कम्युनिस्ट सोचते

जैसे कम्युनिस्ट सोचते थे वैसे समाजवादी राममनोहर लोहिया और हिंदुवादी, गोलवलकर, करपात्री सभी सोचते थे कि यह कैसी आजादी!(Independence)

नेहरू ने तब भगवान और अवतार के रूप में अपने को बीहड़ में वैसे ही पूजवाया जैसे पिछले दस वर्षों से नरेंद्र मोदी बतौर अजैविक भगवान अपने को पूजवाते हुए हैं।

तंत्र व सत्ता की गद्दी का वही चरित्र है जो अंग्रेजों के समय था। तब भी अंग्रेजों के चहेते अडानी, अंबानी जैसे सेठ थे।

उनकी इंडियन स्टेट याकि अंग्रेज सरकार वैसी ही थी जैसे बाद में नेहरू के समय इंडियन स्टेट याकि नेहरू सरकार थी और अब मोदी सरकार है।(Independence)

राहुल गांधी का यह कहना गलत नहीं है कि वे ‘इंडियन स्टेट’ के ख़िलाफ़ लड़ रहे हैं क्योंकि बीजेपी और आरएसएस ने ‘इंडियन स्टेट’ की सारी ताकत को अपना पालतू बना लिया है।

पर ऐसा कब नहीं था? सत्ता और लाठी ही तो हम हिंदुओं का कलियुगी मंत्र है। बीहड़ की ‘आजादी’ है!

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By हरिशंकर व्यास

मौलिक चिंतक-बेबाक लेखक और पत्रकार। नया इंडिया समाचारपत्र के संस्थापक-संपादक। सन् 1976 से लगातार सक्रिय और बहुप्रयोगी संपादक। ‘जनसत्ता’ में संपादन-लेखन के वक्त 1983 में शुरू किया राजनैतिक खुलासे का ‘गपशप’ कॉलम ‘जनसत्ता’, ‘पंजाब केसरी’, ‘द पॉयनियर’ आदि से ‘नया इंडिया’ तक का सफर करते हुए अब चालीस वर्षों से अधिक का है। नई सदी के पहले दशक में ईटीवी चैनल पर ‘सेंट्रल हॉल’ प्रोग्राम की प्रस्तुति। सप्ताह में पांच दिन नियमित प्रसारित। प्रोग्राम कोई नौ वर्ष चला! आजाद भारत के 14 में से 11 प्रधानमंत्रियों की सरकारों की बारीकी-बेबाकी से पडताल व विश्लेषण में वह सिद्धहस्तता जो देश की अन्य भाषाओं के पत्रकारों सुधी अंग्रेजीदा संपादकों-विचारकों में भी लोकप्रिय और पठनीय। जैसे कि लेखक-संपादक अरूण शौरी की अंग्रेजी में हरिशंकर व्यास के लेखन पर जाहिर यह भावाव्यक्ति -

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