RSS: आजादी की लड़ाई को लेकर भाजपा और राष्ट्रीय स्वंयसेवक संघ के लोग इतनी कुंठा में रहते हैं, जिसकी मिसाल नहीं है। वे हर समय इस बात से आशंकित रहते हैं कि कोई उनसे यह न पूछने लगे कि आजादी की लड़ाई में आपका क्या योगदान है।
सबको पता है कि संघ की स्थापना 1925 में हुई लेकिन उसके बाद हुए आजादी के किसी भी आंदोलन में उसका सक्रिय योगदान नहीं रहा।
तभी आजादी की लड़ाई में भूमिका पूछे जाने पर संघ और भाजपा के लोग बैकफुट पर आ जाते हैं।
लेकिन अब धीरे धीरे यह स्थिति बदलने लगी है। मीडिया पर संपूर्ण नियंत्रण के बाद भाजपा ने इस कुंठा से निकलने का रास्ता खोज लिया है।
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वह रास्ता यह है कि आजादी की लड़ाई में कांग्रेस की पूरी भूमिका को कमतर कर दिया जाए। यह बताया जाए कि आजादी कोई गांधी के भजनों या चरखा चलाने से नहीं मिली थी।
यह बताया जाए कि आजादी नेहरू, गांधी नहीं दिलाई, बल्कि लाखों लोगों ने कुर्बानी दी।
मुश्किल यह है कुर्बानी देने वाले उन लाखों लोगों में भी संघ का कोई नहीं था। तभी यह भी कहा जाता है कि वह आजादी तो अंग्रेज भीख में देकर चले गए थे।
अभी भाजपा के प्रवक्ता टेलीविजन चैनलों पर बहस करते हैं और बौद्धिक व्याख्यान में बताते हैं कि कांग्रेस के नेता जेल जाते तो उनकी बड़ी खातिरदारी होती थी।
कांग्रेस वाले जब कहते हैं कि पंडित नेहरू नौ साल जेल में रहे तो भाजपा वाले पूछते हैं कि किसी कांग्रेसी को काला पानी क्यों नहीं हुआ? काला पानी तो सावरकर को हुआ था।
भाजपा की ओर से एक सवाल यह भी उठाया जाता है कि कांग्रेस के नेताओं में से एक लाला लाजपत राय को छोड़ दें तो किसके ऊपर लाठी चली थी?
कांग्रेस का आंदोलन(RSS)
भाजपा यह साबित करना चाहती है कि अंग्रेजों की मर्जी से कांग्रेस का आंदोलन चल रहा था और समझौते के तहत भारत को अंग्रेजों से आजादी मिली।(RSS)
उनको लगता है कि यह बात स्थापित कर देंगे तो आजादी की लड़ाई में कांग्रेस की भूमिका कमतर हो जाएगी और फिर आरएसएस की भूमिका के बारे में कोई नहीं पूछेगा।
इसका राजनीतिक लाभ यह होगा कि कांग्रेस जो अपने को आजादी की लड़ाई का प्रतिनिधि मान कर वोट मांगती है उसमें उसकी स्थिति कमजोर होगी।
इसी योजना के तहत भाजपा ने नेहरू गांधी परिवार से अलग आजादी के नायकों की तलाश भी की। सरदार वल्लभ भाई पटेल और नेताजी सुभाष चंद्र बोस की जय जयकार इसलिए की जा रही है ताकि नेहरू गांधी परिवार पर से फोकस हटे।
जैसे ही नेहरू गांधी परिवार की आजादी की लड़ाई की विरासत कमजोर पड़ेगी वैसे ही कांग्रेस की राजनीतिक ताकत भी कम होगी।(RSS)
हर साल गांधी जयंती यानी दो अक्टूबर को और गांधी की पुण्यतिथि यानी 30 जनवरी को गांधी विरोधी ट्रेंड सोशल मीडिया में इसलिए चलाया जाता है ताकि यह बताया जाए कि उनके सत्य, अहिंसा के प्रयोगों से आजादी नहीं मिली।
बार बार कहा भी जाता है कि आजादी भगत सिंह, चंद्रशेखर आजाद जैसों के बलिदान से मिली। किसी तरह से कांग्रेस को आजादी दिलाने का श्रेय न मिले इसके लिए दस तरह की कहानियां गढ़ी जाती हैं।
कांग्रेस के नेतृत्व में हुए आंदोलनों को छोड़ कर हर चीज का आजादी दिलाने में योगदान माना जाता है। आजादी के बारे में कंफ्यूजन पैदा करने के पूरे अभियान का मकसद एक तो अपनी कुंठा से मुक्ति और कांग्रेस की राजनीतिक ताकत कम करने का प्रयास है।