हिजबुल्लाह के चीफ हसन नसरल्लाह के इजराइली हमले में मारे जाने के बाद भारत में या दुनिया के दूसरे देशों में ज्यादातर विरोध प्रदर्शन शिया मुस्लिमों की ओर से है। भारत में करीब दो करोड़ शिया मुस्लिम आबादी है और उनके लगभग सभी संगठनों ने विरोध प्रदर्शन किया। जहां जहां शिया आबादी है वहां विरोध प्रदर्शन ज्यादा हुआ। लेकिन इतनी बड़ी घटना के बावजूद शिया और सुन्नी मुस्लिम का विभाजन बना रहा। सुन्नी मुसलमानों के सबसे बड़े संगठन जमात ए इस्लामी हिंद ने प्रतिक्रिया दी। उसके अध्यक्ष सैयद सआदतुल्लाह हुसैनी ने लेबनान पर हमले और नसरल्लाह की हत्या की निंदा की। उन्होंने इजराइल के हमले को लेकर और भी बहुत कुछ कहा लेकिन उनके अलावा ज्यादातर संगठन चुप रहे। हो सकता है कि वे मन ही मन गुस्से में हों लेकिन उसे जाहिर नहीं किया। उनको पता है कि फिलस्तीन के लिए लड़ रहे हमास के समर्थन में हिजबुल्लाह ने लड़ाई छेड़ी है और ईरान इसमें उनका साथ दे रहा है। इसलिए फिलस्तीन की आजादी के समर्थक और इजराइल के सारे विरोधी इस मामले में एकजुट होंगे। परंतु यह एकजुटता नसरल्लाह की मौत के बाद सार्वजनिक रूप से नहीं दिखी।
जमीयत उलेमा ए हिंद के एक धड़े के नेता मौलाना महमूद मदनी ने भी इस घटना पर दुख जताया। हालांकि वह औपचारिकता की तरह लगा, जैसे घटना के दो दिन बाद मजलिस मुशवरात ने भी दुख जताया और निंदा की। ज्यादातर सुन्नी संगठन या तो चुप रहे या उन्होंने एक दो दिन के बाद औपचारिक रूप से शोक जताया। मौलाना मदनी ने जो शोक संदेश जारी किया उसमें भी नसरल्लाह की हत्या से ज्यादा उनका जोर इजराइल की आलोचना पर था। उन्होंने कहा कि इजराइल गाजा और फिलस्तानी में खून की होली खेल रहा है। इसी तरह इत्तेहाद ए मिल्लत काउंसिल के संस्थापक तौकिर रजा ने इस घटना पर कोई प्रतिक्रिया नहीं दी, जबकि वे अपने कट्टरपंथी विचारों के लिए जाने जाते हैं और ज्यादातर अंतरराष्ट्रीय मामलों में उनकी प्रतिक्रिया आती है।
जाहिर है शिया और सुन्नी का जो धार्मिक व सामाजिक विभाजन है वह दिखा है। इस तरह का विभाजन हमास के चीफ इस्माइल हानिया के मारे जाने के समय भी दिखा था। उस समय तो दोनों समुदायों के बीच सोशल मीडिया में बहस और विवाद भी हुआ था क्योंकि हानिया उस समय मारा गया था, जब वह ईरान के राष्ट्रपति इब्राहिम रईसी के अंतिम संस्कार में शामिल होने के लिए ईरान गया था। वह ईरान की एलीट फोर्स इस्लामिक रिवोल्यूशनरी गार्ड कॉर्प्स के गेस्ट हाउस में रुका था। वहां तीन कमरों में बम लगाया गया था और उन्हीं में से एक कमरे में वह रूका था, जहां विस्फोट करके उसे मार दिया गया। अनेक सुन्नी कट्टरपंथियों और कुछ संगठनों ने भी आरोप लगाया कि ईरान के खुफिया जासूसों ने ही इजराइल की खुफिया एजेंसी मोसाद के साथ मिल कर इस्माइल हानिया को मरवा दिया है। तब शिया और सुन्नी का विवाद काफी बढ़ा। हालांकि ईरान के सर्वोच्च नेता आयतुल्ला खामेनेई बाद में हानिया के जनाजे में शामिल हुए और जनाजे की अंतिम प्रार्थना उन्होंने पढ़ी। इसे शिया और सुन्नी एकता की मिसाल बताया गया था। हानिया का ताबूत देख कर खामेनेई रो पड़े थे और इसका बदला लेने की कसम खाई थी।