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छात्रों, युवाओं के साथ धोखे का साल

Image Source: ANI

वर्ष 2024 अन्य कई बातों के साथ साथ युवाओं के भविष्य के साथ विश्वासघात के लिए भी जाना जाएगा। पूरे साल केंद्र से लेकर राज्यों तक में परीक्षा के पेपर लीक और भर्ती या प्रवेश  परीक्षाओं में किसी न किसी तरह की गड़बड़ी की खबरें और छात्रों के आंदोलन की खबरें आती रहीं। छात्रों, युवाओं और उनके अभिभावकों में यह अविश्वास बना है कि समय पर परीक्षा होगी या नहीं, परीक्षा होगी तो कहीं पेपर लीक तो नहीं हो जाएगा, कहीं ऐसा तो नहीं होगा कि परीक्षा कराने वाली संस्था कई पालियों में परीक्षा का आयोजन करके अंकों के सामान्यीकरण का नाटक तो नहीं करेगी?  यह सब कुछ होकर परीक्षा हो भी गई तो यह अविश्वास है कि तब कहीं पेपर जांच की गड़बड़ी सामने न आ जाए और उस आधार पर परीक्षा न रद्द हो जाए। समूची परीक्षा प्रणाली ही अविश्वास के घेरे में!

इस अविश्वास के बीच साल का समापन पटना में बिहार लोक सेवा आयोग की 70वीं परीक्षा को लेकर चल रहे छात्रों के आंदोलन पर लाठीचार्ज के साथ हुआ है। पटना के गर्दनीबाद में छात्र कई दिनों से प्रदर्शन कर रहे हैं। पहले उन्होंने इस बात के लिए प्रदर्शन किया कि परीक्षा एक पाली में कराई जाए। ताकि अंकों के सामान्यीकरण यानी नॉर्मलाइजेशन की जरुरत नहीं पड़े। आंदोलन तेज होने पर कई दिन के बाद बीपीएससी ने उनकी यह बात मान ली लेकिन उसके बाद परीक्षा टालने की बजाय आयोग अड़ गया कि उसी तारीख पर परीक्षा लेंगे। दोबारा इसके खिलाफ प्रदर्शन हुआ तो लाठी चला कर छात्रों को भगाया गया।

यह छात्रों के भविष्य के साथ खिलवाड़ का नया तरीका निकाला गया है। पहले उत्तर प्रदेश में इसे आजमाया गया और फिर बिहार में भी यह प्रयोग हुआ। यह नया तरीका है एक ही प्रतियोगिता परीक्षा को कई पालियों में कराने का। इससे गड़बड़ी का भरपूर मौका मिलता है। एक परीक्षा कई पालियों में होती है तो अलग अलग प्रश्न पत्र सेट किए जाते हैं, जिसके लीक होने का खतरा ज्यादा रहता है। अगर किसी वजह से पेपर लीक नहीं हुआ

तो परीक्षा के बाद कहा जाता है कि अमुक पाली का पेपर आसान था और अमुक पाली का पेपर कठिन था। इस आधार पर अंकों का सामान्यीकरण किया जाता है। इसमें मनमाने तरीके से काम करने का मौका आयोग को मिल जाता है।

उत्तर प्रदेश लोक सेवा आयोग के इस फैसले के खिलाफ प्रयागराज में छात्रों ने बड़ा प्रदर्शन किया तो वह फैसला टला लेकिन उसके बाद वही काम बिहार लोक सेवा आयोग ने कर दिया। उसके खिलाफ भी छात्रों को प्रदर्शन करना पड़ा। चार लाख या पांच लाख छात्रों की परीक्षा एक पाली में कराने में कोई समस्या नहीं है। फिर भी आयोग इस तरह के फैसले करते हैं और छात्रों को मजबूर करते हैं कि वे प्रदर्शन करें। इससे परीक्षा का कैलेंडर प्रभावित होता है, नतीजे आने में देरी होती है और युवा बहाली के इंतजार में बैठे रहते हैं।

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By हरिशंकर व्यास

मौलिक चिंतक-बेबाक लेखक और पत्रकार। नया इंडिया समाचारपत्र के संस्थापक-संपादक। सन् 1976 से लगातार सक्रिय और बहुप्रयोगी संपादक। ‘जनसत्ता’ में संपादन-लेखन के वक्त 1983 में शुरू किया राजनैतिक खुलासे का ‘गपशप’ कॉलम ‘जनसत्ता’, ‘पंजाब केसरी’, ‘द पॉयनियर’ आदि से ‘नया इंडिया’ तक का सफर करते हुए अब चालीस वर्षों से अधिक का है। नई सदी के पहले दशक में ईटीवी चैनल पर ‘सेंट्रल हॉल’ प्रोग्राम की प्रस्तुति। सप्ताह में पांच दिन नियमित प्रसारित। प्रोग्राम कोई नौ वर्ष चला! आजाद भारत के 14 में से 11 प्रधानमंत्रियों की सरकारों की बारीकी-बेबाकी से पडताल व विश्लेषण में वह सिद्धहस्तता जो देश की अन्य भाषाओं के पत्रकारों सुधी अंग्रेजीदा संपादकों-विचारकों में भी लोकप्रिय और पठनीय। जैसे कि लेखक-संपादक अरूण शौरी की अंग्रेजी में हरिशंकर व्यास के लेखन पर जाहिर यह भावाव्यक्ति -

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