डोनाल्ड ट्रंप और नरेंद्र मोदी में क्या फर्क है, इस पर 2017 में मैंने ट्रंप के पहले महीने के फैसलों के हवाले लिखा था। ठीक आठ साल बाद डोनाल्ड ट्रंप के पहले तीन दिनों के आदेशों से वैसा ही फर्क वापिस जाहिर है। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी दस साल से नारा लगा रहे हैं ‘विकसित’, ‘सुरक्षित’ व‘ घुसपैठिया मुक्त’ इंडिया का। उधर ट्रंप ने वापिस ‘अमेरिका फर्स्ट’, ‘अमेरिकी ग्रेट’ के नारे से राष्ट्रपति पद संभाला है। उन्होंने शपथ ली नहीं और निर्णयों पर दस्तखत किए तथा अमल शुरू है। उनके प्रमुख निर्णयों की तासीर पर यदि गौर करें तो मोदी सरकार दस वर्षों में एक भी निर्णय व अमल वैसा नहीं मिलेगा! हां, एक भी नहीं।
ट्रंप ने ‘विकसित अमेरिका’ के संकल्प में सरकार से उन कर्मचारियों को नौकरी से बाहर निकाला है जो काबिलियत योग्यता से नहीं, बल्कि कोटे के आरक्षण से नौकरी पाए हुए थे। इतना ही नहीं ऐसे कर्मचारियों की महीने के वेतन के भुगतान के साथ तुरंत छुट्टी! अश्वेत, अपंग, महिला, एलजीबीटी आदि कैटेगरी में, सामाजिक न्याय या सशक्तिकरण के नाम पर जितने अफसर व कर्मचारी भर्ती हुए थे उन सबकी छुट्टी!
सवाल है क्या अमेरिका में अश्वेत आबादी, महिलाओं व कमजोर वर्गों के वोट नहीं हैं, जो राष्ट्रपति ट्रंप ने उनके आरक्षण, एफर्मेटिव एक्शन में नौकरी पाए लोगों को सरकारी दफ्तरों का दरवाजा दिखाया? बड़ी संख्या में हैं। जैसे भारत में महिला वोटों का महत्व है वैसे अमेरिका में भी है। लेकिन ट्रंप ‘अमेरिका फर्स्ट’ के क्योंकि पोपुलिस्ट नेता हैं तो वोट की चिंता क्यों करें? डोनाल्ड ट्रंप ने दोनों चुनावों में इसाइयों पर वैसा ही जादू किया, जैसे मोदी का हिंदुओं पर था और है। लेकिन ट्रंप ने उस पूंजी, उस भावना को पकड़ कर अपने एजेंडे पर निर्णय का माद्दा दिखाया। आरक्षण खत्म किया तो अमेरिकी कंपनियों को टैक्स रियायत, चीन आदि के आयात पर भारी टैक्स, डब्ल्युएचओ को छोड़ने व घुसपैठियों को रोकने व बाहर निकालने के वे सब फैसले किए जिन पर उन्हें अमेरिका फर्स्ट व अमेरिका ग्रेट के ख्याल में अनुदारवादी अमेरिकी, ईसाई आबादी ने चुना था।
तथ्य है डोनाल्ड ट्रंप ने पहले टर्म में वह सब किया, जिससे सीमा पार से अवैध घुसपैठियों का आना रूका। और उन उपायों को बाइडेन प्रशासन ने पलटा नहीं। (ध्यान रहे बाइडेन प्रशासन की चुस्ती के कारण पहली बार हजारों अवैध भारतीयों की धरपकड़ हुई। उन्हें भारत लौटाया गया)। और उनके पहले कार्यकाल के समय के चीन के खिलाफ सख्त रूख से चीन का ग्राफ गिरना शुरू हुआ और अब उसकी आर्थिकी बुरी तरह लड़खड़ाती हुई है।
जाहिर है डोनाल्ड ट्रंप ईसाई जनाधार की पूंजी से इधर-उधर नहीं डिगे। न अश्वेत आबादी के वोटों की चिंता की और न महिला वोटों की! ठीक विपरीत नरेंद्र मोदी ने दस वर्षों में क्या किया? उन्होंने अपना ओबीसी चेहरा उभारा। देश व समाज को जातिवादी राजनीति पर टांग दिया। शिवराज सिंह चौहान से शुरू सिलसिले में महिलाओं को पांच सौ, हजार रुपए की रेवड़ियों की वह अखिल भारतीय, विराट हिंदू राजनीति पैदा की, जिसमें सरकारी दफ्तरों में निकम्मों को रोजगार बांटने का काम हो गया और महिला, नौजवान, किसान, बूढ़े याकि पूरी प्रजा रेवड़ियों की कतार में खड़ी या बेगारी करते हुए! मोदी ने दलित के पांव धोए। आदिवासियों का ढोल बजाया। ब्राह्मणों की पूजापाठ बनवाई तथा क्षत्रियों की खातिर योगी के कंधों पर हाथ रखा। और कथित हिंदू राष्ट्र, हिंदूशाही, ऱाष्ट्रवाद, देशभक्ति सब वोट राजनीति में देश को खोखला बनाते हुए। दुनिया में कोई ऐसा दूसरा देश नहीं मिलेगा, जिसने दस वर्षों में राष्ट्रवाद, देश निर्माण, शासन व्यवस्था सबको वोट राजनीति, रेवड़ी राज में कुरबान किया हो!
दुर्भाग्य यह कि उनकी देखादेखी राहुल गांधी और कांग्रेस, विपक्ष भी ‘जात फर्स्ट’ की राजनीति में भाजपा से कंपीट करते हुए। न नेहरू का आइडिया ऑफ इंडिया बचा और न मोदी का आइडिया ऑफ हिंदू इंडिया रहा। ‘विकसित भारत’ चीन पर आश्रित आर्थिकी का एक फ्रॉड। देश बिना किसी नई उत्पादकता, नए कौशल, नवोन्मेषी अनुसंधान व तकनीकी विकास के। हां, सरकारी एयरपोर्ट, पोर्ट आदि के टेकओवर व व्यापार-धंधे में मोनोपॉली से जरूर अडानी, अंबानियों के कुबेर खजाने बने हैं!