India 2025: बहुत खराब। इसलिए क्योंकि वैश्विक सुर्खियों, सोशल मीडिया नैरेटिव व लोक मान्यता में इस्लामोफोबिया, चाइनाफोबिया, एंटीसेमेटिज्म (यहूदी विरोधी भावना) की तरह दुनिया में अब हिंदुओं को लेकर एक हिंदूफोबिया बना है।
हिसाब से पिछले दो वर्षों में इजराइल द्वारा मुस्लिम उग्रवाद की ठुकाई से दुनिया में एंटीसेमेटिज्म का हल्ला सघन होना था।
लेकिन सब कुछ देखते हुए भी पश्चिम एशिया को ले कर विश्व राजनीति में दिखावे की चिंता है। अमेरिका, लातिनी अमेरिका, कनाडा, यूरोप में रूस से ज्यादा चाइनाफोबिया गंभीर है।
डोनाल्ड ट्रंप के शपथ लेने के बाद वह और बढ़ेगा। 2025 का वर्ष डोनाल्ड ट्रंप पर फोकस का वर्ष होगा वही चीन भी सुर्खियों के केंद्र में होगा।
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तब भारत क्या करता हुआ होगा? जवाब है कुछ करने को है ही नहीं तो करना क्या! अब भारत से अधिक हिंदू शब्द के चर्चे हैं।
कोई न माने इस बात को लेकिन दक्षिण एशिया याकि भारत के सभी पड़ोसी प्रधानमंत्री और उनके शासन में हिंदूफोबिया पाले हुए है। ऐसा ही ऑस्ट्रेलिया, आसियान देशों, कनाडा, ब्रिटेन, अमेरिका आदि सभी तरफ है।
प्रवासी सिख समुदाय, मुस्लिम, दलित तथा मोदी विरोधी हिंदू प्रबुद्धता ने सोशल मीडिया के जरिए दुनिया में वह घालमेल बनाया है, जिसकी वजह से भारत पर कोई सोचे उससे पहले दिमाग में हिंदूफोबिया काम करता हुआ होगा।
अजीब स्थिति है। बाइडेन प्रशासन में कमला हैरिस और कई हिंदुओं की प्रशासन में मौजूदगी थी। वैसी ही डोनाल्ड ट्रंप सरकार में भी हिंदुओं की उपस्थिति और भूमिका होगी।
इस सप्ताह पहली बार मालूम हुआ कि जर्मनी के चुनाव में भी एक प्रवासी भारतीय उम्मीदवार है। दूसरे शब्दों में हिंदू सर्वत्र स्वीकार्य हैं।
हिंदूफोबिया भी फैलता हुआ
प्रवासी भारतीयों का प्रभाव बढ़ता हुआ है मगर साथ ही हिंदूफोबिया भी फैलता हुआ है। भारत का नाम सुन कर ऊभरते भारत, महाशक्ति भारत का चेहरा नहीं, बल्कि हिंदुओं के मोदी, योगी के वे चेहरे और वे खबरें उभरेंगी जो नकारात्मक हैं।
याकि हिंदूफोबिया। यह प्रवासी सिखों के नैरेटिव की वजह से है तो दलित नैरेटिव के कारण भी है। हिंदुत्व की राजनीति के हवाले मुस्लिम नैरेटिव पहले से ही है। सन् 2025 में मस्जिद-मंदिर विवाद, योगी आदित्यनाथ की राजनीति आदि से यह और बढ़ेगा।
क्या डोनाल्ड ट्रंप की शपथ से भारत और मोदी सरकार को कोई चमक मिलेगी? क्या इलॉन मस्क या रामास्वामी से भारत को कुछ प्राप्त होगा?
वे ख्याल क्या लौटेंगे कि सुरक्षा परिषद् में भारत को स्थायी सदस्यता मिलने वाली है? डोनाल्ड ट्रंप आपसी व्यापार और आर्थिक रिश्तों में चीन की जगह भारत को स्थापित कर रहे हैं। ऐसा कुछ भी संभव नहीं है।
2025 में दुनिया के सभी मुख्य देश और समूह अपनी ही चिंताओं में खोए हुए होंगे। वह वक्त गया जब भारत को पटाने, भारत को अपने साथ रखने के लिए विश्व नेताओं और समूहों में फड़फड़ाहट थी।
जैसे को तैसे का अंदाज
2024 में चीन ने ब्रिक्स के जरिए डॉलर से अलग करेंसी का जो शिगूफा बनाया था वह डोनाल्ड ट्रंप के दो टूक रूख के बाद बर्फखाने में है।
चीन के राष्ट्रपति शी जिनफिंग को डोनाल्ड ट्रंप की बेबाकी तथा जैसे को तैसे का अंदाज मालूम है इसलिए चीन अपनी नेतागिरी की जगह अपनी आर्थिकी की अधिक चिंता करता हुआ होगा।
साल की शुरुआत में ही अमेरिका में आईएस आतंकी के उत्पात से इस्लामोफोबिया का नया दौर शुरू होना है तो चाइनाफोबिया भी दुनिया में फैलेगा।
वही यहूदियों और हिंदुओं के खिलाफ फोबिया और नैरेटिव दोनों चलेंगे। इसलिए 2025 में भारत यदि अपने को अपनी खोल में बंद रखे तो उसी में विदेश नीति का भला है।