उफ! मोदी-शाह द्वारा अजीत पवार व प्रफुल्ल पटेल को इस तरह गले लगाना। वह भी उस महाराष्ट्र में जिसके मुंबई, पूणे, नागपुर में संघ-भाजपा के बच्चे-बच्चे ने सुना है कि एनसीपी के ये नेता कितने करप्ट है। खुद नरेंद्र मोदी और भाजपाईयों ने जिनको ले कर दसियों बार महाभ्रष्ट्र बताया, परिवारवादी कहा है। सोचे, महाराष्ट्र के संघ-भाजपा के नेता व कार्यकर्ता चुनाव के वक्त किस मुंह बोलेंगे कि परमपूज्य अजीत पवारजी, परमपूज्य प्रफुल्ल पटेलजी को आप जीताएगे तभी हिंदू बचेंगे!
यह व्यंग नहीं है रियलिटी है। भाजपा-संघ के दशकों से तैयार मतदाताओं-कार्यकर्ताओ को अगला चुनाव ऐसे ही लडना है। एक कंधे पर शिंदे व दूसरे पर अजीत पवार को बैठा कर भाजपाई लोकसभा चुनाव में वोट मांग रहे होंगे।
जाहिर है नरेंद्र मोदी और अमित शाह के नौ वर्षों में न केवल हिंदुओं के सियासी चरित्र (भयाकुल, गुलाम, कायर, सरेंडरवादी, बिकाऊ, विचारहीन-बुद्धीहीन) का पोर-पोर उद्घाटित हुआ है बल्कि संघ के मुख्यालय, सावरकर केजन्मप्रदेश महाराष्ट्र में भी घर-घर यह फील होता हुआ है कि हिंदूवादी राजनीति कैसी गंदी तथा दलदली है। तभी मेरे इस अनुमान को नोट करें कि नरेंद्र मोदी-अमित शाह को भी अहसास है कि मौजूदा माहौल लोकसभा चुनाव में उनका बहुमत नहीं बनने देगा। यह भी नोट करे इस साल के आखिर के पांच विधानसभा चुनावों में से यदि भाजपा चार विधानसभाओं में कर्नाटक की तरह हारे तो आश्चर्य नहीं होगा।
हां, कर्नाटक जैसी दशा भाजपा होगी। मतलब हल्ला होगा, मीडिया झूठ बोलेगा, नरेंद्र मोदी और अमित शाह व जेपी नड्डा सभी पर खूब प्रायोजित फूल बरसेंगे, सभाओं में भीड होगी और भाजपा को 38-40 प्रतिशत वोट भी मिलेंगे बावजूद इसके उसकी चार राज्यों में सरकार नहीं बनेगी। भाजपा के लिए अवसर तभी है जब कांग्रेस अपने उम्मीदवार ठिक से खड़े नहीं करें। अशोक गहलोल और सचिन पायलट अपने झगड़े में भारी एंटी इनकंबेसी झेल रहे विधायकोंव मंत्रियों के टिकट नहीं काटे या छतीसगढ़ व मध्यप्रदेश में कांग्रेस में ऐन वक्त सिर फुटव्वल हो जाए।
और यह रियलिटी मोदी-शाह को अपने सर्वेक्षणों से भी ज्ञात होते हुए होगी। भाजपा के अंदरूनी सर्वे बोलते हुए होंगे कि हर प्रदेश में टक्कर कांटे की है।
पर जैसा मैंने पिछले सप्ताह लिखा कि मोदी-शाह का फोकस विधानसभा नहीं बल्कि लोकसभा चुनाव है। तभी हताशा व घबराहट में वह हो रहा है जिसके उलटे परिणाम तय है। मुझे समझ नहीं आया कि भोपाल में विपक्ष को महाकरप्ट, परिवारवादी (पवार परिवार पर हमले के साथ) बताने के बाद अजीत पवार व प्रफुल्ल पटेल को पटाने का काम क्यों हुआ? दो दलील है? एक, महाराष्ट्र में विपक्ष को पूरी तरह तहस-नहस कर डालों ताकि वह लोकसभा चुनाव लड़ने लायक न रहे। दो, मराठा वोटों में अजीत पवार परिवार के जरिए भाजपा की कुछ पैंठ बने। एकनाथ शिंद को डंप करने या फडनवीस को सीएम बनाने जैसे कयासों का कोई खास अर्थ नहीं है। असल बात प्रदेश की 48 लोकसभा सीटों पर भाजपा की चुनाव लड़ने लायक स्थिति की है।
महाराष्ट्र की रियलिटी में हर घर की चर्चा में दो नाम रहे है। बाल ठाकरे और शरद पवार का। बाल ठाकरे का अर्थ अब उद्धव ठाकरे है, यह एकनाथ शिंदे की दुर्दशा से साबित है। खुद भाजपा ने एकनाथ शिंदे और उनके गुट को बेचारा, आश्रित व बिन पैंदे का बना डाला है। इसे सब फील कर रहे है। लोकसभा चुनाव में शिंदे के चेहरे से भाजपा को एक-दो प्रतिशत वोट भी अतिरिक्त नहीं मिलेंगे। विदर्भ, पश्चिमी महाराष्ट्र, मराठवाड़ा की लोकसभा सीटो में सूपड़ा साफ होना है। मुंबई-पूणे-नागपुर-थाणे जैसे शहरी इलाकों में भले नरेंद्र मोदी का जादू चले मगर इन सीटों में भी उद्धव ठाकरे-कांग्रेस-शरद पवार का साझा लोकसभा सीटों में भारी टक्कर देता हुआ होगा।
सवाल है चुनाव आयोग ने यदि शरद पवार से उनकी पार्टी, चुनाव चिंह छीन लिया तो बिना पार्टी के उद्धव ठाकरे और वे कैसे चुनाव लडेंगे? इस सवाल पर हमेशा ध्यान रखे सन् 1977 में इमरजेंसी में चुनाव घोषणा बाद बनी विपक्ष की आंधी को। मोदी-शाह की विनाशकाले विपरित बुद्धी है जो वे महाराष्ट्र, बिहार, बंगाल या यूपी सब जगह विपक्षी पार्टियों में तोड फोड, नेताओं को जेल में डालने, उन पर ईडी-सीबीआई- इनकम टैक्स छोड कर अपने आपको वैसा ही चरित्रवान, संस्कारी, काबिल और देश रक्षक बतला रहे है जैसे इंदिरा गांधी ने इमरजेंसी के प्रोपेगेंडा में अपना हल्ला बनाया था।
हां, शरद पवार, नीतिश कुमार, लालू यादव सबको मालूम है इमरजेंसी का अनुभव। नीतिश की पार्टी तोड़ने, तेजस्वी व लालू को जेल में डालने या हेमंत सोरेन या ममता-अभिषेक को जेल में डालने, उन्हे भ्रष्ट-परिवारवादी करार देने से उलटे वही होगा जो शिवकुमार को जेल में डालने से कर्नाटक में हुआ। सो महाराष्ट्र मेंयदि शरद पवार के पास पार्टी रहने भी नहीं दी गई तो शरद पवार कांग्रेस में शामिल हो जाएंगे। कांग्रेस याकि राहुल गांधी उन्हे अपना नेता घोषित करके शरद पवार-उद्धव ठाकरे की जोड़ी से महाराष्ट्र में हवा बदलवा डालेंगे। तब मराठी अस्मिता का प्रतीक बन शरदपवार-उद्धव ठाकरे प्रदेश में मराठा बनाम गुजराती का वह हल्ला बना देंगे कि भाजपा 48 सीटों में दो अंक भी पार नहीं कर पाएंगी।
बहरहाल सत्ता का नशा भारी होता है। मोदी-शाह अपनी सत्ता मुठ्ठी को कालजयी मान रहे है। मुझे शक (प्रफुल्ल पटेल से शरद पवार की अंतरंगता को जानने की वजह से) है शरद पवार ने मोदी-शाह-अडानी के आईडिया मेंअपनी मास्टर बिसात बिछाई। इससे फरवरी 2024तक अजीत पवार-प्रफुल्ल पटेल आदि एनसीपी नेता ईडी-सीबीआई की तलवार से बचे रहेंगे। अजीत पवार अपने केसेज खत्म कराएंगे। शिंदे-फडनवीस राज की जासूसी करेंगे। पवार के लोग अपने मंत्रालयों में शिंदे-भाजपा के काम नहीं होने देंगे। शिंदे सरकार का हर तरह से शोषण करेंगे। चुनाव की तैयारी- पैसा-टिकट सब का बंदोबस्त बैठाएंगे। इससे जहा शिंदे का शिवसेना गुट बिखरेगा वही भाजपाई भी फडफडाते हुए होंगे। बहुत संभव है लोकसभा चुनाव से पहले ही शिंदे गुट के विधायक भाग जाएं। उद्धव ठाकरे की अपने आप हवा बनेगी। आखिर में लोकसभा चुनाव की अधिसूचना के ठिक पहले प्रफुल्ल पटेल व अजीत पवार कान पकड कर साहेब शरद पवार की शरण में लौट जाएंगे। सोचे, यदि ऐसा हुआ तो अपने भगवा भक्तों के अलावा महाराष्ट्र में मोदी-शाह की सुनने कौन पहुंचेगा? महाराष्ट्र की राजनीति में वैसा ही भूचाल होगा जैसा इमरजेंसी के बाद जगजीवन राम के छोड़ने से हुआ था! शरद पवार महाचाणक्य कहे जाएंगे।