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मणिपुर में अब सेना ही सहारा

केंद्र और राज्य दोंनों की सरकारें मणिपुर के बारे में चाहे जो दावा करें लेकिन हकीकत है कि राज्य में शांति बहाली नहीं हुई है। उलटे हिंदू मैती और कुकी आदिवासियों के बीच विभाजन इतना गहरा हो गया है कि दोनों एक दूसरे के खून के प्यासे हो रहे हैं। सब अपने अपने इलाके में घात लगा कर बैठे हैं। मौके का इंतजार कर रहे हैं। अब वहां कोई मणिपुरी या भारतीय नहीं है, सिर्फ कुकी और मैती हैं। राज्य के 45 हजार पुलिसकर्मी पूरी तरह जातीय समूहों में बंट गए हैं और किसी को किसी पर भरोसा नहीं है। यहां तक कि असम राइफल्स के ऊपर भी किसी को भरोसा नहीं है। तभी राज्य के 31 विधायकों ने असम राइफल्स को राज्य से हटाने की मांग की है। केंद्र सरकार को असम राइफल्स के खिलाफ ज्ञापन देने वालों 31 विधायकों में ज्यादातर मैती हैं।

तीन मई को हिंसा फैलने के बाद तीन हजार से ज्यादा हथियार थानों से लूट लिए गए थे, जिसके बारे में कहा जा रहा है कि पुलिसकर्मियों ने ही अपने अपने समुदाय के लोगों के हथियार सौंप दिए थे या आराम से हथियार लूट कर ले जाने दिया था। जून के शुरू में सुरक्षा बलों ने सर्च ऑपरेशन चलाया, जिसमें एक तिहाई से भी कम हथियार रिकवर हुए हैं। बाकी हथियार उग्रवादियों के पास पहुंच गए हैं। सीमा पार म्यांमार और बांग्लादेश में बेस बना कर किसी तरह से सर्वाइव कर रहे उग्रवादी संगठनों को मानो संजीवनी मिल गई है। स्थानीय लोग उनको शरण और सुरक्षा दे रहे हैं। भारतीय सेना ने खुद वीडियो जारी करके बताया कि किस तरह से एक प्रतिबंधित उग्रवादी संगठन के 12 कार्यकर्ताओं को सेना ने पकड़ा था लेकिन बड़ी संख्या में इकट्ठा होकर महिलाएं उनको छुड़ा ले गई थीं। महिलाएं समूह बना कर दूसरी जाति के लोगों को तलाश रही हैं और सड़कों पर गड्ढे बनवा रही हैं ताकि सुरक्षा बलों को गांवों में घुसने से रोका जाए।

इस वीडियो के साथ सेना ने यह भी कहा कि इसे उसकी कमजोरी नहीं समझा जाए। बहरहाल, मणिपुर में जिस तरह से पुलिस के ऊपर अविश्वास बना है और असम राइफल्स को हटाने की मांग उठी है, ऐसे में एकमात्र सहारा सेना है। सेना के ऊपर अब भी लोगों का विश्वास है। लेकिन सेना की किसी भी पहल के साथ साथ राजनीतिक और सामाजिक पहल की भी जरूरत है, जो सरकार नहीं कर रही है। मुख्यमंत्री एन बीरेन सिंह ने इस्तीफा देने का मन बनाया था लेकिन पता नहीं किस वजह से उनका इस्तीफ नहीं हुआ। राज्य की 30 फीसदी से ज्यादा कुकी आबादी को उन पर भरोसा नहीं है। वे खुद भी यह भरोसा नहीं बनने दे रहे हैं। केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह जब मणिपुर के दौरे पर गए थे तब मुख्यमंत्री उनके साथ कुकी बहुल इलाकों में नहीं गए। वे सिर्फ मैती इलाकों में गए।

सो, अगर शांति बहाली के लिए सबसे पहले उपाय की बात की जाए तो वह मुख्यमंत्री का इस्तीफा हो सकता है। बेशक मैती मुख्यमंत्री ही बने लेकिन कोई नया चेहरा लाया चाहिए, जिस पर दोनों समुदाय भरोसा करें। इसके बाद सेना की कार्रवाई के जरिए उग्रवादी समूहों को वापस सीमा पार किया जाए। ध्यान रहे मणिपुर की करीब चार सौ किलोमीटर की सीमा म्यांमार से मिलती है और इसका 90 फीसदी हिस्सा खुला हुआ है। म्यांमार में चीन समर्थित सैन्य शासन है। सो, इसके खतरे का अंदाजा सहज ही लगाया जा सकता है। बहरहाल, सेना की बहुत बड़ी तैनाती पहले से मणिपुर में है। अगर जरुरत हो तो तैनाती बढ़ाई जा सकती है। राजनीतिक बदलाव और सामाजिक पहल के साथ सैनिक उपाय हो। सेना की कार्रवाई से उग्रवादी समूहों और आम कुकी व मैती समूहों द्वारा बनाए गए बंकर खत्म करा कर, उनके हथियार जमा कर येन केन प्रकारेण शांति बहाली की कोशिश होनी चाहिए। हालांकि इसमें एक दिक्कत यह है कि राज्य के ज्यादातर जिलों में सशस्त्र बल विशेषाधिकार कानून यानी अफस्पा निरस्त कर दिया गया है। इसलिए सेना की कार्रवाई के लिए हर समय मजिस्ट्रेट के साथ रहने की जरूरत होगी ताकि जवानों के ऊपर बाद में मुकदमा नही चल सके।

Published by हरिशंकर व्यास

मौलिक चिंतक-बेबाक लेखक और पत्रकार। नया इंडिया समाचारपत्र के संस्थापक-संपादक। सन् 1976 से लगातार सक्रिय और बहुप्रयोगी संपादक। ‘जनसत्ता’ में संपादन-लेखन के वक्त 1983 में शुरू किया राजनैतिक खुलासे का ‘गपशप’ कॉलम ‘जनसत्ता’, ‘पंजाब केसरी’, ‘द पॉयनियर’ आदि से ‘नया इंडिया’ तक का सफर करते हुए अब चालीस वर्षों से अधिक का है। नई सदी के पहले दशक में ईटीवी चैनल पर ‘सेंट्रल हॉल’ प्रोग्राम की प्रस्तुति। सप्ताह में पांच दिन नियमित प्रसारित। प्रोग्राम कोई नौ वर्ष चला! आजाद भारत के 14 में से 11 प्रधानमंत्रियों की सरकारों की बारीकी-बेबाकी से पडताल व विश्लेषण में वह सिद्धहस्तता जो देश की अन्य भाषाओं के पत्रकारों सुधी अंग्रेजीदा संपादकों-विचारकों में भी लोकप्रिय और पठनीय। जैसे कि लेखक-संपादक अरूण शौरी की अंग्रेजी में हरिशंकर व्यास के लेखन पर जाहिर यह भावाव्यक्ति -

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