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गपशप

दुनिया देख रही है तो चर्चा भी कर रही है

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मणिपुर में जो हो रहा है उसे चाहे कितना भी छिपाने की कोशिश की जाए, दुनिया उसे देख रही है और उस पर चर्चा भी कर रही है। राज्य में तीन मई को जातीय हिंसा शुरू हुई थी और उसी दिन से इंटरनेट बंद है। इसके बावजूद हिंसा की भयावह तस्वीरें दुनिया तक पहुंची हैं। पिछले हफ्ते ‘गपशप’ कॉलम में एपी की फोटो की लिंक दी गई थी, जिसमें मणिपुर की दिल दहला देने वाली और चिंता में डालने वाली तस्वीरें थीं। ये तस्वीरें सारी दुनिया ने देखीं। उसी तरह मणिपुर में दो महिलाओं को निर्वस्त्र करके सड़क पर घुमाने और उनके साथ यौन हिंसा किए जाने का वीडियो भी सारी दुनिया ने देख लिया। इसे कितना भी छिपाने या दबाने की कोशिश की गई वह सामने आ गया।

सोचें, यह कितनी बचकानी बात है कि सरकार यह सोचती है कि आज के जमाने में इंटरनेट बंद कर देंगे तो सच छिप जाएगा? आज के सेटेलाइट के जमाने में इस तरह की बात सोचना भी बेवकूफी है। दुनिया के किसी भी हिस्से में कुछ भी हो रहा होता है तो उसे पूरी दुनिया देख और जान सकती है। हर छोटी बड़ी बात की खबर और वीडियो लोगों तक पहुंच रहे हैं। मिसाल के तौर पर रूसी राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन के खिलाफ बगावत करने वाले वैगनर समूह के सर्गेई प्रिगोजिन का मामला हैं। उसकी एक एक मूवमेंट को दुनिया ने देखा। अभी वह कहां है और कहां पर बेलारूस की सेना के साथ साझा सैन्य अभ्यास कर रहा है, इसकी सारी वीडियो सामने आ रही है। हो सकता है कि उसने इसे छिपाने की कोशिश नहीं की लेकिन हकीकत यह है कि छिपाने की कोशिश भी कामयाब नहीं होने वाली है। सूचना तकनीक के मौजूदा दौर पर थोड़े समय तक तो किसी खबर को दबाया या छिपाया जा सकता है लेकिन उसे हमेशा के लिए लोगों तक पहुंचने से नहीं रोक सकते। सो, मणिपुर में जो कुछ हो रहा है उसका सच लोगों के सामने आ चुका है।

इसी तरह संसद में किस नियम के तहत बहस हो, कैसे बहस हो और उसमें सिर्फ मणिपुर की बात कही जाए या विपक्षी पार्टियों के शासन वाले राज्यों में हुई हिंसा का भी जिक्र करके विपक्ष को बैकफुट पर लाया जाए, इसके बीच दुनिया भर में इस पर चर्चा भी हो रही है। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी जिस दिन फ्रांस के दौरे पर गई उसी दिन यूरोपीय संघ की संसद ने मणिपुर पर चर्चा किया और एक प्रस्ताव स्वीकार किया। यूरोपीय संघ की संसद में मणिपुर में हो रही जातीय हिंसा की आलोचना की गई और भाजपा और उसके समर्थकों द्वारा भड़काऊ भाषणों की भी आलोचना की गई। भारत ने इसका विरोध किया लेकिन उसके विरोध को दरकिनार कर यूरोपीय संसद में प्रस्ताव पेश हआ, उस पर चर्चा हुई और उसे स्वीकार किया गया।

भाजपा किस तरह से ट्रैक लूज कर रही है इसकी एक मिसाल तब भी दिखी, जब यूरोपीय संघ में प्रस्ताव मंजूर होने के बाद भाजपा के आईटी सेल के प्रमुख ने ट्विट करके कहा कि राहुल गांधी ने ब्रिटेन में और फिर अमेरिका में विदेशी ताकतों को भारत के आंतरिक घटनाक्रम में दखल देने का अनुरोध किया था और उसके बाद यूरोपीय संघ ने यह प्रस्ताव पास किया। इसका क्या मतलब निकालें? क्या राहुल गांधी इतने शक्तिशाली हैं कि दुनिया के देश विश्वगुरू भारत सरकार से ज्यादा बात उनकी मानते हैं? क्या अंतरराष्ट्रीय समुदाय की नजर में वे प्रधानमंत्री से ज्यादा मजबूत हैं? फिर ऐसा कैसे हो सकता है कि भारत सरकार विरोध करे और राहुल गांधी यूरोपीय संघ से प्रस्ताव पास करवा लें? लेकिन भाजपा ने यूरोपीय संघ में मणिपुर पर प्रस्ताव पास होने के बाद यह बात कही थी।

By हरिशंकर व्यास

मौलिक चिंतक-बेबाक लेखक और पत्रकार। नया इंडिया समाचारपत्र के संस्थापक-संपादक। सन् 1976 से लगातार सक्रिय और बहुप्रयोगी संपादक। ‘जनसत्ता’ में संपादन-लेखन के वक्त 1983 में शुरू किया राजनैतिक खुलासे का ‘गपशप’ कॉलम ‘जनसत्ता’, ‘पंजाब केसरी’, ‘द पॉयनियर’ आदि से ‘नया इंडिया’ तक का सफर करते हुए अब चालीस वर्षों से अधिक का है। नई सदी के पहले दशक में ईटीवी चैनल पर ‘सेंट्रल हॉल’ प्रोग्राम की प्रस्तुति। सप्ताह में पांच दिन नियमित प्रसारित। प्रोग्राम कोई नौ वर्ष चला! आजाद भारत के 14 में से 11 प्रधानमंत्रियों की सरकारों की बारीकी-बेबाकी से पडताल व विश्लेषण में वह सिद्धहस्तता जो देश की अन्य भाषाओं के पत्रकारों सुधी अंग्रेजीदा संपादकों-विचारकों में भी लोकप्रिय और पठनीय। जैसे कि लेखक-संपादक अरूण शौरी की अंग्रेजी में हरिशंकर व्यास के लेखन पर जाहिर यह भावाव्यक्ति -

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