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यूसीसीः लेने के देने!

ध्यान रहे समान नागरिक संहिता यानी यूसीसी का कोई मसौदा अभी का नहीं है। उत्तराखंड सरकार का ड्राफ्ट बिल तैयार है और विधि आयोग इस पर लोगों की राय ले रहा है। लेकिन उससे पहले प्रधानमंत्री मोदी ने भोपाल में ऐलान किया कि एक घर दो कानून से नहीं चल सकता है। लेकिन एक घर, एक कानून कैसे बनेगा? प्रधानमंत्री के ऐलान के बाद संसद की स्थायी समिति की बैठक हुई, जिसकी अध्यक्षता भाजपा के नेता सुशील कुमार मोदी ने की और उन्होंने बैठक में सुझाव दिया कि आदिवासी आबादी को इससे बाहर रखा जाए।

सवाल है कि जब एक देश, एक कानून बनेगा तो एक आठ-नौ फीसदी आबादी वाले समूह को उससे बाहर रखने का क्या मतलब है? सबको पता है कि इस मसले पर व्यापक विचार विमर्श की जरूरत है। यह कोई एक समुदाय या एक भौगोलिक क्षेत्र से जुड़ा मसला नहीं है। मुस्लिम और सिख समाज इसका विरोध कर रहा है तो पूर्वोत्तर के सभी राज्यों से विरोध की आवाज उठी है। भाजपा की समर्थक पार्टियों ने इसका विरोध किया है।

राजनीति से ज्यादा सामाजिक और कानूनी स्तर पर इसका विरोध होगा। संविधान का अनुच्छेद 13 कहता है कि धार्मिक और सामाजिक मान्यताएं भी कानून हैं, जिन्हें नहीं बदला जा सकता है। अनुच्छेद 13 को भी नहीं बदला जा सकता है क्योंकि वह संविधान के बुनियादी ढांचे का हिस्सा है। हिंदू समाज में कई मान्यताएं प्रचलित हैं, जिन्हें बदलना आसान नहीं होगा। लाखों हिंदू परिवार हिंदू यूनाइटेड फैमिली यानी एचयूएफ के तहत अपनी संपत्ति संभालते हैं और कारोबार करते हैं। क्या सरकार समान कानून बनाने के लिए इसे समाप्त कर देगी या दूसरे समुदायों को भी इस तरह की सुविधा देगी? संपत्ति के बंटवारे का कानून कैसे बनेगा? शादी और तलाक के नए नियमों को क्या हिंदू समाज स्वीकार करेगा? आदिवासी और दलित समुदायों में प्रचलित पंरपराओं को कैसे समाप्त किया जाए?

गोवा में समान नागरिक संहिता है, जिसके मुताबिक किसी औरत को अगर बच्चा नहीं होता है तो उसका पति तलाक दिए बगैर दूसरी शादी कर सकता है। क्या इसे बदला जाएगा? ध्यान रहे भाजपा के नेता गोवा के समान नागरिक संहिता का बार बार हवाला दे रहे हैं? बहरहाल, ये तमाम सवाल हैं, जिनका जवाब नहीं है। लेकिन यूसीसी की बहस चला दी गई है। टेलीविजन चैनलों और सोशल मीडिया में इसकी बहस चल रही है और यह ध्यान रखा जा रहा है कि सिर्फ मुस्लिम समुदाय के विरोध को हाईलाइट किया जाए। यही इस पूरी बहस का मकसद दिख रहा है। सिर्फ यह दिखाया जा रहा है कि मुस्लिम समाज इसका विरोध कर रहा है क्योंकि इससे उनके बहुविवाह की प्रथा समाप्त हो जाएगी और जनसंख्या बढ़ाने की उनकी कथित साजिश नाकाम हो जाएगी।

मगर अब आदिवासी, सिक्ख, उत्तर-पूर्व, ईसाई आदि का जो झमेला बनता हुआ है तो क्या लगता नहीं कि भाजपा खुद इसमें अपने वोट गंवाएगी?

By हरिशंकर व्यास

मौलिक चिंतक-बेबाक लेखक और पत्रकार। नया इंडिया समाचारपत्र के संस्थापक-संपादक। सन् 1976 से लगातार सक्रिय और बहुप्रयोगी संपादक। ‘जनसत्ता’ में संपादन-लेखन के वक्त 1983 में शुरू किया राजनैतिक खुलासे का ‘गपशप’ कॉलम ‘जनसत्ता’, ‘पंजाब केसरी’, ‘द पॉयनियर’ आदि से ‘नया इंडिया’ तक का सफर करते हुए अब चालीस वर्षों से अधिक का है। नई सदी के पहले दशक में ईटीवी चैनल पर ‘सेंट्रल हॉल’ प्रोग्राम की प्रस्तुति। सप्ताह में पांच दिन नियमित प्रसारित। प्रोग्राम कोई नौ वर्ष चला! आजाद भारत के 14 में से 11 प्रधानमंत्रियों की सरकारों की बारीकी-बेबाकी से पडताल व विश्लेषण में वह सिद्धहस्तता जो देश की अन्य भाषाओं के पत्रकारों सुधी अंग्रेजीदा संपादकों-विचारकों में भी लोकप्रिय और पठनीय। जैसे कि लेखक-संपादक अरूण शौरी की अंग्रेजी में हरिशंकर व्यास के लेखन पर जाहिर यह भावाव्यक्ति -

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