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डॉ. मनमोहन सिंह और जिमी कार्टर की अंत्येष्टि का फर्क!

Dr. Manmohan and Jimmy Carter funeralsImage Source: ANI

Dr. Manmohan and Jimmy Carter funerals : मौत भी कौम और देश की मानवीय बुनावट का अंतर प्रकट करती है! सभ्य-असभ्य, संवेदनशील-असंवेदनशील, संस्कारी-कुसंस्कारी, राम-रावण, दुर्योधन-युधिष्ठर, अच्छे और बुरे के बोध में मानव चेतना यों असंख्य कसौटियां लिए हुए है लेकिन व्यक्ति विशेष के जीवन का वह समय, वे क्षण सर्वाधिक अहम हैं, जब अंतिम सांसों और अंत्येष्टि से वह इहलोक से मुक्त होता है।

यदि अंतिम सांसें जीवन की सिद्धि, संतोष में हैं तो मेरा मानना है मनुष्य जीवन धन्य! फिर घर, परिवार या कुनबे या कौम या जीवन साधना के कर्मों की बिरादरी से श्मशान-कब्रिस्तान में अंत्येष्टि गरिमा से संपन्न हुई तो सोने पे सुहागा।

इसलिए वे सभ्यताएं समझदार हैं, जहां व्यक्ति खुद अंतिम समय और अंत्येष्टि की रूपरेखा बनाए। विकसित और पिछड़े मुल्क में यह भी फर्क है जो इंसानों की अंतिम सांसों की फड़फड़ाहट, लावारिस मौत बनाम सुकूनदायी केयर और गरिमापूर्ण मृत्यु के फर्क बने हैं।

हाल में यह सत्य कोविड काल में दिखा था। तब भारत में मौत, जहां लावारिस थी, गंगाशववाहिनी थी वहीं यूरोप और अमेरिका में एक एक मृत्यु रिकॉर्ड में अंकित थी हालांकि महामारी का तांडव सर्वव्यापी एक सा था।

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भला यह सब दो नेताओं की अंत्येष्टि के संदर्भ में क्यों लिखना? इसलिए क्योंकि पृथ्वी की सर्वाधिक मनुष्य भीड़ भारत में है। पृथ्वी की प्राचीनतम सभ्यता-संस्कृति याकि सनातन धर्म का घरौंदा है भारत!

हम लोगों को रामायण और महाभारत बता गए हैं कि क्या फर्क है मर्यादापुरुष राम और अहंकारी राक्षस राजा रावण का!

घर-घर में बच्चा राम का नाम लेते हुए जानता है कि राम के हाथों रावण की मौत हुई तब भी राम ने मृत्युशैया पर लेटे रावण से लक्ष्मण को ज्ञान प्राप्त करने के लिए कहा था। रावण की अंत्येष्टि में राम और राम की सेना का मनुष्यवत व्यवहार था।

तो मानव धर्म, सनातन धर्म, हिंदू कर्तव्य क्या? इस पर हम-आपको डॉ. मनमोहन सिंह की अंत्येष्टि के समय की खबरों के संदर्भ में सोचते हुए अमेरिका नाम के देश के एक अंत्येष्टि प्रोग्राम की जानकारी समझनी चाहिए।

9 जनवरी को कार्टर की अंत्येष्टि

9 जनवरी 2025 को अमेरिका की राजधानी वाशिंगटन के नेशनल कैथेड्रल चर्च में पूर्व राष्ट्रपति जिमी कार्टर की अंत्येष्टि हुई। वैश्विक टीवी चैनलों में लाइव प्रसारण था।

मेरी पत्रकारिता की शुरुआत के समय कार्टर अमेरिकी राष्ट्रपति थे। इसी कॉलम में मैंने उनके सौ साल के होने की खबर पर उनकी दिल्ली यात्रा और उनके व्यक्तित्व-कृतित्व पर लिखा था।

उनकी अंत्येष्टि के प्रसारण को मैंने लगभग पूरा देखा। और स्वाभाविक तौर पर सर्वप्रथम अनुभूति विकसित बनाम अविकसित देश के फर्क की थी।

पूजास्थल में शांत-मौन-अनुशासित भाव में राष्ट्रपति, उप राष्ट्रपति, चार पूर्व राष्ट्रपति तथा वाशिगंटन के सभी सत्तावान प्रतिनिधियों (सुप्रीम कोर्ट के चीफ जस्टिस और जजों से ले कर मंत्रियों, सांसदों और संयुक्त राष्ट्र के महासचिव, विदेशी नेताओं सहित) से भरा था चर्च।

लेकिन मजाल जो तनिक भी शोर, अव्यवस्था या कोई अपने को कैमरे में दिखलाने की पोजिशनिंग करता दिखे।

जिमी कार्टर डेमोक्रेटिक पार्टी से

सवाल है क्यों 43 वर्ष पहले राष्ट्रपति रहे जिमी कार्टर की अंत्येष्टि में इतने लोग शामिल हुए?(Dr. Manmohan and Jimmy Carter funerals )

कैसे संभव जो निर्वाचित राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप अपनी पत्नी के साथ उस अगली कतार में बैठे थे, जिस पर उनके घोर राजनीतिक विरोधी राष्ट्रपति बाइडेन, उप राष्ट्रपति कमला हैरिस भी थे!

इतना ही नहीं डोनाल्ड ट्रंप उन ओबामा, अपने उन पूर्व उप राष्ट्रपति पेंस से हाथ मिलाते हुए, बात करते हुए थे, जिनको लेकर उनकी कैसी खूंखार राजनीति थी। इन्हे ट्रंप ने क्या कुछ नहीं कहा था!

जिमी कार्टर डेमोक्रेटिक पार्टी से थे। मगर उनकी अंत्येष्टि में रिपब्लिकन पार्टी के राष्ट्रपतियों की उपस्थिति इसलिए अनहोनी नहीं थी क्योंकि अमेरिकी लोकतंत्र यह सभ्यपना लिए हुए है कि अंत्येष्टि के क्षण में हम सब इकठ्ठे हैं।

और जिस व्यक्ति की अंत्येष्टि है वह हम सबका राष्ट्रपति था। भले वह रिपब्लिकन था या डेमोक्रेट! (a moment to remember “that we’re all in this together” and “this man was the president for all of us, whether you’re a Republican or a Democrat.”)

राष्ट्रपति की इच्छा गोपनीय

अमेरिका इस नाते भी लाजवाब है जो उसके राष्ट्रपति रिटायर होने के बाद अपनी तह तय करते हैं कि उनकी मृत्यु व अंत्येष्टि के क्षणों में क्या हो।

वे इसकी योजना की प्रक्रिया से जुड़े रहते हुए संबंधी एजेंसी को बताते हैं कि वे स्वंय अपने पर क्या सोचते हैं और अपने राष्ट्रपति कार्यकाल को कैसा देखते हैं? अमेरिकी लोगों में उनकी यादों को लेकर वे खुद क्या चाहते हैं!

जाहिर है अमेरिका में राष्ट्रपतियों की अंत्येष्टि के लिए एक एजेंसी गठित है। ‘वाशिंगटन राजधानी क्षेत्र’ का एक साझा टास्क फोर्स है, जिससे कोई चार हजार सैन्य व नागरिक लोग जुड़े होते हैं।

ये लोग ‘राष्ट्र की तरफ से’ अंत्येष्टि में योगदान अपना गौरव, अपना विशेषाधिकार मानते हैं। राष्ट्रपति की इच्छा को गोपनीय रखा जाता है। नौ जनवरी 2019 को ही मालूम हुआ कि जिमी कार्टर ने अपनी श्रद्धाजंलि अपने पूर्ववर्ती राष्ट्रपति गेराल्ड फोर्ड ( जिन्हें जिमी कार्टर ने चुनाव में हराया था) से लिखवाई थी।

वह फोर्ड को ही पढ़नी थी। मगर फोर्ड की मृत्यु 2007 में हुई। तब कार्टर ने उनकी अंत्येष्टि में अपने द्वारा लिखित श्रद्धाजंलि पढ़ी।

और जिमी कार्टर के लिए लिखी श्रद्धाजंलि को गेराल्ड फोर्ड की और से उनके बेटे स्टीव फोर्ड अंत्येष्टि कार्यक्रम में पढ़ा।(Dr. Manmohan and Jimmy Carter funerals )

राष्ट्रपति बनना ‘चमत्कार’

और अपने राजनीतिक प्रतिद्वंद्वी कार्टर पर रिपब्लिन पार्टी के पूर्व राष्ट्रपति फोर्ड ने जिस भावविह्वल अंदाज, में श्रद्धांजलि लिखी और उसे उनके बेटे ने जिस अंदाज में पढ़ा वह अविस्मरणीय है।

अंत्येष्टि में कार्टर के पोते, उनके स्टॉफ के सलाहकार, जॉर्जिया के अश्वेत पादरी यंग और राष्ट्रपति बाइडेन ने जो कहा वह दिखावे या झूठी लफ्फाजी नहीं थी, बल्कि जिमी कार्टर को लेकर वैयक्तिक आकलन था।

कार्टर को युवा अवस्था से जानने वाले अश्वेत पादरी यंग ने जब कहा कि मैं तो उनका राष्ट्रपति बनना ‘चमत्कार’ ही मानता था।(Dr. Manmohan and Jimmy Carter funerals )

मेरे लिए यह समझना अभी भी मुश्किल है कि जार्जिया से कैसे कोई राष्ट्रपति बन सकता है! और यह सुन सभी हंसे! राष्ट्रपति बाइडेन ने कार्टर को उनके ‘चरित्र’ में आंका।

उसी के हवाले उनका वाक्य था, ’पृथ्वी पर जिंदगी के समय के हर मिनट की सार्थकता के लिए, एक अच्छे जीवन की कसौटी और परिभाषा में कार्टर का जीवन सार्थक था’।

एक टर्म के लिए राष्ट्रपति

सोचें, जो शख्स 43 साल पहले रिटायर हुआ। सिर्फ एक टर्म के लिए राष्ट्रपति था, जिसने ईरान संकट की बदनामी के कारण बुरी तरह हारने का रिकॉर्ड बनाया वह कौम, देश के चरित्र का इसलिए पैमाना हुआ क्योंकि उसका जीवन सहज, सरल, मर्यादित और चरित्रवान था।

कार्टर ने रिटायर होने के बाद एक फाउंडेशन बना कर अपनी प्रकृति अनुसार वैश्विक सरोकार बनाया। गरीबी, बीमारी उन्मूलन, हाउसिंग का वह धर्मादा बनाया, जिससे उनकी दुनिया में पुण्यता बनी।

नोबेल शांति पुरस्कार मिला। हालांकि राष्ट्रपति रहते हुए ही उन्हें यह पुरस्कार कैंप डेविड समझौते याकि इजराइल व मिस्र में करार कराने के लिए मिल जाना चाहिए था।

बाइडेन ने कार्टर के दूरदृष्टि भरे निर्णयों (जलवायु संकट आदि) के अलावा उनकी उन चारित्रिक खूबियों का जिक्र बेबाकी से किया, जिनकी अमेरिका को आज जरूरत है।

सिंह और जिमी कार्टर में क्या समानता(Dr. Manmohan and Jimmy Carter funerals )

कहना था, ‘कार्टर ने हमें सिखाया है कि हर व्यक्ति के साथ सम्मान और गरिमा से व्यवहार होना चाहिए। हमारा कर्तव्य है जो हम नफरत नहीं बनने दें। पॉवर का दुरूपयोग नहीं करें।

अमेरिका का सफर विश्वास की यात्रा है, काम करते रहना है, देश को वैसा बनाए रखना है, जैसा हम मानते हैं, वह बनाना है, जो बनना चाहते हैं। आज कई लोग मानते होंगे कि वे (कार्टर) गुजरे युग के थे लेकिन असलियत में वे भविष्य में झांकते हुए थे’!

अब जरा पूर्व प्रधानमंत्री डॉ. मनमोहन सिंह की अंत्येष्टी के परिप्रेक्ष्य में भारत राष्ट्र-राज्य, मौजूदा सत्तावानों, कौम और भीड़ के अनुभव तथा व्यवहार पर गौर करें। अपने आप जवाब मिलेगा हम किस चरित्र, प्रकृति, स्वभाव, व्यवहार के मनुष्य हैं!

मगर हां, यह जरूर जानना चाहिए कि डॉ. मनमोहन सिंह और जिमी कार्टर में क्या समानता थी? दोनों ‘अच्छे’ लोग थे! और ‘अच्छा’ होना क्या होता है?

भले, सहज-सरल और अपने विश्वास में जिंदगी को मनुष्यता बनाम पशुता के फर्क के बोध में कर्तव्यनिष्ठा से जीना! बिना अभिमान, बिना झूठ, बिना आडंबरों के जीना!

जिमी कार्टर अमेरिका के धुर दक्षिण जॉर्जिया के मूंगफली पैदा करने वाले सामान्य किसान थे। वही डॉ. मनमोहन सिंह विभाजन की त्रासदी से भारत आए सिख परिवार में शिक्षा-समझ की धुन से निर्मित एक अर्थशास्त्री थे।

और उनका भी चरित्र था जो उन्होंने हर जिम्मेवारी का निर्वहन कर्तव्य भाव, ईमानदारी, और मर्यादाओं में किया।

गलत नहीं होगा बाइडेन का कार्टर के लिए कहा यह वाक्य दोहराना कि, ‘पृथ्वी पर जिंदगी के समय के हर मिनट की सार्थकता के व्यक्त्तित्व-कृतित्व का नाम था डॉ. मनमोहन सिंह’!

By हरिशंकर व्यास

मौलिक चिंतक-बेबाक लेखक और पत्रकार। नया इंडिया समाचारपत्र के संस्थापक-संपादक। सन् 1976 से लगातार सक्रिय और बहुप्रयोगी संपादक। ‘जनसत्ता’ में संपादन-लेखन के वक्त 1983 में शुरू किया राजनैतिक खुलासे का ‘गपशप’ कॉलम ‘जनसत्ता’, ‘पंजाब केसरी’, ‘द पॉयनियर’ आदि से ‘नया इंडिया’ तक का सफर करते हुए अब चालीस वर्षों से अधिक का है। नई सदी के पहले दशक में ईटीवी चैनल पर ‘सेंट्रल हॉल’ प्रोग्राम की प्रस्तुति। सप्ताह में पांच दिन नियमित प्रसारित। प्रोग्राम कोई नौ वर्ष चला! आजाद भारत के 14 में से 11 प्रधानमंत्रियों की सरकारों की बारीकी-बेबाकी से पडताल व विश्लेषण में वह सिद्धहस्तता जो देश की अन्य भाषाओं के पत्रकारों सुधी अंग्रेजीदा संपादकों-विचारकों में भी लोकप्रिय और पठनीय। जैसे कि लेखक-संपादक अरूण शौरी की अंग्रेजी में हरिशंकर व्यास के लेखन पर जाहिर यह भावाव्यक्ति -

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