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त्रिमूर्ति (ट्रम्प, इमरान, मोदी) और समय

डोनाल्‍ड ट्रम्प, इमरान खान और नरेंद्र मोदी! तीन सभ्यताओं, तीन धर्मों के चेहरे। समकालीन इतिहास में सर्वाधिक लोकप्रिय। छप्पन इंची छाती वाले! अच्छे दिन लिवा लाने की जुमलेबाजी के मास्टर नैरेटर! जनता की आकांक्षाओं, उम्मीदों के अवतार। अपने आपको कालजयी और अमिट मानने वाले अहंकारी! और अहंकार में ही फिर सत्य, लोकलाज, लोकतंत्र, मर्यादाओं को अंगूठा बताते हुए। तीनों की वैधानिकता बैलेट बॉक्स के ठप्पे से। तीनों अपने धर्मानुगत दिखावे से धर्मावलम्बियों के भगवान! लोगों के रिश्तों में ‘तू’ और ‘मैं’ की लड़ाई बनवाने के रणनीतिकार। देशद्रोही बनाम देशभक्त का हल्ला बनाकर अपने को रक्षक, चौकीदार तथा महाबली बतलाते हुए। तीनों अपने-अपने देश की इकोनॉमी को बरबाद करने वाले। तीनों देश-कौम-सभ्यता-धर्म के नाम पर कंजरवेटिव (ईसाई) अमेरिकी महानता, मुस्लिम जमात के रहनुमा, हिंदू विश्व गुरू या इस्लामोफोबिया, हिंदूफोबिया जैसे जुमलों के उपयोगों से बाहरी ताकतों, साजिशों और दु्श्मनों पर निशाना साध कर देश को ग्रेट बनाने व तब्दीली के मास्टर नैरेटर! तीनों राष्ट्रवाद का झुनझुना बजाते हुए। तीनों अथाह संसाधनों और पैसों से मनचाही राजनीति का कमाल दिखलाते धुरधंर।

कोई माने या न माने तीनों की सत्ता भले देश बदलने, देश बनाने के हल्ले से थी लेकिन तीनों का भाग्योदय समय से था। अश्वेत बराक ओबामा से चिढ़ तथा इस्लामी चिंता ने अनुदारवादियों में डोनाल्ड ट्रम्प की तूती बनी तो डॉ. मनमोहन सिंह, अहमद पटेल व कांग्रेस की गलतियों और इस्लाम के खौफ ने नरेंद्र मोदी का हिंदुओं में मौका बनाया। ऐसा ही पाकिस्तान में हुआ। शरीफ व भुट्टो परिवार की करनियों-क्रोनीवाद से समय ने इमरान खान के भ्रष्टाचार विरोधी क्रूसेडर होने व देश की तब्दीली के उनके वादे को पंख दिए। वे पाकिस्तान में भ्रष्टाचार मिटाने, तब्दीली याकि अच्छे दिन लिवाने का मसीहा बने।

सोचें, समय के उस मौके पर! डोनाल्ड ट्रम्प, इमरान खान और नरेंद्र मोदी तीनों को समय द्वारा मौका देना। देशों के सत्ता प्रतिष्ठानों, सबकी लुटियन दिल्ली याकि राजधानियों में तीनों एकदम नए, कोरे नेतृत्व की ताजगी और देश बदलने, पुरानों से, परिवारवाद, पुराने एलिट से मुक्ति के मानों गारंटीदाता।

लेकिन हुआ क्या? तीनों ने मौके को, समय को अपने अहंकार और झूठ में रौंद डाला। तभी समय का बदला या उसकी लीला जो डोनाल्ड ट्रम्प जेल जाने के कगार पर। हां, अमेरिकी व्यवस्था की अपनी समझ में मेरा मानना है कि 2024 के चुनाव से पहले डोनाल्ड ट्रम्प कैदी की पोशाक पहने दिखलाई देंगे। वही इमरान खान जेल में सड़ते हुए होंगे या विदेश में निर्वासित। और फिलहाल सत्तावान नरेंद्र मोदी का जहां सवाल है तो इसी सप्ताह दुनिया ने देखा है कि नरेंद्र मोदी सजा के जिस प्रपंच, झूठ के ताने-बाने से राहुल गांधी की सांसदी और राजनीति को जेल में डालते हुए थे वह सच की लड़ाई का प्रतीक है। सुप्रीम कोर्ट ने भी इस जनधारणा, विश्वास को पुष्ट किया है कि राहुल गांधी के साथ नाइंसाफी हो रही थी। यदि ऐसा है तो देर से ही सही समय अनिवार्यतः नरेंद्र मोदी के आगे उनके कर्मफलों का आईना लिए हुए होगा।

सोचें, एक-एक करके याद करे तीनों नेताओं के भाग्योदय, वायदों, कर्मों और कर्मफलों पर। नरेंद्र मोदी ने अच्छे दिन लिवाने, भारत को सोने की चिड़िया बनाने, करप्शन मुक्त करने, परिवारवाद खत्म करने, राजनीति में रामजी की नैतिकता-मर्यादा लौटाने, मेक इन इंडिया, आत्मनिर्भर भारत तथा पाकिस्तान-चीन को औकात बताने के कितनी तरह के कैसे-कैसे सपने दिखाए? अभी भी वे दिन-रात जैसे भाषण करते हैं वैसे क्या डोनाल्ड ट्रम्प राष्ट्रपति रहते हुए नहीं करते थे? क्या इमरान खान प्रधानमंत्री बनने से पहले और बाद में तकरीरें नहीं करते थे? हम भारतीयों, खासकर हिंदुओं की याद्दाश्त, उनकी वैश्विक आंखें क्योंकि गुलामी में ढली अचेतना से बंधी आई हैं तो दूरदराज के अमेरिका या बगल के पाकिस्तान की सच्चाई उतनी ही धूमिल होती है जैसे मुंबई के नागरिक को मणिपुर की या केरल वाले को कश्मीर या असमी को नूंह की ग्राउंड रियलिटी बूझ नहीं पड़ती। इसलिए हम हिंदुओं को याद नहीं होगा कि कश्मीर के मामले में इमरान खान ने संयुक्त राष्ट्र में कैसी रिकार्ड तोड़ लफ्फाजी की थी। चुनाव से पहले, प्रधानमंत्री रहते हुए पाकिस्तानी संसद में उग्र व उल्लू बनाने वाले कैसे-कैसे भाषण दिए थे। तथ्य है पाकिस्तान में इमरान खान को बकौल मास्टर नैरेटर, मसीहा, शहीद के रूप में याद किया जाता है या किया जा रहा है। तो डोनाल्ड ट्रम्प पूरे अमेरिकी इतिहास का पहला और अकेला राष्ट्रपति है, जिसने लोगों को भक्त और उल्लू बना कर लोकतंत्र को लूट लेने का जब दुस्साहस दिखाया तो उसके असंख्य भक्तों ने तालियां बजाई थीं।

तभी तय कर सकना मुश्किल है कि डोनाल्ड ट्रम्प, इमरान खान और नरेंद्र मोदी की त्रिमूर्ति में कौन कम या अधिक है। मगर कमाल है समय का। अगस्त 2023 के पहले सप्ताह में अमेरिका, पाकिस्तान और भारत तीनों में बड़े-छोटे अनुपात में समय ने आईना दिखाया है। हां, भारत के सुप्रीम कोर्ट द्वारा निचली अदालतों के राहुल गांधी पर फैसले को रोकने की भी वैश्विक गूंज है। वैसे ही जैसे इमरान खान को सजा या डोनाल्ड ट्रम्प पर तीसरे आपराधिक मुकद्में की सुर्खियां हैं। सही है नरेंद्र मोदी अभी सत्ता में हैं। उन्हें विश्वास है कि वे कभी नहीं हारेंगे। मगर ऐसे ही घमंड में तो डोनाल्ड ट्रम्प की सत्ता भी थी। इमरान खान ने भी सत्ता भोगते हुए उसी सेना से पंगा बनाया था, जिससे उनका मौका बना था। उस नाते सत्ता का अहंकार कैसे-कैसे भस्मासुर बनाता है इसका उदाहरण इमरान खान भी हैं।

ये दोनों नेता आज भी झूठ से जिंदा हैं। सत्ता के अपने कर्मों का सच याकि आईना इन्हें दिखलाई नहीं दे रहा है। जेल जाने से पहले भी इमरान खान यह रोना रो रहे थे देश की इकोनॉमी बरबाद है। जबकि हकीकत है कि पाकिस्तान के दिवालिया होने की वजह इमरान का कार्यकाल था। वे रियलिटी को छुपाते हुए जनता की निगाह में वैसे ही विश्व गुरू थे जैसे हाल-फिलहाल प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी हैं। पता नहीं वे तस्वीरें याद हैं या नहीं जब विश्व नेताओं के बीच, इस्लामी देशों-खाड़ी के अरब देशों के साथ इमरान खान की गर्मजोश राजनीति हुआ करती थी। संयुक्त राष्ट्र में इस्लामोफोबिया का प्रस्ताव रखवा सऊदी अरब के शहंशाह के गाइड हुआ करते थे। इमरान साहेब के संयुक्त राष्ट्र महासभा में भाषण पर पाकिस्तानी झूमा करते थे। सही में ट्रम्प और इमरान के भक्त जितने कट्टर, उन्मादी थे और हैं उनके आगे नरेंद्र मोदी के भक्त तो बेचारे किस्म के हैं। ऐसा फर्क होना रूढ़िवादी ईसाई अमेरिकियों व इस्लाम की घुट्टी लिए कट्टर पाकिस्तानियों से अलग तरह कि हिंदू तासीर से भी है। तभी तो डोनाल्ड ट्रम्प और इमरान खान जेल जाने की नियति के बावजूद भक्तों की ताकत से घमंड में हैं कि वे वापिस राष्ट्रपति, प्रधानमंत्री बनेंगे। जबकि हम भारतीयों का चरित्र है कि जब कोई सत्ता में होता है तब भगवान है अन्यथा याद करें मंडल मसीहा वीपी सिंह को, सत्ता के बाद कोई पूछता नहीं था!

सो, तय मानें नरेंद्र मोदी की सत्ता जब भी खत्म होगी तो वक्त सच्चाई का निर्मम आईना लिए हुए होगा। वे अपनी विरासत, कर्मफल और अस्तित्व के लिए वैसे ही फड़फड़ाए हुए होंगे जैसे डोनाल्ड ट्रम्प और इमरान खान अब दिखलाई दे रहे हैं। इस मूर्खता का अर्थ नहीं है कि मोदी और संघ परिवार का राज कभी खत्म नहीं होगा। या यह ख्याल कि राहुल गांधी पप्पू हैं और विपक्ष खत्म है तो कम से कम पच्चीस साल तो मोदी और उनकी विरासत के वोटों का राज होगा। ऐसा कुछ नहीं होना है। इसलिए भी क्योंकि पिछले नौ वर्षों में नरेंद्र मोदी व अमित शाह ने हिंदुओं के बीच में ही वर्ण-वर्ग की इतनी गहरी दरारें, परस्पर ऐसी खींचतान, विशेषाधिकारों व हरामखोरी की ऐसी भूख बना दी है कि जहां पानीपत की मिनी लड़ाइयां तय है वही नरेंद्र मोदी, अमित शाह और उनके दरबारियों के भविष्य का रोडमैप उतना ही लंबा होगा, जितना लंबा इनका राज चलेगा। हर दिन, हर महीना, हर साल समय के आईने में अंकित होता हुआ है।

बतौर प्रमाण डोनाल्ड ट्रम्प और इमरान खान का मौजूदा वक्त है। मास्टर नैरेटर, झूठ के बादशाह और सर्वाधिक लोकप्रिय के तमगे लिए हुए इमरान खान तथा डोनाल्ड ट्रम्प दोनों मीडिया के आगे, अपने भक्तों के बीच बेहयाई के साथ चाहे जो कहें लेकिन नोट रखें डोनाल्ड ट्रम्प जब जेल जाएंगे तब वाशिंगटन में वह उत्पात नहीं होगा जो उनके राष्ट्रपति रहते हुए हुआ था। इस बात का मतलब नहीं है कि वे दुबारा राष्ट्रपति चुने जाएंगे और जेल नहीं जाएंगे। उन्हें अपनी करनी, अपने अहंकार के परिणाम भुगतने ही हैं!

सोचें, कैसा घूमा है सर्वाधिक लोकप्रिय, अवतारी राष्ट्रपति और प्रधानमंत्री का समय चक्र? पता नहीं लोकसभा में राहुल गांधी की कब एंट्री होगी लेकिन जब भी होगी तब वे नरेंद्र मोदी के सामने ही बैठे होंगे। राहुल के चेहरे को देख कर नरेंद्र मोदी व अमित शाह क्या सोचेंगे? वे क्या मन ही मन अपनी गलती मान रहे होंगे या इस घमंड में होंगे कि यह तो राहुल बाबा, एक चींटी, एक पप्पू! जबकि हम महाबली। हमारी राजनीति, हमारे वोटों, हमारे संसधानों-पैसे और सत्ता के आगे ये कांग्रेसी या लालू, उद्धव, केजरीवाल, अखिलेश आदि की भला क्या औकात। ये तो देशद्रोही, भ्रष्ट, परिवारवादी। इस तरह डोनाल्ड ट्रम्प भी अपने विरोधी जो बाइडेन को, इमरान खान बाजवा व शहबाज शरीफ को लल्लू मानते थे। लेकिन सत्य आज क्या है? समय का न्याय क्या है? इसलिए देखते जाइए समय के खेले को!

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By हरिशंकर व्यास

मौलिक चिंतक-बेबाक लेखक और पत्रकार। नया इंडिया समाचारपत्र के संस्थापक-संपादक। सन् 1976 से लगातार सक्रिय और बहुप्रयोगी संपादक। ‘जनसत्ता’ में संपादन-लेखन के वक्त 1983 में शुरू किया राजनैतिक खुलासे का ‘गपशप’ कॉलम ‘जनसत्ता’, ‘पंजाब केसरी’, ‘द पॉयनियर’ आदि से ‘नया इंडिया’ तक का सफर करते हुए अब चालीस वर्षों से अधिक का है। नई सदी के पहले दशक में ईटीवी चैनल पर ‘सेंट्रल हॉल’ प्रोग्राम की प्रस्तुति। सप्ताह में पांच दिन नियमित प्रसारित। प्रोग्राम कोई नौ वर्ष चला! आजाद भारत के 14 में से 11 प्रधानमंत्रियों की सरकारों की बारीकी-बेबाकी से पडताल व विश्लेषण में वह सिद्धहस्तता जो देश की अन्य भाषाओं के पत्रकारों सुधी अंग्रेजीदा संपादकों-विचारकों में भी लोकप्रिय और पठनीय। जैसे कि लेखक-संपादक अरूण शौरी की अंग्रेजी में हरिशंकर व्यास के लेखन पर जाहिर यह भावाव्यक्ति -

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