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‘वॉर क्रिमिनल’ नेतन्याहू और इजराइल कलंकित!

एक प्रधानमंत्री, एक नेता कैसे एक जिंदादिल देश, बुद्धिमान नस्ल और पुरुषार्थी कौम को भटका कर बरबाद कर सकता है इसका ताजा प्रमाण इजराइल है। इजराइल 1948 में बना। प्रथम प्रधानमंत्री डेविड बेन गुरियन से लेकर सन् 1992 में यासिर अराफात से ओस्लो करार करने वाले प्रधानमंत्री यित्जाक रॉबिन तक के 44 वर्षों का इजराइली सफर विश्व की चमत्कारिक दास्तां थी। वह रेगिस्तान में नखलिस्तान का प्रतिमान बना। उसने बतौर राष्ट्र-राज्य अपने को सुरक्षित बनाया। आतंकवाद और अरब देशों के बाहुबल को परास्त किया। उसकी सैनिक और खुफियाई शूरवीरता के किस्से बने। सुरक्षा का अभेद किला बना। वह ज्ञान-विज्ञान और कारोबार का केंद्र हुआ। दुनिया भर के यहूदियों का गौरव कहलाया। लेकिन यहूदियों का दुर्भाग्य जो 1996 में पुरातनपंथी लिकुड पार्टी ने बेंजामिन नेतन्याहू को प्रधानमंत्री बनाया। तब वे तीन साल पद पर रहे। उसके बाद 1999 से 2006 तक दूसरी पार्टियों और खुद लिकुड के भी दूसरे नेता प्रधानमंत्री बने। उसी दौरान नेतन्याहू ने सत्ता की भूख में अपने को रिइनवेंट कर उस पॉपुलिस्ट रंग-ढंग में ढाला, जिससे कट्टरपंथी यहूदियों की संख्या में इजाफा हुआ। उनकी भक्ति बनी। और इस थीम पर वे बार-बार प्रधनमंत्री बने कि बिना बीबी (नेतन्याहू) के देश खो जाएगा, बचेगा ही नहीं (Without Bibi the country is lost)!

हां, इजराइल मतलब नेतन्याहू। और इस नैरेटिव के लिए नेतन्याहू ने क्या-क्या नहीं किया!  अपने आपको देश का रक्षक, अमन और सुरक्षा का गारंटीदाता बताया। छप्पन इंची छाती वाला वह बाहुबली जो चौबीसों घंटे काम करता है। जो राष्ट्रवादी है और विश्व नेताओं का चहेता भी। फिलस्तीनियों को औकात बता करके उनके मसलों की चिंता नहीं करते हुए उन्होने अरब देशों से अब्राहम करार करके अपनी वाह बनवाई। वही इजराइल को स्टार्टअप्स का विश्व गुरू बना देने जैसे रंग-बिरंगा नैरेटिव भी बनाए। कुल मिलाकर बेंजामिन नेतन्याहू ने लगभग दो दशक इजराइल की अंदरूनी राजनीति में वह सब किया, जिससे यहूदियों में फिलस्तीनी मसला हाशिए में गया। कठमुल्लाई यहूदियों ने वेस्ट बैंक, गाजा याकि फिलस्तीनी जीवन के साथ मनचाहा व्यवहार किया। दुनिया भी बीबी उर्फ नेतन्याहू के आगे लाचार और बेबस थी।

“किंग बीबी” ने यहूदियों में देशभक्त बनाम देशद्रोही जैसा मतभेद बनवाया। वे भक्त समर्थकों में देश की सुरक्षा की अनिवार्यता है तो विरोधियों में लोकतंत्र के लिए खतरनाक। नेतन्याहू ने देश-समाज में ऐसे कट्टरपंथी लंगूर पैदा किया, उन्हें पैसा दिलवाया, मान-सम्मान दिलवाया, सत्ता में भागीदार बनाया कि वैश्विक पत्रिका ‘टाइम्स’ ने एक दफा कवर पर नेतन्याहू को ‘अति-विभाजनकारी’ (ultra-divisive) लिखा था। और इस वर्ष इस सत्य का पूरी दुनिया को तब अनुभव हुआ जब सुप्रीम कोर्ट के अधिकारों को खत्म करने के नेतन्याहू सरकार के विधेयक को ले कर इजराइल पूरी तरह विभाजित दिखलाई दिया।

सोचें अब, ऐसे प्रधानमंत्री होने के परिणामों पर। नेतन्याहू से खुद इजराइल और उसके हमदर्द दोस्त देश क्या भुगतते हुए हैं? पहला सत्य, असुरक्षित इजराइल। दूसरा सत्य, हमास के आतंकी यदि वहशी तो इजराइल का उसके बाद उससे भी अधिक दरिंदगी भरा व्यवहार। तीसरा सत्य, दुनिया में यहूदियों के खिलाफ बनती घृणा। चौथा सत्य, इजराइल खुद भीतर से विभाजित। पांचवां सत्य, उसकी वजह से इजराइल के पोषक पश्चिमी देश अब कटघरे में खड़े हुए। छठा सत्य, इजराइल के कारण चीन, रूस और वे तमाम इस्लामी-अफ्रीकी देश विश्व व्यवस्था में नए गठजोड़ बनाते हुए, जिससे आगे सभ्यता के संघर्ष में ईसाई और यहूदियों को शर्मसार होना होगा। सातवां सत्य, अमेरिका और यूरोप यूक्रेन की लड़ाई से ध्यान हटाने को मजूबर। आठवां सत्य, उन तमाम देशों पर आर्थिक, कूटनीतिक, सैनिक बोझ जो इजराइल के हितैषी हैं। आठवां सत्य, पूरा पश्चिम एशिया वैश्विक लड़ाई के मुहाने पर। सोचें, यदि नेतन्याहू ने हमास के पीछे ईरान को कसूरवार करार दे कर उसकी तरफ सैनिक अभियान मोड़ा तो इस चालबाजी या हकीकत में अमेरिका-यूरोप क्या लड़ाई का फैलना रोक सकेंगे? नौवां सत्य, क्या अब कभी कोई फिलस्तीनी मुद्दे के समाधान की कोशिश हो सकेगी? दसवां सत्य, स्वयं रक्षा के इजराइली हक के जुमले में नेतन्याहू यदि गाजा, वेस्ट बैंक सहित लेबनान, ईरान सभी ओर सैनिक ऑपरेशन का मिशन बना लें तो उन्हें कौन रोकने वाला है? सेल्फ डिफेंस के जुमले में नेतन्याहू ग्रेटर इजराइल बनाएं तथागाजा के 20-22 लाख फिलस्तीनी शरणार्थियों को जबरदस्ती मिस्र में धकेलें तो उन्हें रोकने वाला कौन है?

यदि सिर्फ इजराइल के परिप्रेक्ष्य में सोचें तो उसके राष्ट्रपति को आतंकी हमले के बाद न केवल बेंजामिन नेतन्याहू को बरखास्त करना था, बल्कि उन्हें और उनके कट्टरपंथी सुरक्षा मंत्रियों को कटघरे में खड़ा करना था। समझदार नेताओं की नई आपातकालीन सरकार बनानी थी। इसलिए कि सात अक्टूबर 2023 को जो हुआ है उसके असल जिम्मेवार नेतन्याहू हैं। उन्ही की रीति-नीति की वजह से गाजा पट्टी, वेस्ट बैंक में फिलस्तीनी सालों से खदबदाते हुए थे।

अपने आपको शेर, सूरमा बतलाने के लिए नेतन्याहू ने लंगूर मंत्रियों को मनमानी करने दी। इससे भी गंभीर बात जो नेतन्याहू की कमान में खुफिया मोसाद एजेंसी और सुरक्षा बंदोबस्त लापरवाह व बेखबर थे। सोचें, जिस इजराइली एजेंसी से तमाम आतंकी और अरब देश थर-थर कांपते थे उसको अंगूठा बता कर हमास औचक आंतकी हमला कर सका है तो इससे नेतन्याहू सरकार का निकम्मान अपने आप प्रमाणित है।

आतंक वहशी होता है मगर वह हमेशा जिंदा सामने मौजूदा होता है। इसकी हकीकत में ही राष्ट्र-राज्य की व्यवस्थाएं होती हैं। और फिर जो देश, जो प्रधानमंत्री अपनी सत्ता और राजनीति के लिए हर दिन आतंकी, जिहादी या विरोधी को सुई चुभाता है, प्रताड़ित करना है तो वह आग से खेलता होता है। नेतन्याहू ने इजराइल-फिलस्तीनी ओस्लो समझौते का विरोध किया था। वे अमेरिका, यूरोपीय देशों की कोशिशों के बावजूद फिलस्तीनियों को एडजस्ट करने याकि 1968 से पहले की उनकी बसावट की बहाली, स्वतंत्र फिलस्तीनी देश जैसे सुझावों को नकारते रहे। उलटे फिलस्तीनी इलाके में, फिलस्तीनी घरों को खाली करा कर, उन्हें उजाड़ कर उन कट्टरपंथी यहूदियों को बस्तियां बनाने दी, जिन पर आए दिन बवाल होता था।

तो आतंकी सगंठन हमास हो या हिजबुल्ला, सबको नेतन्याहू के राज में खाद-पानी-बारूद पाने के मौके मिले। ऐसा नेतन्याहू से पहले नहीं था। यासिर अराफात और उनका पीएलओ घोर इजराइल विरोधी आंतकी थे। तथ्य है कि 1977 में पहली बार जब लिकुड पार्टी सत्ता में आई तो प्रथम लिकुड प्रधानमंत्री बेगिन ने भी अमेरिकी राष्ट्रपति जिमी कार्टर की मध्यस्थता में फिलस्तीनी समस्या के समाधान की शांतिवार्ता में भाग लिया था। नेतन्याहू से पहले इजराइल के तमाम प्रधानमंत्रियों ने जहां सुरक्षा-सैनिक ऑपरेशनों में दृढ़ता दिखाई, अरब सेनाओं को हराया, आतंकियों को मरवाया तो वही पश्चिमी देशों की सुलह कोशिशों को भी गंभीरता से लिया। फिलस्तीनी समस्या है, इसे सभी मानते रहे। जबकि नेतन्याहू ने अमेरिकी राष्ट्रपतियों (डोनाल्ड ट्रंप को छोड़ कर) को ठेंगा बताया। नेतन्याहू अपने चुनाव प्रचार में पुतिन, ट्रंप, शी जिनफिंग के संग खींचे फोटो के पोस्टर इस्तेमाल करते रहे हैं। उन्हें ओबामा पसंद नहीं थे। तभी बिल क्लिंटन की विदेश मंत्री अलब्राइट ने नेतन्याहू को ‘इजराइली न्यूटगिंगरिचि’ का नाम दिया था वही फ्रांस के राष्ट्रपति सरकोजी ने 2012 में बराक ओबामा से शिकायत करते हुए कहा, “मैं नेतन्याहू को सहन नहीं कर सकता, वह झूठा है। इस पर ओबामा का जवाब था, “आप उससे तंग आ चुके हैं, लेकिन मुझे तो बार-बार उससे निपटना पड़ता है। (I cannot bear Netanyahu, he’s a liar.” Obama responded, “You’re fed up with him, but I have to deal with him even more often than you.)। ऐसे ही मौजूदा अमेरिकी राष्ट्रपति बाइडेन नेतन्याहू को शुरू से नापसंद करते हैं। तभी उनसे मिलना टालते रहे। इसी सितंबर में उन्होंने नेतन्याहू को व्हाइट हाउस बुलाया।

कुल मिला कर नेतन्याहू ने जो बीज बोए उससे हमास की ताकत बनी। उसने साजिश रची। इजराइल का 9/11 बनाया। सात अक्टूबर 2023 को इजराइल थर्राया तो दुनिया भी थर्राई। इस्लामी उग्रवादियों, अरब-इस्लामी देशों ने चाहे जो सोचा हो पर जो हुआ है उससे मानवता का पोर-पोर यह मानते हुए था कि हमास के ये कैसे जंगली लोग। इजराइल के प्रति सहानुभूति बनी। लेकिन गौर करें शुरुआत के 48 घंटे और सात दिन बाद की मौजूदा वैश्विक अनुभूतियों पर। टीवी चैनलों पर, मीडिया में क्या दिखलाई दे रहा है? नेतन्याहू मानों हमास की साजिश के हिस्सा हों, जो वे युद्ध, जंग का ऐलान करते हुए न केवल गाजा को तबाह कर दे रहे हैं, बल्कि पूरी आबादी को पाषाण युग याकि स्टोन एज में पहुंचाने का संकल्प बतला रहे हैं।

नेतन्याहू उन फिलस्तीनियों को वापिस शरणार्थी बना रहे हैं, जो दशकों से शरणार्थी कैंपों में रह रहे थे। शरणार्थी आबादी को फिर से शरणार्थी बनाना भला कौन सा शौर्य है? इजराइली सेना का दिन-प्रतिदिन, लगातार गाजा पट्टी को खंडहर में बदलने वाली बमबारी क्या वही बर्बरता नहीं है, जो रूसी सेना ने यूक्रेन में दिखलाई?

मैं इजराइल और यहूदी जज्बे का मुरीद रहा हूं। मगर सात अक्टूबर 2023 के दिन हमास के हमले की अनहोनी से जहां हैरान हुआ वही अब यह सोचते हुए हैरान हूं कि यहूदी राष्ट्र-राज्य की बुद्धि, विवेक, समझ का कैसा यह बाजा बजा जो वह अब वैसे ही व्यवहार करता हुआ है जैसे रूस और पुतिन करते हैं। कुछ हजार आतंकियों के वहशीपने पर 20-22 लाख लोगों की जिंदगी बरबाद करना, उन्हें सामूहिक तौर पर दर-बदर करना, उन्हें भूखा-प्यासा तड़पाना यहूदी देश का गौरव होगा या कलंक? यह क्या इजराइल की सेल्फ डिफेंस है?

सात अक्टूबर 2023 की घटना के बाद इजराइली लेखक युवाल नोआ हरारी ने कहा है कि हमास का तो मकसद है कि पश्चिम एशिया में लोग पीढ़-दर पीढ़ी लड़ते रहें। ठीक बात है। लेकिन आतंकियों के ऐसे मकसद या धूर्तता की बुनियाद की चिंता तो इजराइल राष्ट्र-राज्य को करनी थी। पिछले पंद्रह वर्षों में नेतन्याहू ने क्या किया? क्या समस्या की जड़ को सुलझाने में एक भी दफा कोशिश की? फिर पहले भी पीएलओ से लेकर हमास, हिजबुल्ला आदि इस्लामी आतंकी संगठनों की आतंकी हरकतें होती थीं लेकिन तब उनसे इजराइली मोसाद एजेंसी और सुरक्षा बल लड़ते थे। अब पूरी सेना लड़ रही है। देश ने युद्ध घोषित कर दिया है। सेना फिलस्तीनी गाजा पट्टी पर गोले बरसा रही है। पूरा गाजा क्षेत्र अंधेरे में है। वह बिजली, पानी और जरूरी सामानों की सप्लाई के बिना है। इजराइली सेना ने उत्तरी गाजा के 10-11 लाख लोगों को घर-बार छोड़ कर जाने का अल्टीमेटम दिया, जबकि न लोगों के पास साधन हैं और न कही खाली जगह है।

नेतन्याहू का ऐसे बदला लेना और यह कथित युद्ध क्या इजराइल के रक्षा-सुरक्षा अधिकार के तर्क में जायज है? इन पंक्तियों के लिखे जाने तक इजराइली सेना ने आतंकी हमले में मारे गए या घायल हुए इजराइलियों की संख्या से अधिक गाजा में फिलस्तीनियों को मारने का आकंड़ा बना लिया है। इनमें सात सौ से ज्यादा मरे छोटे बच्चे हैं। क्या ये आतंकी थे? यह आतंकियों को मारना है या नरसंहार है? ऐसे तो युद्ध नहीं हुआ करता। इससे क्या दुनिया में इजराइल की शूरवीरता बनेगी? बड़े-बूढ़ों, औरतों, बच्चों की लाशों का अंबार क्या आतंकी हमले का बदला है या निरपराधियों का नरसंहार? इससे कथित शूरवीर नेतन्याहू का वैसा ही ‘वॉर क्रिमिनल’ बनना नहीं है, जैसे पिछले एक वर्ष से यूक्रेन में नरसंहार से राष्ट्रपति पुतिन करार हैं?

By हरिशंकर व्यास

मौलिक चिंतक-बेबाक लेखक और पत्रकार। नया इंडिया समाचारपत्र के संस्थापक-संपादक। सन् 1976 से लगातार सक्रिय और बहुप्रयोगी संपादक। ‘जनसत्ता’ में संपादन-लेखन के वक्त 1983 में शुरू किया राजनैतिक खुलासे का ‘गपशप’ कॉलम ‘जनसत्ता’, ‘पंजाब केसरी’, ‘द पॉयनियर’ आदि से ‘नया इंडिया’ तक का सफर करते हुए अब चालीस वर्षों से अधिक का है। नई सदी के पहले दशक में ईटीवी चैनल पर ‘सेंट्रल हॉल’ प्रोग्राम की प्रस्तुति। सप्ताह में पांच दिन नियमित प्रसारित। प्रोग्राम कोई नौ वर्ष चला! आजाद भारत के 14 में से 11 प्रधानमंत्रियों की सरकारों की बारीकी-बेबाकी से पडताल व विश्लेषण में वह सिद्धहस्तता जो देश की अन्य भाषाओं के पत्रकारों सुधी अंग्रेजीदा संपादकों-विचारकों में भी लोकप्रिय और पठनीय। जैसे कि लेखक-संपादक अरूण शौरी की अंग्रेजी में हरिशंकर व्यास के लेखन पर जाहिर यह भावाव्यक्ति -

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