नरेंद्र मोदीःघड़ियाली आंसू?

नरेंद्र मोदीःघड़ियाली आंसू?

मगरमच्छ के क्या आंसू निकलते हैं? और क्या नरेंद्र मोदी मगरमच्छ हैं? कोलकत्ता के ‘द टेलीग्राफ’ अखबार ने मणिपुर में बलात्कार के वीडियो के सत्य में संसद के बाहर नरेंद्र मोदी की प्रतिक्रिया को मगरमच्छ के आंसू बताया। अखबार ने पहले पेज पर मुख्य खबर के नाते एक ग्राफिक छापा। 79 दिन बाद मगरमच्छ के आंसू निकलने की इमेज का ग्राफिक! निश्चित ही ‘द टेलीग्राफ’ की संपादकीय टीम ने कमेंट करते हुए मोदी के वीडियो पर बहुत गौर किया होगा। और सच बताऊं उस दिन मैंने भी कई बार 30 सेकेंड के मोदी कमेंट का वीडियो देखा। मैं चौंका था यह जान कर कि नरेंद्र मोदी ने राजस्थान की घटना से टिप्पणी शुरू की। मतलब मणिपुर में नग्न महिलाओं का रोड शो, उन पर यौन हिंसा और उसका जश्न अपने प्रधानमंत्री को बलात्कार की नॉर्मल घटना समझ आई! इसलिए मैंने बार-बार नरेंद्र मोदी का चेहरा, उनकी भाव-भंगिमा देख विचार किया कि मोदी ने क्या मणिपुर वाला वीडियो देखा भी है? क्या गृह मंत्रालय ने, अमित शाह ने उन्हें वह वीडियो दिखलाया, जिसमें चार-पांच लोग नहीं, बल्कि भीड़ नंगी महिलाओं की नुमाइश के साथ हुंकारा, किलकारी मारते हुए थी। कोई महिला के गुप्तांग में हाथ घुसाता हुआ तो कोई उनके शरीर पर ऊपर व पीछे हाथ फेरते हुए। और उन्हें हांकते हुए नौजवान चेहरे…..!

हां, मैंने वह वीडियो देखा। और मेरी जिंदगी, मेरे अनुभव और मेरे धर्म का वह पहला कंपकंपा देने वाला वीडियो था। मैंने बहुत हॉरर फिल्में, वयस्क-अपराध फिल्में देखी हैं। साथ ही 1977 से देश-विदेश की घटनाओं को लगातार जानते-सुनते-देखते आया हूं। क्रूरताओं व बर्बरताओं का इतिहास भी पढ़ा है। मेरी धारणा थी और है कि मनुष्य रूप में राक्षस इतिहास तीन तरह के चेहरों से अभिव्यक्त है। एक, हिटलर, पोल पोट जैसे नरसंहारक से। दो, इस्लामिक स्टेट के बगदादी या बोको हराम छाप जुनूनियों से। तीन, चंगेज खान, स्टालिन, माओत्से तुंग व पुतिन जैसे बर्बर-तानाशाह चेहरों से। जहां तक हम हिंदुओं की रावण या कौरव कथा याकि दौपद्री के चीरहरण का सवाल है तो वे अहंकार-अभिमान तथा भूख-वासना की मिथक कथाएं हैं। असल बात ज्ञात इतिहास के साक्षात मानव अनुभव की है। इस ज्ञात इतिहास में हम सनातनी जीवनधर्मियों में नरसंहारक, जुनूनियों व बर्बर तानाशाहों जैसी करनी कोई अंकित नहीं है। तभी मैं अपने सनातनी जीवन और हिंदू अनुभव को बाकी सभ्यताओं से बिरला-अलग मानता हूं। इतिहास के एक सत्य का जिक्र करना चाहूंगा। सनानती धर्मपंथियों में राजा रणजीत सिंह का एक बर्बर सेनापति था। रणजीत सिंह ने उसे बर्बरतम कबीलाई अफगानियों को कुचलने के लिए भेजा। हरिसिंह नलवा ने कट्टर मुस्लिम कबाइलियों पर बेरहमी से कंट्रोल किया। मगर सेना को इस फरमान के साथ कि महिला व बच्चों की रक्षा व मान-सम्मान हो। उससे ही कबीलाई पुरूषों के सलवार-कुर्ते की महिला ड्रेस पहन जान बचाने की तिकड़म के किस्से हैं।

विषयांतर हो गया है। मूल बात है कि मैंने 1977 से 2023 में बतौर पत्रकार आज तक के अनुभवों में तमाम तरह की सच्ची-झूठी जितनी भी अमानवीय घटनाएं, सामाजिक विकृतियां (फूलन देवी का किस्सा या जात-समाज-खाप की सजाएं) सुनी-जानी, वीडियो या फिल्में देखी उसके कभी मानव समाज का यह अनुभव नहीं दिखा कि एक नस्ल के लोग दूसरी नस्ल की महिला के साथ सामूहिक बलात्कार करें और फिर भीड़ उसका जश्न मनाते, हल्ला करते हुए बतौर ट्रॉफी नंगी महिलाओं का प्रदर्शन जुलूस सा निकालते हुए यह जताए कि देखो हमने बदला लिया है, हम जीते! जैसा कि मणिपुर के वीडियो से जाहिर है!

और वे हिंदू थे। बदला आदिवासी से था, ईसाई आदिवासी कुकियों से था। हिंदू मुख्यमंत्री, हिंदू पुलिस-प्रशासन की प्रत्यक्ष-परोक्ष स्पॉन्सरशिप में हुई हिंसा, बलात्कार का वह जश्न था, जिसकी खबर 77 दिन तक तो भारत सरकार, गृह मंत्रालय, भारत के मीडिया व संस्थाओं ने इंटरनेट पाबंदी, सूचनाओं को दबाए रख प्रगट नहीं होने दिया लेकिन अचानक एक दिन जब वीडियो साक्ष्य जगजाहिर हुआ तो प्रधानमंत्री ने अपने आपको शर्मसार बतलाते हुए राजस्थान-छतीसगढ़ व मणिपुर का जिक्र करके मुख्यमंत्रियों को कानून-व्यवस्था दुरूस्त करने की नसीहत दी!

और ‘द टेलीग्राफ’ ने लिखा मगरमच्छ के आंसू! घड़ियाली आंसू! बैनर हेडिंग (नीचे देखें) देख भक्तों ने, खासकर पढ़े-लिखे भक्तों ने, लंगूरों ने अखबार की बखिया उधेड़ डाली।

लाख टके का सवाल है कि नरेंद्र मोदी और अमित शाह ने क्या वह वीडियो देखा? यदि देखा तो क्या उन्हें सचमुच वैयक्तिक बलात्कार अपराध लगा? तनिक भी क्या शर्म आई? दिल-दिमाग क्या कंपकंपाया? कुछ नहीं कहा जा सकता। इसलिए क्योंकि समय अब वह करता हुआ है जो नरेंद्र मोदी सोचते कुछ हैं तथा होता कुछ और है! मेरा मानना है कि लोकसभा चुनाव के रोडमैप में उनको ईसाई बहुल महाशक्तियों याकि अमेरिका-पश्चिमी देशों के जी-20 जमावड़े से घर में अपनी विश्वगुरूता दिखलानी है। नरेंद्र मोदी, अजित डोवाल, जयशंकर के लिए जी-20 की कूटनीति फिलहाल प्राथमिकता है। ऐसे में मणिपुर में ईसाई आदिवासी महिलाओं से बदला लेने वाली हिंदू भीड़ से सब गुड़गोबर हुआ है। मतलब अचानक अप्रत्याशित घटनाक्रम।

जाहिर है गुजरे नवंबर से एक के बाद एक ऐसी घटनाएं हैं, जिससे मोदी सरकार का समय उलटा झलकता है। मोदी मानते हैं कि दुनिया, देश, राजनीति, चुनाव, विपक्ष सब को जैसे चाहें नचाएंगे। हम जो चाहेंगे वह होगा। मैं हूं समय। इसी विश्वास में नरेंद्र मोदी और अमित शाह ने उत्तर-पूर्व को अपने मनमाफिक बनाने का वह हर संभव काम छेड़ा है जो पहले उत्तर भारत में हुआ है। उत्तर प्रदेश या उत्तर भारत को यदि भाजपा ने हिंदू-मुस्लिम और बुलडोजर से पकाया है तो उत्तर-पूर्व में हिंदू बनाम मुस्लिम के साथ घाटी के हिंदू, आदिवासी हिंदू बनाम ईसाई आदिवासी राजनीति के प्रयोग भी गहरे हैं। सोचें, दक्षिण भारत के उस जज पर, जिसे अनिच्छा के बावजूद चीफ जस्टिस रंजन गोगोई के वक्त कॉलेजियम ने मणिपुर में बैठाया था। उसी जज ने इस साल ही घाटी में रहने वाले मैती हिंदुओं को अनुसूचित जनजाति याकि एसटी का दर्जा देने का फैसला सुनाया। आदिवासियों में प्रतिक्रिया होनी ही थी। कुकी आदिवासी भड़के। प्रदर्शन-आंदोलन शुरू किया। परिणाम सामने है। कल ही खबर थी कि एक मिजो आदिवासी संगठन ने मैती हिंदुओं को मिजोरम छोड़ने को कहा है। और वे भाग रहे हैं। मैती हिंदुओं की मिजोरम से निकासी के लिए मणिपुर के मुख्यमंत्री बीरेन सिंह ने हवाई जहाज भेजा।

तो मणिपुर के घाटीवासी बहुसंख्यक हिंदुओं के लिए मुख्यमंत्री बीरेन सिंह क्या हुए? कोई माने या न माने मुख्यमंत्री बीरेन सिंह अब उत्तर-पूर्व के योगी आदित्यनाथ हैं। मणिपुर की प्रयोगशाला से ही उत्तर-पूर्व को हिंदुओं (शेष भारत के भक्तों में भी) यह गर्व है कि कभी ईसाइयों, ईसाई उग्रवादी संगठन, अलगाववादी संगठनों की तूती में, उनके खौफ में उत्तर-पूर्व था अब हमारा राज है। मोदीजी हैं तो सुरक्षा है, बदला ले सकना है। याद करें वीडियो जगजाहिर होने से पहले की उस घटना को, जिसमें मुख्यमंत्री बीरेन सिंह ने इस्तीफा देने की नौटंकी की थी लेकिन मैती हिंदू औरतों ने उनसे इस्तीफा छीन लिया।

तो बीरेन सिंह तथा उनकी कमान में बनी मैती हिंदू अस्मिता की लड़ाई, अधिकार व बदला लेने वाला मॉडल उन अंधे हिंदुओं की जरूरत है, जिन्हे उत्तर-पूर्व में ईसाइयों से आदिवासियों के धर्मांतरण की पुरानी शिकायत है। दरअसल मनोदशा का वही मसला है जो एक वक्त नरेंद्र मोदी से पहले गुजरात में था। कांग्रेसी राज में मुसलमानों की गुजरात में दादागिरी थी लेकिन सबक सिखाया तो सब बदल गया। उसी थीसिस में चार मई 2023 को मणिपुर के कांगपोकपी जिले के गांव बी फैनोम में कुकी ईसाई महिलाओं से मैती हिंदुओं ने जिस तरह बदला लिया तो वह पूरे उत्तर-पूर्व की राजनीति और समाज को मैसेज है। सोचें, यह सब कितनी दमदारी से हुआ। हाई कोर्ट से मैदानी लोगों को आदिवासी-एसटी घोषित करने का पहले फैसला और उससे हिंदुओं में मैसेज की मोदी है तो सब मुमकिन है। फिर यह घमंड कि यदि आदिवासी विरोध में प्रदर्शन करते हुए सड़क पर आएंगे तो उनके घर फूंक देंगे। उन्हें जंगल में भगा दिया जाएगा। न प्रशासन मदद करेगा और न पुलिस।

उफ! छोटा सा 40 लाख लोगों का मणिपुर और कितना बड़ा राजनीतिक प्रयोग! लेकिन प्रयोग से ही तो आगे का बड़ा विकास। इसलिए प्रधानमंत्री के घड़ियाली आंसू एक तरफ। असल बात पूर्वोत्तर गृहयुद्ध का, पानीपत की छोटी लड़ाई का वह मैदान, जिसकी एक जीत पर चार मई को गांव की भीड़ ने जश्न मनाया। सो, न मणिपुर में राष्ट्रपति शासन लगेगा। न बीरेन सिंह का इस्तीफा होगा और न पहले जितना समरस समाज अब कभी संभव है। और न ही नरेंद्र मोदी और भक्त हिंदू यह मानेंगे कि मणिपुर की बलात्कार घटना राजस्थान, दिल्ली या छतीसगढ़ या देश के किसी भी हिस्से में होने वाले वैयक्तिक अपराध घटना नहीं है, बल्कि यह सरकार-राष्ट्र व्यवस्था-राजनीति का वह अमानवीय अपराध है, जिससे हम हिंदू निश्चित ही वैश्विक तौर पर कलंकित हुए हैं!

Published by हरिशंकर व्यास

मौलिक चिंतक-बेबाक लेखक और पत्रकार। नया इंडिया समाचारपत्र के संस्थापक-संपादक। सन् 1976 से लगातार सक्रिय और बहुप्रयोगी संपादक। ‘जनसत्ता’ में संपादन-लेखन के वक्त 1983 में शुरू किया राजनैतिक खुलासे का ‘गपशप’ कॉलम ‘जनसत्ता’, ‘पंजाब केसरी’, ‘द पॉयनियर’ आदि से ‘नया इंडिया’ तक का सफर करते हुए अब चालीस वर्षों से अधिक का है। नई सदी के पहले दशक में ईटीवी चैनल पर ‘सेंट्रल हॉल’ प्रोग्राम की प्रस्तुति। सप्ताह में पांच दिन नियमित प्रसारित। प्रोग्राम कोई नौ वर्ष चला! आजाद भारत के 14 में से 11 प्रधानमंत्रियों की सरकारों की बारीकी-बेबाकी से पडताल व विश्लेषण में वह सिद्धहस्तता जो देश की अन्य भाषाओं के पत्रकारों सुधी अंग्रेजीदा संपादकों-विचारकों में भी लोकप्रिय और पठनीय। जैसे कि लेखक-संपादक अरूण शौरी की अंग्रेजी में हरिशंकर व्यास के लेखन पर जाहिर यह भावाव्यक्ति -

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