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मोदी राज का ‘प्रसादम्’

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छी! प्रसादम् तो मैंने भी खाया। राम मंदिर की प्राण प्रतिष्ठा को कवर कर अयोध्या से जब श्रुति लौटी थी तो ‘प्रसादम्’ लेकर आई थी। न केवल मैंने, घर में सभी ने खाया, बल्कि पत्नी ने पड़ोस में भी बांटा। और अब शंकराचार्य और मंदिर के मुख्य पुजारी कह रहे हैं वे लड्डू तिरुपति देवस्थान से बन कर आए थे। इसका अर्थ तब मैंने और प्राण प्रतिष्ठा के लिए अयोध्या गए सभी हिंदू भद्रजनों, साधु-संतों ने पशुचर्बीयुक्त घी का प्रसाद खाया? और बतौर मुख्य यजमान मोदी ने उसी का भोग रामलला को लगाया? या उनके लिए चढ़ावा अलग था और भक्तों को मूल चढ़ा हुआ प्रसाद नहीं बंटा, बल्कि उसके झूठ में तिरुपति से आए लड्ड़ू बांटे गए?

क्या प्रधानमंत्री ने मुख्य यजमान के दायित्व में या राम मंदिर ट्रस्ट के चंपत राय, नृपेंद्र मिश्र आदि ने तिरुमला तिरुपति देवस्थानम के घी का पहले टेस्ट करवा कर शुद्धता की कोई गारंटी ली थी? राम मंदिर ट्रस्ट ने पैसे दे कर कर उन्हें खरीदा था या फ्री में तिरुपति रसोई में बने व चढ़े हुए लड्डू बांटे? क्या है रिकॉर्ड? क्या राम मंदिर में इतना पैसा नहीं था जो अयोध्या में रामजी की रसोई बना, तिरुपति से कारीगर बुला कर, रामजी के अपने प्रिय प्रसाद को शुद्धता से बनवाते और प्राण प्रतिष्ठा में कोई खोट नहीं होने देते? मंदिर की प्राण प्रतिष्ठा के ऐतिहासिक दिन भी क्या ट्रस्ट सौ टका शुद्ध, एक ही प्रसाद बना कर प्रभु को अर्पित नहीं करा सकता था और क्या वही फिर सभी को समानता से नहीं बंटना चाहिए था?

सोचें, अंग्रेजों ने 1857 के भारत बीहड़ में लोगों की भावनाओं को आहत करने के लिए कारतूस में पशु चर्बी (गौ चर्बी, सुअर चर्बी) का पाप कराया। नतीजतन सैनिक विद्रोह हुआ। उसके बाद अस्सी के दशक में जैन बंधुओं द्वारा वनस्पति घी में पशु चर्बी के उपयोग के बवाल की खबरें थी। और अब सीधे पशु चर्बी या गौ चर्बी की प्रसादम् में मिलावट का एक ऐसा अकल्पनीय आघात है, जिससे तिरुपति बालाजी और नवनिर्मित राम मंदिर के भोग और प्रसाद से हम हिंदुओं के सिर माथे का पाप ही पाप..तो यह नरेंद्र मोदी, योगी आदित्यनाथ का रामराज्य है या घोर पापी कलियुग!

यह न बात का बतंगड है और न नरेंद्र मोदी की लीडरशीप पर सवाल। मैंने खबर जानी तो जुगुप्सा हुई। लिखने का सवाल नहीं था। लेकिन फिर मोदी राज के एक और ‘प्रसादम्’ पूर्व राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद की सियासी टिप्पणी पढ़ने को मिली। उन्होंने वाराणसी में शनिवार (22 सितंबर) को कहा- कल रात मेरे कुछ सहयोगी बाबा विश्वनाथ धाम गए थे। रात में मुझे बाबा का प्रसादम् दिया, तो मेरे मन में तिरुमाला की घटना याद आई। मेरा मन थोड़ा खटका। हर तीर्थ स्थल में ऐसी घटिया मिलावट हो सकती है। हिंदू धर्म के अनुसार ये बहुत बड़ा पाप है। इसकी ढंग से जांच हो।

कौन करेगा जांच? वे, जिन्होंने अयोध्या में मिलावटी प्रसाद बंटवाया? वे जो दस वर्षों से सबमें सब कुछ मिला चुके हैं। सब कुछ भ्रष्ट और अपवित्र बना चुके हैं। मंदिर में राजनीति, राजनीति में मंदिर, राजकाज में मुर्खताओं, शिक्षा में अज्ञानता तथा सत्य में झूठ की, विश्वास में अंधविश्वास जैसी मिलावटों से बात बात में सनातन धर्म की शर्म जो बना बैठे हैं वे क्या जांच करेंगे? और उनकी जांच में कितनी मिलावट होगी? आज ही सुना कि 22 जनवरी 2025 को फिर रामलला की प्राण प्रतिष्ठा की तैयारी है!

क्या प्राण प्रतिष्ठा बार बार होती है? जाहिर है मोदी राज का दस वर्षों का यह ‘प्रसादम्’ है जो 140 करोड़ लोगों का देश ऐसा बीहड बना है, जिसमें आस्था, धार्मिकता, लोकलाज, जनभावना का न्यूनतम ख्याल नहीं है। समझ नहीं आता इतने बेखौफ, बेशर्म कैसे हो गए हैं सत्ता के अहंकारी? यदि हिंदुओं का नंबर एक समृद्धतम तिरुपति देवस्थान ट्रस्ट भी पूर्ण शुद्ध भाव से अपने भगवान और भक्तों के लिए शुद्धतापूर्ण लड्डू का चढ़ावा नहीं चढ़ा सकता है तो इस बीहड़ के लोगों को अपने को हिंदू, सनातन धर्मी क्यों कहना चाहिए?

जिस देवस्थान पर करोड़ों-करोड़ लोग बेइंतहां चढ़ावा चढ़ाते हैं, पैसा अर्पित करते हैं, जिसकी अरबों रुपए की कमाई है क्या वहां के पुजारी, ट्रस्ट को संभालने वाले आईएएस अफसर, नौकरशाह और सत्ता की मेहरबानियों से बने भक्त ट्रस्टी इतना भी नहीं कर सकते जो वे देशी गाय का घी पूरी कीमत दे कर खरीदें? जिस मंदिर पर आस्थावान सब कुछ लुटाने को तैयार हैं, उसके कथित हिंदू प्रबंधकों, ट्रस्टियों को क्यों यह सोचना चाहिए कि टेंडर से जो सस्ता घी देगा उसका घी खरीदेंगे। जबकि सर्वमान्य है कि 319 रुपए या 475 रुपए प्रति किलोग्राम की रेट से असली गाय की टनों घी की नियमित सप्लाई संभव नहीं है।

मोटा अनुमान है कि देशी गाय का शुद्ध एक किलो घी हजार, डेढ़ हजार रुपए तक की लागत लिए होता है। पर इस कीमत पर भी घी खरीद कर लड्डुओं के चढ़ावे से तिरुपति के भगवान वेंकटेश्वर जहां आनंदित होंगे वही भक्त भी शुद्धता की पवित्रता से उसे ऊंचे दामों पर खरीदने के हिचकेंगे नहीं (हालांकि प्रसाद बेचना नहीं चाहिए। वह फिर सौदा है। धर्म के साथ घात है)। कहते हैं तिरुपति में रोजाना कोई तीन लाख लड्डू बनते है और इसका राजस्व कोई पांच सौ करोड़ रुपए सालाना है। प्रतिदिन कोई दस हजार किलो घी की खपत है।

सोचें, यदि पिछले पांच सालों में ‘प्रसादम्’ के नाम पर चर्बीयुक्त लड्डू बिके हैं तो पांच वर्षों में देश-दुनिया के आस्थावान हिंदुओं ने कोई 5,475 लाख लड्डू पूरी आस्था से खरीद, उसे ग्रहण किया। पिछले दस वर्षों में मोदी और भाजपा ने चुनावी जीतों के बाद लड्डू मंगवा कर जीत का जश्न मनाने या अयोध्या के कार्यक्रम में उपयोग के अलग रिकॉर्ड बनाए हैं। और सबमें मिलावट इस हिसाब से तयशुदा थी क्योंकि सौ टका शुद्ध देशी घी की सप्लाई 319 रुपए प्रति किलो जैसी रेट पर होना नामुमकिन है।

एक जानकार के अनुसार आमतौर पर गाय के छह लाख लीटर दूध से 15 टन घी बनता है। पहली बात, इतनी सप्लाई के लिए किसी एक कंपनी के पास इतने बड़े पैमाने पर गाय का दूध इकट्ठा करने का सिस्टम नहीं है। बावजूद इसके कम रेट पर भी कंपनी और तिरुपति देवस्थान बिक्री खरीद के सौदे में शुद्ध घी का धोखा बनाए हुए है। इस तथ्य पर भी गौर करें कि कर्नाटक की एक सप्लायर नंदनी कंपनी (जिस के पास गायें है) वह 475 रुपए प्रति किलोग्राम की दर से सप्लाई कर रही है वही दूसरी कंपनी से देवस्थान 319 रुपए प्रति किलो घी खरीद रहा है। तो वह कैसे सस्ता बेच दे रहा?

दरअसल तिरुपति के लड्डुओं के लिए घी की जितनी सप्लाई चाहिए उसके लिए इलाके में इतनी गायें है ही नहीं। मगर मंदिर का प्रबंधन डिमांड, सप्लाई और कमाई के धंधे में डूबा हुआ है तो अंधाधुध खरीदो और बेचो। बीबीसी की रिपोर्ट के अनुसार, कर्नाटक को छोड़कर किसी भी राज्य के पास इतनी संख्या में गायें नहीं हैं। दूरी की वजह से पंजाब से घी मंगाना मुश्किल है। निजी कंपनियां विदेश से मंगाए गए बटर ऑयल की मिलावट करती हैं। असल में टीटीडी का टेंडर पाने के लिए ढाई लाख लीटर दूध को प्रोसेस करने की क्षमता होनी चाहिए। इसलिए दूध बनता है बटर ऑयल, पाम ऑयल की मिलावट से।

पर मुख्यमंत्री चंद्रबाबू नायडू ने सीधे ‘एनिमल फ़ैट’ (पशु चर्बी) के घी की बात कही है। तिरुमला तिरुपति देवस्थानम (टीटीडी) की कार्यकारी अधिकारी श्यामला राव (चंद्रबाबू द्वारा नियुक्त) ने इसकी पुष्टि की है। गुजरात की नेशनल डेयरी डेवलपमेंट बोर्ड (एनडीडीबी) की काफ़ लैब (सेंटर फॉर एनॉलिसिस एंड लर्निंग इन लाइवस्टॉक एंड फ़ूड) से सैंपल की जांच कराई गई। उसकी लैब रिपोर्ट में  ‘एस वैल्यू’ के आधार पर नमूने सभी पांच पैमाने पर असफल थे। इसलिए घी में वनस्पति तेल और जानवरों की चर्बी दोनों की मिलावट है।

एक और शर्मनाक बात। अरबों रुपए की संपन्नता वाले तिरुपति देवस्थान ने जरूरत नहीं समझी कि वह इतना घी खरीद रही है तो 75 लाख रुपए लागत से बनी एक लैब ही अपने यहा बना ले और नियमित जांच होती रहे। इससे भी क्या साबित होता है?

बीहड़ के हिंदुओं को कुछ भी बेचो, वे सिर झुका कर खा लेंगे। भले पशु चर्बी क्यों न हो? गौ चर्बी क्यों न हो? और बेचारे हिंदुओं कि सबसे बड़ी त्रासदी है कि पशुचर्बीयुक्त प्रसादम् उस मोदी राज के समय में, खुद उनके हाथों से है। एक तरफ गौवध के खिलाफ राजनीति है तो दूसरी और अब घर घर की यह ग्लानि है कि उन्होने पशु चर्बी प्रसादम् अपने भगवान को खिलाया और खुद खाया! यह कैसा घिनौना छल है हिंदू राजनीति की दुकानदारी की आड़ में!

सोचे, सनातन धर्म का कैसा कुंडा है “हिंदू” राजनीति के नाम पर। सब कुछ ठगी, व्यवसायी और खरीद-बिक्री के रूप में हो गया है। मंदिर व्यवसायी हो गए। दर्शन, प्रसाद बिकाऊ है। पूजापाठ बिकाऊ है। प्रवचन बिकाऊ है। और सिर्फ और सिर्फ दिखावा ही आस्था, धार्मिकता, आध्यात्मिकता। हां, आचरण अब पशुचर्बीमय प्रसादम् से अधिक घिन भरा है। सनातन धर्म के सभी विकल्पों में पहले आचार विचार, सत्य, सदाचार, सादगी, शांति, स्वच्छता, शुद्धता का जितना मान, पवित्रताएं थीं वे सब अब खत्म है। उसकी जगह वह ‘प्रसादम्’ है, जिस पर जितना लिखा जाए वह कम होगा।

‘प्रसादम्’ पर्याय है पिछले दस वर्षों के अमृत काल का! आखिर में हर पाठक को यह भी जान लेना चाहिए कि जिस मुख्यमंत्री जगन मोहन पर चंद्रबाबू नायडू ने प्रसादम् में मिलावट का ठीकरा फोडा है,  उसके भ्रष्टाचार को मोदी सरकार का संरक्षण था। जगन मोहन के खिलाफ डॉ. मनमोहन सरकार के समय भ्रष्टाचार के आरोप थे। ईडी, सीबीआई की जांच कार्रवाई थी, उन सब पर मोदी सरकार ने सत्ता में आते ही रोक लगाई। तभी चंद्रबाबू को हरा कर जगन मोहन की आंध्र प्रदेश में सरकार बनी तो वह भाजपा के साथ थी।

राज्यसभा में, संसद में वह मोदी सरकार की पैरोकार थी। इसलिए चंद्रबाबू ने अपनी खुन्नस में जगन मोहन रेड्डी सरकार को चर्बीयुक्त प्रसादम् का भ्रष्टाचारी करार दिया है तो यह उनका एक आपसी, पारिवारिक बदला भी है। यह भी सही है कि रेड्डी परिवार ईसाई है इसलिए चंद्रबाबू नायडू ने हिंदू कार्ड चला। मगर दोनों के मालिक तो एक अकेले नरेंद्र मोदी थे और हैं। आंध्र के नेता तो महज दिल्ली के पॉवर के सब कांट्रैक्टर हैं।

बहरहाल, हे मेरे प्रभु, भगवान वेंकटेश्वर (जिन्हें बचपन में मैंने बालाजी के रूप में धारा हुआ था) और प्रभु श्रीराम (जिनके काज को लेकर मैंने ‘जनसत्ता’ में बेखौफ कलम चलाई थी), मुझे क्षमा करें जो आपको मन में धारे हुए, आपको अर्पित मान, मैंने आपके नाम पर गौचर्बीयुक्त लड्डू खाया।

By हरिशंकर व्यास

मौलिक चिंतक-बेबाक लेखक और पत्रकार। नया इंडिया समाचारपत्र के संस्थापक-संपादक। सन् 1976 से लगातार सक्रिय और बहुप्रयोगी संपादक। ‘जनसत्ता’ में संपादन-लेखन के वक्त 1983 में शुरू किया राजनैतिक खुलासे का ‘गपशप’ कॉलम ‘जनसत्ता’, ‘पंजाब केसरी’, ‘द पॉयनियर’ आदि से ‘नया इंडिया’ तक का सफर करते हुए अब चालीस वर्षों से अधिक का है। नई सदी के पहले दशक में ईटीवी चैनल पर ‘सेंट्रल हॉल’ प्रोग्राम की प्रस्तुति। सप्ताह में पांच दिन नियमित प्रसारित। प्रोग्राम कोई नौ वर्ष चला! आजाद भारत के 14 में से 11 प्रधानमंत्रियों की सरकारों की बारीकी-बेबाकी से पडताल व विश्लेषण में वह सिद्धहस्तता जो देश की अन्य भाषाओं के पत्रकारों सुधी अंग्रेजीदा संपादकों-विचारकों में भी लोकप्रिय और पठनीय। जैसे कि लेखक-संपादक अरूण शौरी की अंग्रेजी में हरिशंकर व्यास के लेखन पर जाहिर यह भावाव्यक्ति -

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