अमित शाह की छाती छप्पन इंची हो गई होगी। आखिर उद्धव ठाकरे ने उन्हे अहमद शाह अब्दाली जो बताया। सोचे, फाफड़ा-ढोकला खाने वाले एक जैन गुजराती को उद्धव ने अहमद शाह अब्दाली जैसा बताया! अहमद शाह अब्दाली का मतलब है वह हमलावर लुटेरा जिसने जनवरी, 1757 की पानीपत की लडाई में न केवल मराठाओं को हराया था बल्कि दिल्ली पर कब्जा करके हिंदुओं को ऐसा लूटा जो पंजाबियों, अफगानों में यह कहावत बनी की ‘खादा पीत्ता लाहे दा, रहंदा अहमद शाहे दा’। मतलब जो खा लिया, पी लिया और तन को लग गया वो ही अपना है, बाकी तो अहमद शाह लूट कर ले जाएगा। तो क्या माना जाए कि उद्धव, शरद पवार की आर-पार की लड़ाई में आगे लूट का भी कोई भंड़ाफोड़ है? ध्यान रहे इन दिनों मुंबई में जानकारों के बीच अमित शाह और उनके बेटे जय शाह को लेकर अकल्पनीय चर्चाएं है!
इस सबके लिए स्वंय अमित शाह दोषी है। क्योंकि उन्होने ही पहले महाराष्ट्र जा कर कहा था कि उद्धव ठाकरे ‘ओरंगजेब फैन क्लब’ का प्रमुख है और शरद पवार देश का सबसे बड़ा नंबर एक करप्ट नेता। मराठा नेताओं को करंट लगना स्वभाविक था। बदले में जहा शरद पवार ने अमित शाह को तड़ी पार गृह मंत्री बताया वही उद्धव ठाकरे ने मराठाओं को आतातायी और लुटेरे अहमद शाह अब्दाली के इतिहास की याद कराई। यों भी प्रदेश में मराठी बनाम गुजराती का हल्ला पहले से बना हुआ है।
पूणे में शनिवार को उद्धव ने ‘‘या तो आप रहेंगे या मैं (राजनीति में) रहूंगा।’’ के अपने बयान का भी खुलासा किया। उद्धव ठाकरे ने कहा कि उन्होंने यह बात किसी व्यक्ति के संदर्भ में नहीं कही थी। हालांकि ‘‘कुछ लोगों को लगा कि मैंने किसी को चुनौती दी, लेकिन मैं खटमलों को चुनौती नहीं देता। यहां ‘मैं’ का मतलब मेरा सभ्य महाराष्ट्र है और ‘आप’ का मतलब महाराष्ट्र को लूटने वाली पार्टी है।’’ उन्होंने कहा कि खटमलों को चुनौती नहीं दी जानी चाहिए, बल्कि कुचल दिया जाना चाहिए।
सवाल है क्या मराठा उद्धव में ‘अब्दाली’ और उसकी सेना को कुचलने की ताकत है? जब उन्होने अमित शाह को ‘अहमद शाह अब्दाली’ का वंशज करार दिया है तो बेचारे हिंदू, मराठा कैसे दिल्ली की उस सत्ताशाही को हरा सकते है जिसकी छाती छप्पन इंची है? जिसका आधुनिक भारत में पठानी कद-काठी का दबंगी जैसा खौफ है। वैसे भी खैबर पार, कांधार के अफगानी पठानों को ले कर कलियुगी हिंदूओं में पुराना खौफ है। पठानी कद-काठी का आज भी क्रेज है। हाल में देखा नहीं कि शाहरूख खान की ‘पठान’ फिल्म कितनी सुपरहिट थी। इसलिए यदि अमित शाह को ले कर ‘अहमद शाह अब्दाली’ की पठानी ताकत, चुनावी क्रूरताओं का अनुमान लगाए तो महाराष्ट्र के महासमर में भला मराठा मानुष के क्या अवसर? अब्दाली की तरफ से उनके दरबारी एकनाथ शिंदे, अजित पवार ही ठाकरे को निपटा देंगे।
इसलिए चुनाव और राजनीति से ज्यादा अमित शाह पर विचार जरूरी है। अपना मानना है अमित शाह की छाती चौड़ी हुई होगी। मानों जन्म हुआ धन्य जो वे भारत के गृह मंत्री के रूप में अहमद शाह अब्दाली जैसा क्रूर और खौफ पैदा करने वाले इतिहासपुरूष करार दिए जा रहे है। सोचे, ऐसी उपमा क्या पहले कभी भारत के किसी गृह मंत्री को मिली?
अपने नजरिए से सोचे तो सवाल है अमित शाह के लिए यह गौरव की बात या कलंक की? मुझे पता नहीं इन दिनों अमित शाह सोचते है या नहीं! मैं पहले अमित शाह को जानता था। मेरा जानना सत्ता पूर्व के अमित शाह का था। मुझे तब अमित शाह लॉजिकल लगते थे। बुद्धी-दिमाग में विवेक था। सह्दयता-सहजता थी। लगता था दिमाग में कोई हिंदू दृष्टि है। गांधी की जगह यदि कमरे में सावरकर की तस्वीर लगाई है तो सावरकर के आधुनिक राष्ट्र-राज्य के विजन को ले कर संभवतया उन्होने पढ़ा और समझा हो। इस सच्चाई को बताने में भी मुझे हिचक नहीं है कि मैंने धारा-370 को हटाने की उनकी होशियारी, चतुराई तथा साहस की तारीफ की थी। हां, मेरे इस आंकलन को नोट रखें कि धारा-370 को हटाने का निर्णय, तैयारी अमित शाह का निज साहस, चतुराई व स्वंय के पुरषार्थ से था। नरेंद्र मोदी का रोल इतना ही था कि वे गृह मंत्री के प्रधानमंत्री थे।
सो 5 अगस्त 2019 के उस क्षण में मेरा अनुमान था कि अमित शाह अब नरेंद्र मोदी के साये, उनकी छाया से बाहर निकल अपना वेयक्तिक नायकत्व बनाएंगे। पर भला परछाई कभी मूल से अलग अस्तित्व पा सकती है? अमित शाह ने अपने राष्ट्रवाद को भी नरेंद्र मोदी के चरणों में रखा। और अपनी स्वतंत्र सियासी हैसियत बनाने के बजाय वे नरेंद्र मोदी के प्रमुख मेकेनिक, उनके सेवादार, उनके पुजारी की उन्ही भूमिकाओं में रमें रहे जो गुजरात में गृहराज्य मंत्री से ले कर, उनके अध्यक्ष, उनके चाणक्य और उनके व्यवस्थापक, कोतवाल आदि की भूमिकाओं में चली आ रही थी।
नरेंद्र मोदी और अमित शाह के रिश्तों को ले कर तमाम तरह के कयास लगते है लेकिन बेसिक सत्य इतना भर है कि दोनों एक-दूसरे के हमराज है। एक-दूसरे की मजबूरी है। मगर साथ में यह सच्चाई भी है कि अमित शाह का अस्तित्व मोदी के साये, उनकी छाया, उनकी परछाई का है। अमित शाह स्वंयभू नेता, स्वंय चंद्रगुप्त मोर्य, स्वंय में भगवान, फरिश्ता न थे, न है और न होंगे! अमित शाह की यह खामोख्याली है कि वे साहेब का काम करते- करते एक दिन स्वंय साहेब हो जाएगे। उनकी गद्दी वे पाएंगे। वे भी दिल्ली के राजाधिराज बनेंगे। दिल्ली सल्तनत के अहमद शाह अब्दाली, अहमद शाह रंगीला या औरगंजेब या लार्ड कर्जन या नरेंद्र मोदी बनेंगे।
जबकि अमित शाह के व्यक्तित्व, कृतित्व में अब ऐसा कुछ भी नहीं है जिससे उनका अपना स्वतंत्र अस्तित्व परिभाषित हो। मैं कई बार सचमुच सोचता हूं कि अमित शाह को भाग्य ने राजनैतिक पुण्यता के कितने अवसर दिए लेकिन उन्होने नरेंद्र मोदी की सत्ता के एक मेकेनिक के तौर पर सत्ताघर में अपने हाथ काले कर अपने को जाने-अनजाने खलनायक के अलावा बनाया क्या? उन्हें पता नहीं है कि देश में उनके कामों, उनके रोल और भूख को लेकर अब कैसी-कैसी चर्चाएं है। कभी उन्हे आरएसएस पसंद करता था। वे हिंदुवादियों में एक निष्ठावान हिंदू माने जाते थे। लेकिन दस साल के अनुभवों में आज का लबोलुआब क्या है? वे प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी से अधिक बदनाम है! कोई न माने इस बात को लेकिन यदि कोई गोपनीय जनमतसंग्रह हो तो मोदी के ही केबिनेट के मंत्री, आला अफसर, भाजपा पदाधिकारियों, आरएसएस और संघ परिवार के तमाम चेहरों में वे नंबर एक अंहकारी खलनायक करार दिए जाएगें। वही पूरा देश, देश की हर राजधानी का हर तरह का प्रभु वर्ग सर्वमान्यता से यह फैसला देता हुआ होगा कि इस हिंदूशाही को बरबाद करने में नंबर एक जिम्मेवार खलनायक यदि कोई है तो वह अमित शाह है!
मगर अमित शाह को अहसास नहीं है कि वे भाजपा संसदीय दल से लेकर नागपुर में भागवत एंड पार्टी से लेकर योगी आदित्यनाथ या मोदी द्वारा बनाए गए मुख्यमंत्रियों, पदाधिकारियों में अलोकप्रिय और नापसंद है। दिल्ली, मुंबई और कोलकत्ता वे महानगर है जहां तमाम जानकार सारा ठिकरा अमित शाह पर फोड़ते है। दरअसल नरेंद्र मोदी ने बहुत होशियारी से अमित शाह का उपयोग किया है। उन्हे सत्ता की काली कोठरी के वे तमाम काम दिए जिनसे उनके हाथ न रंगे जाएं और अमित शाह पर सब रंगता जाए। चंदा इकठ्ठा करने का ठिकरा फूटे। ईडी-सीबीआई के छापों, नेताओं की गिरफ्तारियों के काम उनके जिम्मे तो आरएसएस और भाजपा के पदाधिकारियों व कार्यकर्ताओं को भी अमित शाह की भाव-भंगिमा से औकात मालूम होती हुई हो। अमित शाह उनके लिए बफर और बाकि के लिए एक अंहकारी बाधा।
ऐसा होना दिल्ली की सत्ता प्रकृति की वजह से है। दिल्ली का हर बादशाह, हर प्रधानमंत्री अपने कोतवाल से राज करता आया है। हम कलियुगी हिंदुओं की नियति है जो उन्हे हर काल में (पृथ्वीराज चौहान से लेकर अकबर, औरंगजेब, नादिरशाह, अब्दाली, अंग्रेज, नेहरू से मोदी सभी के शासन में) बादशाह और कोतवाल, प्रधानमंत्री और सीबीआई-ईडी तथा कारिंदों की दबंगी में जनता को सांस लेनी ही है। इसलिए 2014 में नरेंद्र मोदी की हिंदूशाही जब बनी और उनका हिंदू प्रजा का भगवान, जादूगर, फरिश्ते होने का प्रोपेगेंडा शुरू हुआ तो स्वभाविक था जो उन्होने अमित शाह को अपना प्रमुख पुजारी बनाया। वे सारे गंदे काम अमित शाह से करवाएं जो भारत की सत्ता की प्रकृति में है। दिल्ली में और दिल्ली से देश में अमित शाह का पॉवर केंद्र, आंतक व खौफ का पर्याय बना। वे अपने साहेब के प्रमुखतम मेकेनिक, कोतवाल, चाणक्य, हनुमान आदि सब कहलाएं। और जितने गंदे, हिंसा, प्रतिहिंसा वाले काम होने थे वे सब उनके जरिए होते गए। येनकेन प्रकारेण चुनाव जीतने के बंदोबस्तों से लेकर, विरोधियों को डराने, पार्टियों को तोड़ने, दलबदल, ईडी-सीबीआई की छापेमारी, नेताओं को जेल में डालने, कारिंदों की नियुक्तियों से लेकर मीडिया, उद्योंगपतियों सबको लाईन हाजिर करने के मोदी राज के सभी बुरे काम अमित शाह के जरिए थे और है।
यह दिल्ली की सत्ता के चरित्र और हिंदुओं के दुर्भाग्य की नियति है जो राजा कोई बने वह अपने साथ आंतक और लूट का कोतवाल जरूर लिए होगा। मुगल और खैबर पार के आक्रामक तलवार लिए होते थे लेकिन वे भी चाँदनी चौक की कोतवाल व्यवस्था के कायल थे। अंग्रेजों ने दिमाग और चतुराई से शासन बनाया और लूटा मगर कोतवाल और डराने की व्यवस्था को बढ़ाया। नेहरू-गांधी परिवार ने स्वतंत्रता आंदोलन की पुण्यता तथा वैचारिक विकल्पहीनता में ठसके से राज किया पर कोतवाल व्यवस्था की निरंतरता के साथ। लोगों को याद नहीं होगा लेकिन सत्य है कि इंदिरा गांधी के साथ एक मंत्री ओम मेहता होते थे जिन्होने डंडे के बल पर आपातकाल का देश में आंतक बनवाया था। हम लोग इतिहास याद नहीं रखते है लेकिन सच्चाई है कि दिल्ली के हर बादशाह, कथित फरिश्ते ने एक चीफ मेकेनिक और कोतवाल से हमेशा गंदे और आंतक के काम करवाएं।
इसलिए 2014 में काग्रेस और सेकुलर आईडिया ऑफ इंडिया के बाद नरेंद्र मोदी की कमान में हिंदू ऑईडिया ऑफ इंडिया की हिंदूशाही बनी तो मेकेनिक की भूमिका में अमित शाह का अभ्युदय होना ही था। मुझे याद है चाणक्य की कथित पहली भूमिका में नरेंद्र मोदी की अध्यक्षता की एक बैठक में उन्होने मंत्रियों को यह ज्ञान दिया था कि विपक्ष और कांग्रेस खत्म नहीं हुए तो हमारा राज लंबा नहीं चलेगा। इसलिए विपक्ष को मारों, उसकी कमर तोड़ो, उसे पप्पू करार दो और हमेशा के लिए खत्म करों।
नतीजा सामने है। पूरा देश अब इस प्रतिक्रिया को लगातार सुनता हुआ है कि भारत का गृह मंत्री कभी तड़ी पार था। मुझे समझ नहीं आया कि जो नरेंद्र मोदी के बाद प्रधानमंत्री बनने की दौड में है वे अमित शाह इस तरह की गंदगी, ऐसी जुबानी हिंसा क्यों कर रहे है कि शरद पवार देश का भ्रष्टतम नेता और उद्धव ठाकरे ‘औरगंजेब फैन क्लब’ का प्रमुख। या योगी आदित्यनाथ को हटाने की ठानना। जबकि नरेंद्र मोदी मौन और पीछे है। तब अमित शाह आगे हो कर तलवारबाजी क्यों कर रहे है? क्या उन्हे कोई फीडबैक है कि ऐसा करने से उनका ग्राफ बढ़ेगा? या वे मोदी की चिंताओं में उन्हे भरोसा दिलाते हुए, अपने को झौक कर उनसे उनका उत्तराधिकार पाएंगे? या इससे भक्त हिंदुओं में उन्हे अपनी भक्ति की आस है? मैं अमित शाह का मनोविज्ञान नहीं समझ पा रहा हूं। इतना भर दिख रहा है कि अमित शाह अपनी ख्याति जहां नंबर एक खलनायक की बना बैठे है! वही नरेंद्र मोदी के साथ जितने जुमले जुड़े है उससे अधिक उनके साये में अमित शाह के कृतित्व में बदनामी के जुमले नत्थी होते हुए है। क्या नहीं?