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हरापन समेटे श्रावण की हरियाली अमावस्या

कृषि प्रधान भारत देश में हरियाली अमावस्या का त्यौहार सावन में प्रकृति पर आई बहार की खुशी में मनाया जाता है। इस दिन पीपल के वृक्ष की पूजा एवं परिक्रमा किये जाने तथा मालपूए का भोग बनाकर चढाये जाने की परम्परा है। हरियाली अमावस्या पर वृक्षारोपण का अत्यधिक महत्व माना गया है। पौराणिक मान्यताओं के अनुसार एक पेड़ दस पुत्रों के समान होता है। वृक्ष सदा उपकारी हैं। वृक्षरोपण वसुधैव कुटुम्बकम की भावना पर आधारित होने के कारण सुखदायी और पुण्यदायी माना जाता है।

17 जुलाई -हरियाली अमावस्या

शिवमास श्रावण के महीने में भारत के प्रत्येक राज्य में चतुर्दिक हरियाली ही हरियाली दिखाई पड़ती है, जैसे परमात्मा ने प्रकृति को अपनी हरी चादर से ढक दी हो। सावन महीने की चतुर्दिक हरा ही हरा दिखाई देने की इस हरापन लिए विशेषता के कारण ही सम्पूर्ण भारत में प्राचीन काल से ही एक कहावत प्रचलित हो गई है – सावन में हुए अंधे को सदैव हरा ही हरा दिखाई देता है। भारतीय परम्परा में प्रत्येक वार, सप्ताह, पक्ष, अमावस्या व पूर्णिमा और महीने की अपनी महता है, और इनसे सम्बन्धित पर्व- त्योहारों की भी अपनी पृथक विशेषता है। भारत में पेड़, पौधों, जीव, जन्तुओं सहित सम्पूर्ण मानवता को संरक्षण देने हेतु उन्हें आदर- सम्मान करते हुए धार्मिक भावना से जोड़कर उनका संरक्षण करने की प्रवृति आदिकाल से ही प्रचलित है। वृक्षों में नीम, पीपल, बरगद, आम, महुआ, आंवला आदि फल- फूल व कई तरह की महत्त्वपूर्ण औषधियां प्रदान करते हैं। ये वृक्ष अपने रोगनाशक गुणों के कारण जगविख्यात हैं। मानव जीवन का आधार तथा प्राण शक्ति श्वांस को शुद्ध कर जीवन का संरक्षण करने वाले वृक्ष को संरक्षित करने तथा धरती माता के प्रांगन में हरियाली बिखेरने के प्रति सम्मान प्रदर्शित व कृतज्ञता ज्ञापन हेतु प्रतिवर्ष हरियाली से गहन अंधकार से ढकी, रंगी सावन की अमावस्या को हरियाली अमावस्या के रूप में मनाये जाने की परम्परा है।

सावन की रिमझिम वर्षा के कारण चारों तरफ कीट- पंतगों की संख्या में अत्यधिक वृद्धि होने  से बीमारियों की आशंका बढ़ जाती है। मान्यता है कि नीम जैसे  गुणकारी वृक्ष केवल कीट -पतंगो से ही नहीं बल्कि बुरी आत्माओं से भी रक्षा करते हैं। ऐसे समय में नीम आदि वृक्षों के औषधीय गुणों के कारण हरियाली अमावस्या के दिन उनकी डाल को घरों में रखा जाता है। इस परम्परा में श्रावण मास की प्राकृतिक संवृद्धि को समर्पित पर्वों की श्रृंखला में श्रावण अमावस्या की तिथि को मनाई जाने वाली हरियाली अमावस्या नामक पर्व अत्यंत महत्वपूर्ण मानी जाती है। है। पुराणों में हरियाली अमावस्या को श्रावणी अमावस्या अथवा श्रावण अमावस्या, हराई अमावस आदि कई अन्य नामों से भी संज्ञायित किया है। हरियाली अर्थात हरा -भरा वातावरण और अमावस्या अर्थात जिस दिन चाँद नहीं निकलता है। उत्तरी भारत के राजस्थान, उत्तर प्रदेश, दिल्ली और हिमाचल प्रदेश आदि राज्यों में हरियाली अमावस्या बहुत प्रसिद्ध है।

महाराष्ट्र में इसे गतारी अमावस्या, आंध्र प्रदेश में चुक्कल अमावस्या, तमिलनाडु में आदि अमावसई और उड़ीसा में इसे चीतालागि अमावस्या के रूप में जाना जाता है। देश के कई भागों में इसे एक धार्मिक पर्व के साथ ही पर्यावरण संरक्षण के रूप में मनाया जाता है। श्रावण मास में महादेव शिव के पूजन का विशेष महत्व होने के कारण हरियाली अमावस्या पर भगवान शिव का पूजन-अर्चन किया जाता है। यह अमावस्या पर्यावरण के संरक्षण के महत्व व आवश्यकता को प्रदर्शित करती है। कृषि समृद्धि के रूप में भी हरियाली अमावस्या का विशेष महत्व है। इस दिन बृज क्षेत्र में मीठे एवं नमकीन पुए, मीठी पूड़ी से कृषक अपने-अपने कृषि के उपकरण की पूजा करते हैं तथा कृषि के प्रति अपना आभार व्यक्त करते हैं। इसके बाद इन मिष्टानों को गौ एवं परिवार में वितरित करते हैं।

कृषि प्रधान भारत देश में हरियाली अमावस्या का त्यौहार सावन में प्रकृति पर आई बहार की खुशी में मनाया जाता है। इस दिन पीपल के वृक्ष की पूजा एवं परिक्रमा किये जाने तथा मालपूए का भोग बनाकर चढाये जाने की परम्परा है। हरियाली अमावस्या पर वृक्षारोपण का अत्यधिक महत्व माना गया है। पौराणिक मान्यताओं के अनुसार एक पेड़ दस पुत्रों के समान होता है। वृक्ष सदा उपकारी हैं। वृक्षरोपण वसुधैव कुटुम्बकम की भावना पर आधारित होने के कारण सुखदायी और पुण्यदायी माना जाता है। पे़ड-पौधों का सानिध्य तनाव को तथा दैनिक उलझनों को कम करता है। इसलिए मनुष्यों को वृक्षों के प्रति कृतज्ञ होना चाहिए। देश के अनेक भागों में वृक्षों के प्रति कृतज्ञता प्रकट करने हेतु परिवार के प्रति व्यक्ति को हरियाली अमावस्या पर एक-एक पौधा रोपण करने की परिपाटी प्रचलित है। पौराणिक ग्रन्थों में वृक्षों में देवताओं का वास बताया गया है। पीपल के वृक्ष में त्रिदेव अर्थात ब्रह्मा, विष्णु और शिव का वास होता है। आंवले के पे़ड में लक्ष्मी नारायण के विराजमान होने की परिकल्पना की गई है। वृक्षों में इस देवत्व भाव के पीछे वृक्षों को संरक्षित रखने की भावना निहित है। पर्यावरण को शुद्ध बनाए रखने के लिए ही हरियाली अमावस्या के दिन वृक्षारोपण करने की प्रथा चल पड़ी।

इस दिन कई स्थलों पर मेलोत्सव के रूप में मनाते हुए गुड़ व गेहूं की धानि का प्रसाद वितरित की जाती है। स्त्री व पुरूष इस दिन गेहूं, ज्वार, चना व मक्का की सांकेतिक बुआई करते हैं, जिससे कृषि उत्पादन की स्थिति अनुमान लगाया जाता है। मध्यप्रदेश में मालवा व निम़ाड, राजस्थान के दक्षिण पश्चिम, गुजरात के पूर्वोत्तर क्षेत्रों, उत्तर प्रदेश के दक्षिण पश्चिमी इलाकों के साथ ही हरियाणा व पंजाब में हरियाली अमावस्या धूमधाम से मनाया जाता है। मान्यतानुसार हरियाली अमावस्या के दिन पौधा लगाकर उसकी रखवाली करने, जल-खाद आदि देने से पुण्य की प्राप्ति होती है। मनुष्य के द्वारा अपने जीवन काल में अर्थात जन्म से लेकर मृत्युपर्यंत उपयोग किये जाने वाले शुद्ध वायु अर्थात ऑक्सीजन में पौधों की अत्यंत महत्वपूर्ण भूमिका होती है। इसलिए प्रत्येक व्यक्ति को हरियाली अमावस्या के दिन पौधा लगाना चाहिए। आरोग्य प्राप्ति के लिए नीम का, संतान के लिए केले का, सुख के लिए तुलसी का, लक्ष्मी के लिए आंवले का पौधा लगाना फलित ज्योतिष शास्त्र में उत्तम माना गया है।

भारतीय धर्म- संस्कृति में वृक्षों को देवता स्वरूप माना गया है। मनुस्मृति में वृक्ष योनि पूर्व जन्मों के कमों के फलस्वरूप मानी गयी है। परमात्मा द्वारा वृक्षों का सर्जन परोपकार एवं जनकल्याण के लिए किया गया है। पीपल के वृक्ष में अनेकों देवताओं का वास होने के कारण पीपल के वृक्ष को बहुत ही महत्वपूर्ण माना गया है। पीपल के मूल भाग में जल, दूध चढाने से पितृ तृप्त होते है। हरियाली अमावस्या के दिन पीपल पूजन का विधान है। शनि शान्ति के लिए शाम के समय सरसों के तेल का दीपक जलाने का विधान है। मान्यतानुसार विष्णु पूजन के लिए केले को उत्तम माना गया है। गुरूवार को बृहस्पति पूजन में केला का पूजन अनिवार्य है। हल्दी अथवा पीला चन्दन, चने की दाल, गुड़ से पूजा करने पर विद्यार्थियों को विद्या तथा कुँवारी कन्याओं को उत्तम वर की प्राप्ति होती है।

इसलिए हरियाली अमावस्या के दिन केले का पौधा लगाने की परम्परा है। सावित्री के द्वारा वट वृक्ष की पूजा कर यमराज से अपने मृत पति के जीवित होने का वरदान मांगे जाने की अत्यंत प्रसिद्ध पौराणिक मान्यता के कारण वट वृक्ष की पूजा सौभाग्य प्राप्ति हेतु की जाती है। सौभाग्यवती स्त्रियां अपने पति की लम्बी उम्र की कामना हेतु वट सावित्री व्रत करके वट वृक्ष की पूजा एवं सेवा करती है। स्कन्दपुराण एवं पद्मपुराण के उत्तर खण्ड के अनुसार समस्त वनस्पतियों में सर्वाधिक धार्मिक, अत्यंत उपयोगी, आरोग्य दायिनी एवं शोभायुक्त तुलसी भगवान नारायण को अतिप्रिय है। जिस घर में तुलसी होती है, वह घर तीर्थ के समान होता है।

भारतीय परम्परा में अत्यधिक महत्वपूर्ण स्थान रखने वाले अमावस्या के दिन अपने पितरों को याद करने और श्रद्धा भाव से उनका श्राद्ध करने, पितरों की शांति के लिए हवन कराने, ब्राह्मण  भोजन कराने और दान-दक्षिणा देने आदि की परिपाटी है। पौराणिक ग्रन्थों के अनुसार इस तिथि के स्वामी पितृदेव हैं। पितरों की तृप्ति के लिए इस तिथि का अत्यधिक महत्व है।

हरियाली अमास्या श्रावण शिवरात्रि के एक दिन बाद तथा शुक्ल पक्ष में आने वाली हरियाली तीज से तीन दिन पहिले मनाई जाती है। परन्तु इस वर्ष 2023 में श्रावण के महीने में अधिकमास पड़ने के कारण दो मास के बराबर 59 दिनों का सावन होने के परिणामस्वरूप 17 जुलाई 2023 दिन सोमवार को सावन अमावस्या को हरियाली अमावस्या मनाई जाएगी। उसके बाद 18 जुलाई को श्रावण अधिकमास प्रारम्भ हो जाएगी। इसलिए हरियाली तीज अधिकाम्स के बाद आने वाली सावन शुक्ल तृतीया तदनुसार 19 अगस्त को मनाई जाएगी।

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By अशोक 'प्रवृद्ध'

सनातन धर्मं और वैद-पुराण ग्रंथों के गंभीर अध्ययनकर्ता और लेखक। धर्मं-कर्म, तीज-त्यौहार, लोकपरंपराओं पर लिखने की धुन में नया इंडिया में लगातार बहुत लेखन।

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