भोपाल। विश्व में हमारा भारत चाहे “प्रजातंत्र” का सिरमौर माना जाता रहा हो किंतु इस “सिरमौर” का रहस्य सिर्फ भारतवासी ही जान सकते हैं, कोई सात समंदर पार बैठा विदेशी नहीं…, क्योंकि बेस्वादी वास्तविकता यह है कि आजादी के 75 वर्षों बाद भी यहां के न तो राजनेता आजादी का अर्थ अब तक सही अर्थों में जान पाए और न ही देश की जनता को इन्होंने ऐसा कोई मौका दिया, यहां तो आजादी का अर्थ सिर्फ और सिर्फ हर तरह की “स्वेच्छाचारिता” समझा गया और देश गिनती के राजनेताओं द्वारा इसी लिक पर देश को चलाया जा रहा है, आजाद देश के नागरिकों ने “मतदान दिवस” को सार्वजनिक अवकाश दिवस मानकर उस दिन आजादी पर आत्मचिंतन के स्थान पर मौज मस्ती की और मुट्ठी भर राजनेता पूरे देश के मतदाताओं के कभी ना पूरे होने वाले वादों पर सत्ता हथिया कर अपना स्वार्थ सिद्ध करते रहे और आज भी यही सिलसिला जारी है। अब भारतीय राजनीति का चरित्र ही यही हो गया है- “रेवड़ियां बांटो और राज करो…”, और रेवड़ियां भी ऐसी जो जनता को कभी नहीं मिल पाती…, चुनाव के बाद 4 साल नेता मौज मस्ती और जनता फाका मस्ती करते रहते हैं और पांचवें साल फिर नई रेवड़ियां आ जाती है और नेतागण उसे बैठ कर अपना “उल्लू सीधा” करने में व्यस्त हो जाते हैं।
…पर यहां सबसे बड़ी खेद भरे आश्चर्य की बात यह है कि आजादी के बाद लगभग 15 आम चुनाव निपट जाने और हर बार आम वोटर को उल्लू बनाने के बाद भी देश की आम जनता देश की राजनीति और उसको चलाने वाले नेताओं की नीति और नियत को समझ नहीं पाई और आज भी वही सिलसिला जारी है, अगले 100 दिन बाद 3 राज्यों की विधानसभाओं और 200 दिन बाद होने वाले लोकसभा चुनावों के लिए राजनेताओं ने रेवडियां तैयार करना शुरू कर दिया है और उन्होंने देश की जनता को उनकी व्यक्तिगत व पारिवारिक समस्याओं में इतना उलझा रखा है कि उन्हें देश व उसकी राजनीति के बारे में फुर्सत नही बच पाई, पिछले 75 सालों में देश इसी लीग पर चलाया जा रहा है और विश्व के देश हमारे देश की इस वास्तविकता से अनभिज्ञ रहकर हमारी स्वतंत्रता का गुणगान करते रहते हैं। मतलब यह कि हमारे देश के कर्णधार नेताओं ने देश के आम वोटर को गुमराह कर सत्ता प्राप्त करने और स्वार्थ सिद्ध के गुर सीख लिए हैं और हमारा बेचारा आम वोटर 5 साल में एक बार झुन्झुने कि ऑस कर टकटकी लगाए इनके मुंह को ताकता रहता है। मतलब यह कि पिछले 75 सालों में हमारे राजनेताओं ने अपने स्वार्थ सिद्ध करना अच्छी तरह सीख लिया, किंतु हमारे देश की जनता उसके अधिकार व कर्तव्य नहीं सीख पाई, पता नहीं यह सिलसिला और कब तक आगे चलता रहेगा?
आज की सबसे बड़ी और अहम जरूरत हमारे देश को हर तरीके से दीक्षित करने की है, आम वोटर को उनके अधिकारों व कर्तव्यों की पूरी जानकारी दी जानी चाहिए और स्वयं तथा देश के हित में उनके उपयोग का तरीका सिखाया जाना चाहिए, जब तक जनता अपने अधिकार व कर्तव्य का सही परिपालन करना नहीं सीखेगी तब तक यह स्वार्थी और मतलबी राजनेता अपना खेल खेलते रहेंगे और जनता को हर दृष्टि से ठगते रहेंगे।
मेरी तो इस संबंध में यह भी गुजारिश है कि यदि इस अहम राष्ट्रहित का दायित्व देश की सामाजिक संस्थाएं जो आम जनता के ज्यादा निकट होती है वे वहन कर लें तो वह सबसे बड़ी और अहम “राष्ट्रभक्ति” होगी, अतः इन संस्थानों को अपने लक्ष्यों में इस दायित्व को भी शामिल कर लेना चाहिए यही मेरा सपना है।