पिछले एक महीने से भाजपा के अंदर जो बैठकों का दौर चल रहा है उसे ले कर आम चर्चा है कि इसमें एजेडा विधानसभा चुनावों से जुड़ा है। और इन बैठकों का जो विश्लेषण है उस अनुसार भाजपा के संगठन में बदलाव होना है। केंद्र की नरेंद्र मोदी सरकार में फेरबदल होनी है। ये तीनों बातें सही हैं। लेकिन इनके साथ भाजपा की बैठकें लोकसभा चुनाव की तैयारियों के लिए भी हैं। जाहिर है कि जब पार्टी के बड़े नेताओं की बैठक होगी और बैठक चार घंटे या छह घंटे चलेगी तो उसमें कई चीजों पर चर्चा होगी। सो, निश्चित रूप से विधानसभा चुनावों की चर्चा हो रही है। पार्टी के राष्ट्रीय अध्यक्ष जेपी नड्डा का कार्यकाल समाप्त होने के बाद उनको विस्तार दिया गया लेकिन बाकी संगठन में बदलाव नहीं हुआ। इसलिए केंद्रीय संगठन से लेकर प्रदेश अध्यक्ष और प्रदेश संगठनों के बारे में भी विचार है।
इसी तरह केंद्र में दूसरी बार सरकार बनाने के बाद प्रधानमंत्री मोदी ने सिर्फ एक बार फेरबदल की है। जुलाई 2021 में उन्होंने बड़ी फेरबदल की थी और भाजपा में खूब चर्चित रहे कुछ नेताओं को सरकार से हटा दिया था। उसके बाद एक मामूली बदलाव यह हुआ कि कानून मंत्री कीरेन रिजीजू और कानून राज्यमंत्री एसपी सिंह बघेल को मंत्रालय बदला गया। रिजीजू की जगह अर्जुन राम मेघवाल कानून मंत्री बन गए। रिजीजू को अर्थ साइंस मंत्रालय में और बघेल को स्वास्थ्य मंत्रालय में भेजा गया। चूंकि अब तक एक बार ही केंद्र सरकार में बदलाव हुआ है इसलिए वहां भी फेरबदल की चर्चा है।
जून के पहले हफ्ते में केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह, पार्टी अध्यक्ष जेपी नड्डा और संगठन महासचिव बीएल संतोष की लगातार दो दिन लंबी बैठक हुई। पार्टी मुख्यालय में बने आवासीय परिसर में कुल 10 घंटे की बैठक हुई। कहा गया कि संगठन में बदलाव को लेकर चर्चा हुई है। लेकिन दिलचस्प बात है कि एक महीने बाद तक संगठन को लेकर कोई छोटा सा फैसला भी नहीं हुआ। राष्ट्रीय स्वंयसेवक संघ के अरुण कुमार के साथ भी भाजपा के नेताओं की बैठक हुई और उसके बाद 28 जून को देर रात तक प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के साथ शाह, नड्डा और संतोष की बैठक हुई। इसके बाद फिर चर्चा है संगठन में बदलाव होने जा रहा है, सरकार में फेरबदल होगी और राज्यों में नए अध्यक्ष नियुक्त होंगे। हो सकता है कि ये सब कुछ हो लेकिन जो भी होगा वह लोकसभा चुनाव के नजरिए से होगा।
इस बात को आगे होने वाली बैठकों से भी समझा जा सकता है। भाजपा जोन वाइज बैठक करने जा रही है। पूर्वी और पूर्वोत्तर के राज्यों की बैठक छह जून को गुवाहाटी में होगी। उत्तर, मध्य और पश्चिमी राज्यों की बैठक सात जून को दिल्ली में होगी। इसके बाद दक्षिण के राज्यों की बैठक आठ जून को हैदराबाद में होगी। इस तरह भाजपा पूरे देश की बैठक कर रही है। हर राज्य की बैठक कर रही है। ऐसा नहीं है कि चुनावी राज्यों- राजस्थान, मध्य प्रदेश, छत्तीसगढ़, तेलंगाना या मिजोरम की बैठक हो रही है। यहां तक कि हैदराबाद को छोड़ दें तो जोनल बैठक भी चुनावी राज्यों में नहीं हो रही है। इससे भी जाहिर होता है कि भाजपा का फोकस लोकसभा चुनाव पर है।
राज्यों के विधानसभा चुनाव पर ज्यादा ध्यान नहीं देने के कई कारण हैं। पहला कारण तो इन चुनावों का इतिहास है। पिछली बार भाजपा इन पांचों राज्यों में हारी थी। तीन राज्यों- राजस्थान, मध्य प्रदेश और छत्तीसगढ़ में उसने सत्ता गंवाई थी। मध्य प्रदेश और छत्तीसगढ़ में भाजपा लगातार 15 साल राज करने के बाद हारी थी। तेलंगाना में भाजपा को 117 में से सिर्फ तीन विधानसभा सीटें मिली थीं। मिजोरम की 40 विधानसभा सीटों में वह सिर्फ एक सीट जीत पाई थी। 2018 में इन पांच राज्यों से ठीक पहले कर्नाटक का चुनाव हुआ था, जहां अच्छा प्रदर्शन करने के बावजूद भाजपा सरकार नहीं बना पाई थी और कांग्रेस व जेडीएस ने चुनाव के बाद गठबंधन करके सरकार बना ली थी। लेकिन उसके बाद 2019 के लोकसभा चुनाव में क्या हुआ? भाजपा कर्नाटक की 28 में से 25 सीटें जीत गई। राजस्थान की 25 में से 24, मध्य प्रदेश की 29 में से 28 और छत्तीसगढ़ की 11 में नौ सीटें जीत गई। तेलंगाना में भी उसे 17 में से चार सीटें मिल गईं। सोचें, जिस राज्य में उसने तीन विधानसभा सीट जीती थी वहां चार लोकसभा सीट जीत गई!
भाजपा लोकसभा का चुनाव जीती उसके बाद क्या हुआ वह भी इतिहास है। 2019 में भारी बहुमत से केंद्र में सरकार बनाने के तीन महीने के भीतर भाजपा ने कर्नाटक में कांग्रेस व जेडीएस सरकार गिरा कर अपनी सरकार बना ली। अगले साल यानी 2020 में कोरोना शुरू होने के साथ ही मध्य प्रदेश में कांग्रेस सरकार गिरा कर भाजपा ने अपनी सरकार बनाई। राजस्थान में भी ऑपरेशन लोटस होते होते रह गया। इसके दो साल बाद 2022 में भाजपा ने महाराष्ट्र की महाविकास अघाड़ी सरकार गिरा कर अपनी सरकार बना ली। इस इतिहास को देखते हुए सोचें कि भाजपा के लिए क्या जरूरी है? लोकसभा चुनाव या राज्यों का विधानसभा चुनाव? अगर वह राज्यों में चुनाव हार भी जाती है तो क्या हो जाएगा, लोकसभा जीत जाएगी तो वह राज्यों में फिर अपनी सरकार बना ही लेगी! इसलिए भी भाजपा का फोकस विधानसभा चुनाव पर नहीं, बल्कि लोकसभा चुनाव पर है। वह किसी हाल में लोकसभा का चुनाव जीतना चाहेगी। इसके लिए देश भर में संगठन को मजबूत किया जा रहा है और ऐसा समीकरण बनाया जा रहा है, जिससे भाजपा पिछले लोकसभा चुनाव में जीती अपनी सीटें बचा ले। राज्यों को लेकर इस रणनीति पर विचार है कि अगर कहीं कुछ सीटों का नुकसान होता है तो उनकी भरपाई किस नए राज्य से हो सकती है या किस नए गठबंधन सहयोगी से हो सकती है।