एक तरफ भाजपा राज्यों के चुनाव के साथ साथ लोकसभा चुनाव की तैयारी में जुट गई है तो कांग्रेस के लिए लोकसभा से पहले राज्यों का चुनाव अस्तित्व की लड़ाई की तरह है। कांग्रेस को कर्नाटक में मिली जीत से जो मोमेंटम मिला है उसे वह बनाए रखना चाहती है। वह उसे गंवाना नहीं चाहती। उसको पता है कि अगर भाजपा इन राज्यों में नहीं जीतेगी तब भी उसकी लोकसभा तैयारियों पर कोई खास फर्क नहीं पड़ेगा लेकिन अगर कांग्रेस नहीं जीतती है तो उसे लेकर बन रहे माहौल की हवा बिगड़ जाएगी। उसे इससे कई नुकसान होंगे। पहला नुकसान तो यह होगा कि पार्टी मोमेंटम गंवा देगी। उसके कार्यकर्ताओं का जो मनोबल बढ़ा है वह गिर जाएगा। दूसरा नुकसान यह होगा कि भाजपा के साथ साथ आम आदमी पार्टी इस इंतजार में बैठी है कि कांग्रेस राज्यों में हारे, उसे नुकसान हो तो उसके नेताओं को तोड़ा जाए, उसे और कमजोर किया जाए।
अगर कांग्रेस हारी तो आम आदमी पार्टी ज्यादा आक्रामक राजनीति करेगी, जिससे लोकसभा में कांग्रेस को और नुकसान होगा। तीसरा नुकसान यह है कि लोकसभा चुनाव के लिए बन रहे विपक्षी गठबंधन में कांग्रेस की पूछ कम हो जाएगी। अभी उसको बहुत भाव मिल रहा है। पटना में हुई पहली बैठक की अध्यक्षता कर रहे नीतीश कुमार सिर्फ कांग्रेस नेताओं को ही रिसीव करने हवाईअड्डे पर गए थे। उन्होंने राहुल गांधी और मल्लिकार्जुन खड़गे को हवाईअड्डे पर रिसीव किया और बैठक के दौरान ये दोनों नीतीश के साथ बैठे। यहां तक कि विपक्ष की सारी पार्टियों ने अरविंद केजरीवाल की अनदेखी की और उनके उठाए अध्यादेश वाले मुद्दे पर कांग्रेस का साथ दिया।
तभी कांग्रेस विपक्षी पार्टियों के साथ लोकसभा चुनाव तैयारियों पर चर्चा तो कर रही है लेकिन उसका समूचा ध्यान विधानसभा चुनावों पर लगा है। राहुल गांधी और मल्लिकार्जुन खड़गे ने पिछले हफ्ते तेलंगाना के नेताओं के साथ बैठक की। राज्य में पार्टी के अंदर चल रहे खींचतान को खत्म करने और सबको साथ लेकर चलने के लिए प्रदेश अध्यक्ष रेवंत रेड्डी को बहुत साफ संदेश दिया। पार्टी विधायक दल के नेता ने 11 सौ किलोमीटर की पदयात्रा की है, जिसके समापन में राहुल गांधी जाएंगे। पिछले 10 दिन में एक पूर्व सांसद और राज्य सरकार के एक पूर्व मंत्री सहित तेलंगाना की सत्तारूढ़ पार्टी भारत राष्ट्र समिति के करीब डेढ़ दर्जन नेता कांग्रेस के साथ जुड़े हैं। तेलंगाना में राहुल गांधी की मौजूदगी में दिग्गज नेता श्रीनिवास रेड्डी कांग्रेस में शामिल होंगे। इतना ही नहीं कांग्रेस पार्टी चुनाव से पहले वाईएसआर तेलंगाना पार्टी के साथ तालमेल करने की तैयारी में भी है। यह पार्टी आंध्र प्रदेश के मुख्यमंत्री जगन मोहन रेड्डी की बहन वाईएस शर्मिला की है।
इसी तरह छत्तीसगढ़ में कांग्रेस ने कई बरस मुख्यमंत्री भूपेश बघेल और सरकार के नंबर दो मंत्री टीएस सिंहदेव के बीच चल रहा विवाद निपटाया है। कांग्रेस ने सिंहदेव को राज्य का उप मुख्यमंत्री बनाया है। इसके बाद उन्होंने अपनी नाराजगी खत्म करने का संकेत दिया और कहा कि भूपेश बघेल के नेतृत्व में पार्टी अगला चुनाव लड़ेगी। छत्तीसगढ़ का झगड़ा सुलझाने के बाद अब कांग्रेस पार्टी राजस्थान में मुख्यमंत्री अशोक गहलोत और पूर्व प्रदेश अध्यक्ष सचिन पायलट का विवाद सुलझाने के प्रयास कर रही है। कई तरह के फॉर्मूलों की चर्चा हो रही है। जो हो कांग्रेस वहां भी एकजुट होकर चुनाव में जाना चाहती है। मध्य प्रदेश में पार्टी ने पहले से एकजुटता बनवाई हुई है। कमलनाथ और दिग्विजय सिंह साथ मिल कर चुनाव प्रचार कर रहे हैं। कांग्रेस नेता उम्मीद कर रहे हैं कि राहुल गांधी की मणिपुर यात्रा कांग्रेस को मिजोरम में भी फायदा दिलाएगी।
बहरहाल, भाजपा से उलट कांग्रेस की तैयारियों से लग रहा है कि उसकी प्राथमिकता अभी लोकसभा चुनाव नहीं है। तभी महाराष्ट्र में जब दोनों सहयोगियों एनसीपी और शिव सेना के उद्धव ठाकरे गुट ने लोकसभा सीटों के बंटवारे की बात कही तो कांग्रेस ने दो टूक इनकार कर दिया। उसने कहा कि इस बारे में अभी बात नहीं होगी। वह दूसरे राज्यों में तालमेल की बात तो कर रही है कि लेकिन सीटों के बंटवारे में नहीं जाना चाहती है। अगर राज्यों में कांग्रेस अच्छा प्रदर्शन करती है तो उसकी मोलभाव करने की ताकत बढ़ जाएगी। इसके अलावा कांग्रेस नेता यह भी जानते हैं कि अगर तमाम गठबंधन के बावजूद विपक्ष लोकसभा का चुनाव नहीं जीत पाता है तो प्रादेशिक पार्टियों से ज्यादा कांग्रेस के सामने अस्तित्व का संकट होगा। ऐसी स्थिति में राज्यों की सरकारों के सहारे ही सरवाइवल संभव हो पाएगा। इसलिए उसका पूरा ध्यान अभी राज्यों के चुनाव पर है।