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विपक्ष की स्क्रिप्ट में थीम का टोटा

विपक्ष की स्क्रिप्ट में थीम का टोटा

नीतीश कुमार हों या मल्लिकार्जुन खड़गे या शरद पवार, ममता बनर्जी, अखिलेश, केजरीवाल, उद्धव ठाकरे सब मोदी से लड़ने, उन्हें चुनाव में हराने का इरादा लिए हुए हैं लेकिन इसके लिए चुनाव किस थीम पर लड़ें, क्या कहानी, क्या डायलॉग और कैसे एक्शन हो इसका दिमागी खाका नहीं बना है। समझ ही नहीं आ रहा। सभी नेता अपने-अपने दायरे में ख्याली पुलाव पका रहे हैं। प्रदेश और विधानसभा चुनाव का माइंडसेट है। मैंने दो सप्ताह पहले लिखा था कि विपक्ष मानो पाषाण युग में। दरअसल कांग्रेस और विपक्षी एकता के जितने सलाहकार, बौद्धिक प्रमुख याकि कन्हैया से लेकर योगेंद्र यादव, जयराम रमेश आदि सभी यह नहीं मानते हैं कि लोकसभा की रणभूमि हिंदीभाषी उत्तर भारत है। वह उत्तर भारत, जिसका कम से कम 38-40 प्रतिशत वोट रामजी, भोले बाबा, विन्ध्यवासिनी मां और विश्व गुरू होने के ख्यालों में डूबा हुआ है।

सचमुच कोई पूछे नीतीश कुमार या अखिलेश या राहुल गांधी, कमलनाथ व अशोक गहलोत से कि भाजपा के कोर वोट तथा 2014 व 2019 के मोदी के फ्लोटिंग-मध्यवर्गी-नौजवान लोगों में से पांच प्रतिशत वोटों को भी पटाने के लिए इनकी क्या थीम व क्या भाषण है? नीतीश कुमार पूछते हैं मोदी ने नौ साल में कुछ नहीं किया! कई नेता अमीर-गरीब की खाई, आर्थिक बदहाली का रोना रोते हैं। तीसरी थीम हिंदू बनाम मुस्लिम की सांप्रदायिकता का है। एक थीम विपक्ष अपनी वैकल्पिक दृष्टि, ऑल्टरनेटिव मॉडल पेश करे। साझा सहमतियों का वह घोषणापत्र बने, जिसमें रेवड़ियों का जवाब सुपर रेवड़ियों से हो। नीतीश-अखिलेश आदि का एक फॉर्मूला जातियों की गणित, सामाजिक न्याय, पिछड़े-दलितों-आदिवासियों में चेतना बनवाने का है।

सभी बातें मोदी की अकस्मात उठने वाली आंधी के आगे फिजूल होंगी। कैसे? पहली बात, विपक्ष के पास अपनी बात, अपना एजेंडा, अपनी वैकल्पिक दृष्टि-ऑल्टरनेटिव मॉडल पहुंचाने का मीडिया कहां है? विपक्षी नेता पाषाण युग में इसलिए भी हैं क्योंकि ये उस इकोसिस्टम का पार्ट हैं, जो जन्मजात मोदी विरोधियों का है। कांग्रेस, केजरीवाल और विपक्ष की सरकारों से यह बात बहुत साफ जाहिर होती है। सभी का सरकारी प्रचार या तो परंपरागत विरोधी वेबसाइटों में जाता है या मोदी नियंत्रित मीडिया में है। भारत की राजनीति का, भारत के सार्वजनिक विमर्श का नंबर एक संकट यह है कि मध्य-निष्पक्ष-तर्कसंगत मीडिया स्पेस देश में बचा ही नहीं है, जिससे सनातनी-सर्वधर्म समभावी तथा ज्ञानवादी-मध्यवर्गी हिंदुओं को वह जानकारी मिले कि मोदी सरकार से देश की, हिंदुओं की दीर्घकालीन नींव खुद रही है।

विषयातंर हो रहा है। बहरहाल, नीतीश कुमार कितना ही बोलें कि मोदी ने नौ साल में क्या किया है? इसे न कोई पब्लिक को बताने वाला है और न यह बात लोगों के दिल-दिमाग को झिंझोड़ेगी? ऐसे ही सांप्रदायिकता-हिंदू बनाम मुस्लिम से मोदी-शाह के खिलाफ कुर्मी-यादव या जाट वोट (लोकसभा चुनाव के संदर्भ में) माहौल बनाने के लिए सड़कों पर नहीं उतरने वाले हैं। ऐसे ही गरीबी, असमानता, बेरोजगारी, महंगाई का वोट दिलाऊ हल्ला बनना है। इसलिए कि सोशल मीडिया के परंपरागत, चिन्हित मोदी विरोधियों के वीडियो, बहस की जनता में गूंज नहीं बन सकती। गूगल और अगले दस महीनों में कृत्रिम बुद्धि याकि एआई मशीन से विपक्ष-विरोध की आवाज को उन्हीं लोगों के बीच पहुंचने देगा, जिनका रिकॉर्ड 2014 व 2019 में विपक्ष को वोट देने का था। जिनका मोदी विरोधी रूझान पहले से ही सोशल मीडिया के डेटा सर्वरों को मालूम है।

पूछ सकते हैं कर्नाटक में तब भाजपा कैसे हारी? इसलिए हारी क्योंकि चुनाव के भी पहले के महीनों से घर-घर यह बात पहुंची थी कि भाजपा सरकार भ्रष्ट है। कमीशनखोर है। मेरा मानना था, है और रहेगा कि लोकसभा चुनाव में मध्यवर्गीय और फ्लोटिंग वोटों का पाला बदलना तभी होता है जब भ्रष्टाचार की बात घर-घर पहुंची हुई हो। इस सत्य से ही 2014 में नरेंद्र मोदी, भाजपा तथा अरविंद केजरीवाल और उनकी आम आदमी पार्टी सुपर हिट हुए थे। इस बात को मोदी और केजरीवाल ने समझते हुए अभी तक पकड़ा हुआ है। केजरीवाल अपनी पंजाब सरकार का विज्ञापन भ्रष्टाचार मिटाने की थीम पर चलाते हुए हैं तो वजह उन्हें मालूम होना है कि इसी से प्रदेश में साख बनी रहेगी। हालांकि मेरा मानना है कि लोकसभा चुनाव से ऐन पहले भगवंत मान सरकार का भ्रष्टाचार में ही मोदी सरकार ऐसे टेंटुआ दबाएगी की लोकसभा चुनाव में आप का सारा खेल बिगड़ेगा। इधर केजरीवाल जेल में तो उधर भगवंत मान। नोट रखें पंजाब-दिल्ली की लोकसभा सीटें भाजपा कतई आम आदमी पार्टी के खाते में नहीं जाने देगी।

सो, मोदी-शाह ने 2014 तक विरोधियों द्वारा 20 लाख करोड़ रुपए के घोटाले का जो नया जुमला गढ़ा है तो वह इसलिए है ताकि मध्यवर्गीय-फ्लोटिंग मतदाता परिवारवाद-भ्रष्टाचार की इमेज में नीतीश-राहुल-लालू-पवार-केजरीवाल-केसीआर-स्टालिन सबसे बिदके। कर्नाटक के चुनाव से पहले अडानी-हिंडनबर्ग, क्रोनी पूंजीवाद, राफेल आदि के हवाले राहुल गांधी का जो ब्रह्मास्त्र था, वह आगे बढ़े नहीं इसी की रणनीति में भाजपा ने 20 लाख करोड़ रुपए के घोटाले का नया जुमला बोलना शुरू किया है। कर्नाटक में लोकल भ्रष्टाचार और राष्ट्रीय भ्रष्टाचार की किस्सागोई ने भाजपा के वोट खिसकाए थे। हवा बनी और उससे अपने आप दलित और जातियों के वोटों में भी पाला बदली हुई। भ्रष्टाचार की एक धुरी ने एंटी इस्टैब्लिशमेंट, महंगाई, रेवड़ी आदि सबका वह बवंडर बनाया जो एकतरफा मीडिया के बावजूद घर-घर जा पहुंचा। लोगों ने रिकॉर्ड तोड़ मतदान किया।

जाहिर है कर्नाटक के सबक को मोदी-शाह ने पकड़ा है। विपक्ष को भ्रष्टाचारी घोषित कर वे रक्षात्मक बनाएंगे ताकि राहुल गांधी और विरोधी क्रोनी पूंजीवाद, अडानी व भ्रष्टाचार पर बोलने से रूके रहें। और सामाजिक न्याय, सांप्रदायिकता, वैकल्पिक दृष्टि, मॉडल, विकल्प, साझा प्रोग्राम की फालतू बातों में उलझें।

उस नाते लोकसभा तैयारी में विपक्ष जुटा है बावजूद इसके उसकी कहानी, स्क्रिप्ट में वह रसायन बनता हुआ फिलहाल नहीं है, जिससे एक और एक और एक ग्यारह हो तथा बात अपने आप घर-घर पहुंचने लगे।

Published by हरिशंकर व्यास

मौलिक चिंतक-बेबाक लेखक और पत्रकार। नया इंडिया समाचारपत्र के संस्थापक-संपादक। सन् 1976 से लगातार सक्रिय और बहुप्रयोगी संपादक। ‘जनसत्ता’ में संपादन-लेखन के वक्त 1983 में शुरू किया राजनैतिक खुलासे का ‘गपशप’ कॉलम ‘जनसत्ता’, ‘पंजाब केसरी’, ‘द पॉयनियर’ आदि से ‘नया इंडिया’ तक का सफर करते हुए अब चालीस वर्षों से अधिक का है। नई सदी के पहले दशक में ईटीवी चैनल पर ‘सेंट्रल हॉल’ प्रोग्राम की प्रस्तुति। सप्ताह में पांच दिन नियमित प्रसारित। प्रोग्राम कोई नौ वर्ष चला! आजाद भारत के 14 में से 11 प्रधानमंत्रियों की सरकारों की बारीकी-बेबाकी से पडताल व विश्लेषण में वह सिद्धहस्तता जो देश की अन्य भाषाओं के पत्रकारों सुधी अंग्रेजीदा संपादकों-विचारकों में भी लोकप्रिय और पठनीय। जैसे कि लेखक-संपादक अरूण शौरी की अंग्रेजी में हरिशंकर व्यास के लेखन पर जाहिर यह भावाव्यक्ति -

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