भोपाल। असंतुष्ठों को मनाने के लिए पार्टी ने विधायकों और सांसदों से कहा था कि अपने निर्वाचन क्षेत्र में पार्टी के असंतुष्ट नेताओं कार्यकर्ताओं के साथ टिफिन बैठक कर लें, संबंध सभी से सुधार लें, लेकिन अभी भी कई क्षेत्र ऐसे हैं जहां असंतुष्टों से जनप्रतिनिधि वार्तालाप भी नहीं कर पा रहे हैं। अब एक बार फिर पार्टी ने सभी जनप्रतिनिधियों से कहा है कि वह 18 जुलाई के पहले टिफिन बैठक कर लें।
दरअसल, विधानसभा चुनाव 2018 से सबक लेकर पार्टी 2023 के लिए किसी भी प्रकार की गलती नहीं करना चाहती इसलिए चौतरफा प्रयास कर रही है। इन प्रयासों की कड़ी में एक यह भी प्रयास था कि जो भी पार्टी के विधायक और सांसद हैं वे अपने-अपने क्षेत्र में पार्टी के असंतुष्ट कार्यकर्ताओं और नेताओं के साथ बैठक करके उनकी नाराजगी दूर करें। इसके लिए एक कार्यक्रम ऐसा बनाया गया कि एक स्थान तय करने जहां सभी कार्यकर्ताओं नेता अपने-अपने घरों से टिफिन लेकर आए और सब मिल बैठकर खाएं लेकिन अभी भी अधिकांश जनप्रतिनिधियों ने अपने अपने निर्वाचन क्षेत्र में इस तरह की टिफ़िन पार्टी नहीं की है जिसके चलते पार्टी नेतृत्व ने एक और समय 18 जुलाई तक का दे दिया है और यदि इस समय में भी जनप्रतिनिधि टिफ़िन पार्टी नहीं कर पाएंगे तो हो सकता है उनके टिकट पर भी संकट आ जाए। विधायकों से खासतौर से कहा गया है कि वे इस हफ्ते ही बैठकें कर ले क्योंकि 10 जुलाई से विधानसभा का अंतिम सत्र शुरू होने जा रहा है जिसमें उन्हें राजधानी भोपाल में रहना पड़ेगा।
10 जुलाई को विधायक दल की बैठक भी आयोजित की गई है। मंगलवार को विधायक और सांसदों के साथ वर्चुअल बैठक में पार्टी के राष्ट्रीय सह संगठन महामंत्री शिवप्रकाश, प्रदेश प्रभारी मुरलीधर राव प्रदेश अध्यक्ष विष्णु दत्त शर्मा, प्रदेश संगठन महामंत्री हितानंद शर्मा ने सभी विधायक और सांसदों से कहा कि 18 जुलाई की डेड लाइन पर की गई है। स्थिति तक सभी रिपोर्ट संगठन को दे दे। पार्टी अपने स्तर पर पता करेगी कि टिफिन बैठक के क्या नतीजा रहे। पार्टी के रणनीति कारों का मानना है यदि एक-दो बार साथ में बैठकर भोजन किया जाए और सौहार्दपूर्ण वातावरण में चर्चा की जाए तो काफी हद तक शिकवे दूर हो जाते हैं लेकिन कुछ जगह जन प्रतिनिधियों के अहम आड़े आ रहे हैं। जहां वे टिफिन पार्टी करना तो दूर फोन पर बात भी नहीं कर पा रहे हैं और इस कारण असंतोष बढ़ता जा रहा है जो चुनाव में घातक हो सकता है। 2018 के विधानसभा चुनाव में 5000 वोटो से या इससे कम वोटों से इतने विधायक हारे थे यदि वे जीत जाते तो भाजपा पूर्ण बहुमत की सरकार बना लेती और हार के कारणों में पार्टी के असंतुष्ट कार्यकर्ता और नेता का घर बैठ जाना सामने आया था। ऐसे लोग चुनाव में नहीं निकले जो पिछले चुनाव में दिन-रात मेहनत करते थे जिन्हें चुनावी तासीर का अंदाजा था कि किस मोड़ पर क्या करना है क्योंकि जो चुनाव लड़ता है वह तो इतना व्यस्त रहता है कि वह सोच ही नहीं पता कि क्षेत्र में क्या चल रहा है कहां, कौन क्या कर रहा है और कैसे ठीक होगा लेकिन यदि सभी लोग साथ में हैं तो फिर कोई ना कोई ध्यान आकर्षित करके गलती सुधरवा देता है।
कुल मिलाकर तमाम योग्यताओं के बावजूद यदि विधायक और सांसद ने अपने – ssअपने निर्वाचन क्षेत्र में टिफ़िन पार्टी नहीं की असंतुष्ट को नहीं मनाया तो फिर कोई आश्चर्य नहीं कि ऐसे जनप्रतिनिधियों का टिकट भी कर सकता है क्योंकि इस बार पार्टी टिकट उसी को देगी जिसका कोई विरोध ना हो और इसके जितने की पूरी गारंटी हो।