भोपाल। मध्य प्रदेश में भारतीय जनता पार्टी पिछले साढे सोलह सालों से राज कर रही है, 19 नवंबर 2005 से शिवराज सिंह चौहान प्रदेश के मुख्यमंत्री हैं, अपवाद स्वरूप सिर्फ 15 महीने के लिए कमलनाथ जी को मुख्यमंत्री बनने का सौभाग्य प्राप्त हुआ था और पिछले विधानसभा चुनाव (2018) में कांग्रेस को बहुमत मिला था और कमलनाथ जी मुख्यमंत्री बने थे, किंतु कांग्रेस की अंतर्कलह ने भाजपा को फिर सत्तारूढ़ कर दिया और ज्योतिरादित्य सिंधिया ने कांग्रेस के सपने चकनाचूर कर दिए, इस प्रकार पिछले विधानसभा चुनाव के बाद की 15 माह की अवधि छोड़कर 2005 से अब तक यहां शिवराज जी की ही सरकार तैनात है, किंतु अब साढ़े 16 सालों के राज के बाद भाजपा को मध्य प्रदेश की चिंता सताने लगी है और वह अगले विधानसभा चुनाव में 108 दिन पहले ही सचेत हो गई है, कभी वह यहां नेतृत्व बदलने पर विचार करती है, तो कभी अपने विश्वस्त सिपहसालारों को यहां भेजकर या उन्हें प्रदेश की जिम्मेदारी सौंपकर प्रदेश पर तीखी नजर रख रही है। पिछले दिनों भाजपा के प्रमुख रणनीतिकार और केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह का ताबड़तोड़ दौरा और मोदी जी व शाह के विश्वस्त निकटस्त भाजपा नेता भूपेंद्र यादव को प्रदेश की चुनावी कमान सौंपना इसी रणनीतिक आशंका के अंश माने जा रहे हैं।
वैसे अगले तीन माह बाद अकेले मध्यप्रदेश विधानसभा के नहीं बल्कि छत्तीसगढ़ और राजस्थान के भी चुनाव होना है, मध्यप्रदेश में तो वैसे भी भाजपा की ही सरकार है, जबकि छत्तीसगढ़ और राजस्थान में कांग्रेस की सरकारें हैं, इसके बावजूद भाजपा मध्यप्रदेश के ही राजनीतिक भविष्य को लेकर अधिक चिंतित है और भाजपा के शीर्ष नेता भी अपना पूरा ध्यान मध्यप्रदेश पर ही केंद्रित किए हुए हैं। इसका कारण कहीं मौजूदा प्रादेशिक सत्ता संगठन नेतृत्व को लेकर कोई आशंका तो नहीं है? अब इसका कारण जो भी हो किंतु यही यथार्थ है कि भाजपा शीर्ष नेतृत्व का पूरा ध्यान मध्यप्रदेश पर है और इसीलिए चुनाव के 100 दिन पहले प्रधानमंत्री जी द्वारा यहां आकर चुनाव प्रचार का शुभारंभ करना है और बार-बार यहां की सत्ता व संगठन के नेतृत्व में परिवर्तन की चर्चाएं चलाना भी है, भाजपा के केंद्रीय नेतृत्व ने पिछले दिनों विभिन्न संगठनों व एजेंसियों के माध्यम से यहां का चुनावी सर्वेक्षण भी कराया, जिसमें शायद भाजपा के केंद्रीय नेतृत्व को उनकी उम्मीदों के अनुरूप परिणाम हासिल नहीं हुए हो, सकता है मध्य प्रदेश को लेकर केंद्रीय नेतृत्व की चिंता का एक यह भी प्रमुख कारण हो? लेकिन कारण जो भी रहे हो प्रदेश ही नहीं बल्कि राष्ट्रीय स्तर पर भी मध्य प्रदेश के राजनीतिक भविष्य को लेकर चिंताओं का दौर अवश्य चल रहा है और भाजपा में व्याप्त इस माहौल में ही कांग्रेस सपना उज्जवल भविष्य देख रही है, यद्यपि यदि प्रदेश की राजनीति के बारे में पूरी ईमानदारी से कहा जाए तो कांग्रेस की यहां भी स्थिति पूरे देश जैसी ही है, जिसे अपना भविष्य खुद नजर नहीं आ रहा है।
इसी यथार्थ को लेकर भाजपा अपने भविष्य को लेकर चिंतित है। अब यदि भाजपा को अपना भविष्य उज्जवल ही रखना है तो भाजपा की मौजूदा धीमी रणनीति से वह उज्जवल नहीं रह पाएगी, इसके लिए भाजपा को सक्रिय होकर और अधिक प्रयास करने होंगे और यहां के मतदाताओं में अधिक दिनों से अंगारों पर रखी सत्ता की रोटी के जल जाने की आशंका को बखूबी दूर करना होगा, तभी भाजपा मौजूदा स्थिति का राजनीतिक लाभ उठा सकती है?