हम अभी तक नहीं समझ पाए कि देश के प्रधानमंत्री देश के ही एक हिस्से में दो महीने से ज्यादा समय से चल रही भयानक हिंसा के बाद भी अभी तक उस पर क्यों नहीं बोले? क्या यह आजादी के बाद का सबसे बड़ा और दुखद आश्चर्य नहीं है? प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी, भाजपा और गोदी मीडिया रोज पूछते हैं कि सत्तर साल में क्या हुआ? सत्तर साल में कम से कम यह तो नहीं हुआ कि देश का एक राज्य इतने लंबे समय तक हिंसा की आग में जलता रहे और प्रधानमंत्री उस राज्य का पहला अक्षर म भी नहीं बोल पाएं।
क्या कारण है? कोई बता सकता है? क्या मणिपुर में गुजरात पार्ट- 2 किया जा रहा है? नरसंहार तो उसी तरह हो रहा है। फर्क बस इतना है कि उस समय तत्कालीन प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी ने गुजरात जाकर उस समय के मुख्यमंत्री से कहा था कि राजधर्म निभाओ! यह अलग बात है कि उसके बाद भी राजधर्म नहीं निभाया गया। और हिंसा चलती रही। मगर यहां मणिपुर में तो कहा तक नहीं गया।
गुजरात आज भी मोदी जी का पीछा कर रहा है। वे विदेश में जहां भी जाते हैं गुजरात पर बनी बीबीसी की फिल्म वहीं दिखाई जाती है। अमेरिका में दिखाई गई और आस्ट्रेलिया की संसद में दिखाई गई। भारत में मोदी सरकार ने उसे बेन कर दिया। बीबीसी के दफ्तर पर छापे मारे। मगर उससे फिल्म रुकी नहीं बल्कि और ज्यादा देखी और दिखाई जाने लगी।
क्या मणिपुर में फिल्म नहीं बनेगी? और उसमें यह सवाल नहीं उठेगा कि भारत के प्रधानमंत्री आखिर मणिपुर पर क्यों नहीं बोले? भाजपा के नेताओं और गोदी मीडिया ने तो दावा किया था कि मोदी ने रूस युक्रेन युद्ध रुकवा दिया था। तो अगर दो देशों के बीच युद्ध रुकवा सकते हैं तो मणिपुर में दो समुदायों के बीच हिंसा क्यों नहीं रुकवा रहे? वहां के बारे में तो जितना लिखा जाए कम है! सेना के हाथों से भीड़ आरोपियों को छुड़ा कर ले जा रही है। थानों से हथियार लूटे जा रहे हैं। सुरक्षा बलों पर हमले हो रहे उन्हें मारा जा रहा है। पूरा राज्य दो समुदायों में विभाजित हो गया है।
अफसर, पुलिस वाले, नेता कोई अगर सुरक्षित है तो केवल अपने समुदाय के बीच। उसके बाहर निकले तो खतरा है। पूरा गृह युद्ध हो रहा है।
अमेरिका तक को कहना पड़ा कि क्या हम मदद करें? इससे ज्यादा शर्मनाक और क्या होगा। 1971 में भी अमेरिका ने कहा था। जब भारत के किसी राज्य का मामला नहीं था भारत में आ रहे पूर्वी पाकिस्तान के शरणार्थियों की समस्या थी। मगर इन्दिरा गांधी ने क्या जवाब दिया था?
उन्होंने अमेरिका के किसी भारत स्थित राजदूत को नहीं सीधे अमेरिका के राष्ट्रपति निक्सन से कहा था कि भारत से कुछ कहने की जरूरत नहीं। कहना है तो सीधे पाकिस्तान से कहिए कि वे पूर्वी बंगाल में अत्याचार बंद करे। ताकि वहां से शरणार्थी भारत न आएं। और अगर उनसे नहीं कह सकते हैं तो हम कार्रवाई करेंगे और शरणार्थियों को वापस भेजने की व्यवस्था करेंगे। और वही इन्दिरा गांधी ने किया। बांग्ला देश को आजाद करवाया और शरणार्थियों को वापस भेजा। उस समय लाखों शरणार्थी भारत आ गया था और देश के लिए एक बड़ी समस्या बन गई थी।
फिलहाल तो मणिपुरी अपने देश में शरणार्थी हुए हैं मगर फिर भी अमेरिका के भारत स्थित राजदूत एरिक गार्सेटी ने टिप्पणी कर दी। कांग्रेस ने कहा कि सत्तर साल में यह कभी नहीं हुआ। किसी विदेशी राजदूत की हिम्मत भारत के आन्तरिक मामले में दखल देने की नहीं हुई।
आज हमें शौक तो यह है कि दुनिया हमें विश्व गुरु कहें। मगर अपने ही देश में हम जिस तरह हिंसा, नफरत, विभाजन, असहिष्णुता बढ़ा रहे है उसके बाद क्या हम दुनिया से कुछ कहने लायक बचते हैं? अमेरिका के राजदूत ने यहां दिल्ली में कहा। वहां अमेरिका में पूर्व राष्ट्रपति बराक ओबामा ने जिनसे मोदी जी बराक बराक कहकर बात करते हुए बहुत दोस्ती का दावा करते थे उन्होंने भारत के अल्पसंख्यकों की सुरक्षा के बारे में चिंता व्यक्त की।
हम अपनी पीठ खुद ठोकते हुए कहते हैं कि देश में 2014 से पहले पैदा होना शर्म की बात हुआ करती थी। तब यह कोई देश था! अब 2014 के बाद भारतीय होना गर्व की बात है। कहने को तो हम कुछ भी कह सकते हैं। उर्जा की जरुरत नाले से गैस निकलाकर पूरी कर सकते हैं। मगर सच यह है कि जिस चीन ने गलवान में हमारे बीस जवानों को मारा जमीन पर कब्जा कर लिया उसकी मुद्रा युआन को हम तेल के बदले रूस को देकर उसे अन्तराष्ट्रीय मान्यता दिला रहे हैं।
अपनी मुद्रा रुपए की अब कोई चिन्ता नहीं है। 2014 से पहले कहते थे कि रुपए का अवमूल्यन भारत के प्रधानमंत्री का अवमूल्यन है। मगर अब तीसरे देश की मुद्रा में भुगतान करके देश की मुद्रा रुपए की कीमत और गिरा रहे हैं। इससे पहले विदेश व्यापार में यह होता था कि या तो अपनी मुद्रा दी जाती थी या उस देश की मुद्रा। तीसरे देश और वह भी जो पिछले पांच सालों से लगातार घुसपैठ कर रहा हो धमकियां दे रहा हो उसकी मुद्रा की अन्तरराष्ट्रीय कीमत बढ़वाने का क्या मतलब है?
जैसे मणिपुर पर मौन है ठीक वैसा ही चीन पर। अंदर आया, हमारे जवान मारे, घुस कर बैठ गया। पुल, बंकर, पक्की सड़कें बनाईं। मगर हमारे प्रधानमंत्री ने कहा कि न कोई आया है और न कोई है। इसका कारण भी आज तक किसी की समझ में नहीं आया है कि चीन हमारे जवान मार रहा है। अरुणाचल के बार्डर पर गांव बसा रहा है। जहां घुसपैठ कर ली है वहां से हिलता नहीं है और हम उसे अपने हर निर्माण कार्य के ठेके देने, लगातार आयात बढ़ाते जाने के बाद अब अन्तरराष्ट्रीय स्तर पर उसकी मुद्रा युआन को भी मजबूत कर रहे हैं।
प्रधानमंत्री मोदी चाहे चीन पर न बोलें, मणिपुर पर न बोलें मगर राहुल गांधी न केवल बोल रहे हैं बल्कि मणिपुर होकर भी आ गए। मणिपुर के पीड़ितों को एक ढाढस मिला, हिम्मत मिली कि देश में कोई है जिसे उनकी फिक्र है। प्रधानमंत्री तो देश का नेता कहलता है। मगर मोदी के पास चुनावों में प्रचार करने और वहां विपक्ष पर आरोप लगाने का समय तो है। देश को सौ साल का लक्ष्य भी बता रहे हैं। कह रहे हैं कि हम कर्तव्यों को पहली प्राथमिकता देते हैं। अब प्रेस कान्फ्रेंस तो करते नहीं कि कोई पूछे कि क्या मणिपुर कर्तव्य की श्रेणी में नहीं आता है?
क्या बेरोजगार युवा की बात करना, महंगाई की बात करना, किसान की, मजदूर की, गरीब, मध्यम वर्ग की आवाज उठाना केवल राहुल का कर्तव्य है? मणिपुर भी उनकी जिम्मेदारी है? कैसे? केवल इसी वजह से कि उनके पर दादा नेहरू ने मणिपुर का विलय भारत में करवाया था? 1947 में मणिपुर भारत का हिस्सा नहीं बना था। 1949 में नेहरू ने मणिपुर का भारत में विलय करवाया था। तो क्या वह अब प्रधानमंत्री मोदी की जिम्मेदारी नहीं है?
कुछ कुछ समझ में आ रहा है। 1947 में देश कांग्रेस के नेतृत्व में हुए स्वतंत्रता संग्राम के बाद आजाद हुआ था। तो क्या इसलिए कहा जाता है कि उसके बाद भारत में पैदा होना शर्म की बात थी! क्या इसलिए कहा गया कि देश 1947 में नहीं 2014 में आजाद हुआ! जो भी हो। उनकी माया वो ही जानें! फिलहाल तो यह है कि कहा गया कि हम अब कर्तव्यकाल में है। तो कर्तव्य केवल जनता के। और सरकार के केवल अधिकार। जाएं न जाएं मणिपुर हमारा अधिकार, हमारी मर्जी!
यह भी पढ़ें: