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स्वीडन की सदस्यता और तुर्की का मोलभाव!

स्वीडन की सदस्यता और तुर्की का मोलभाव!

नाटो शिखर सम्मेलन की शुरुआत खुशनुमा माहौल में हुई। चेहरे खिले हुए थे और गर्मजोशी से हाथ मिलाए जा रहे थे। ‘आल इज वेल’ और ‘हम सब एक हैं’ के संदेश देने का भरपूर प्रयास हो रहा था।

अपने नजरिए में नाटकीय बदलाव लाते हुए तुर्की ने स्वीडन के नाटो में शामिल होने पर अपना वीटो वापस ले लिया। इससे यह उम्मीद बंधी है कि एक साल से अधिक समय से खिंच रहा यह मसला अब खत्म हो जाएगा। मतलब यह कि तुर्की की जिद के कारण एक साल से देहरी पर खड़ा स्वीडन नाटो का 32वां सदस्य बनने जा रहा है। इससे बाल्टिक सागर, नाटो देशों से घिरी एक झील बन जाएगा।

नाटो के महासचिव जेन्स स्टोल्टेनबर्ग, तुर्की के राष्ट्रपति रेचेप तय्यब अर्दोआन और स्वीडन के प्रधानमंत्री उल्फ क्रिसटेरसन की मुलाकात के बाद यह खबर आई। यह बैठक तीनों पक्षों के बीच कई हफ्तों तक चली कूटनीतिक चर्चाओं के बाद हुई थी।

इसमें संदेह नहीं कि यह खबर अचंभित करने वाली थी। रविवार को ही तय्यब अर्दोआन और जो बाइडेन की बातचीत हुई थी और बाइडेन, अर्दोआन को स्वीडन की सदस्यता का विरोध न करने के लिए राजी करने में सफल हुए। अर्दोआन जम कर सौदेबाजी करने के लिए जाने जाते हैं और वे कब क्या कर दें इसका कोई भरोसा नहीं रहता। तो फिर तुर्की ने अपनी जिद क्यों छोड़ी?

पहला कारण: नाटो के 10 जुलाई को प्रकाशित वक्तव्य से लगता है कि स्वीडन ने उन कुर्द आंदोलनकारियों के खिलाफ कदम उठाने का वादा किया है, जिन्हें तुर्की आतंकवादी मानता है और नाटो तुर्की की चिंताओं के मद्देनजर ‘‘आतंकवाद निरोधक विशेष समन्वयक” नाम से एक नया पद बनाने के लिए तैयार हो गया है। समाचार एजेंसी ‘ब्लूमबर्ग’ ने खबर दी है कि यूरोपीय यूनियन, वीजा मुक्त यात्रा और खुले बाजार के मामलों में भी तुर्की को छूट देने के लिए राजी हो गया है।

दूसरा कारण: यह माना जा रहा है- हालांकि यह स्पष्ट नहीं है– कि जो बाइडेन ने तुर्की को वह देने की पेशकश की है जो अर्दोआन चाहते थे। अर्दोआन अमरीका से एफ-16 लड़ाकू विमान चाहते थे और इसके लिए स्वीडन के मुद्दे को लेकर सौदेबाजी करने के मूड में थे। बाइडेन ने स्वीडन के नाटो में प्रवेश की दिशा में उठाए गए इस पहले कदम का स्वागत करते हुए जो छोटा सा वक्तव्य जारी किया उसमें विमानों के मामले का कोई जिक्र नहीं है लेकिन तुर्की की सरकारी न्यूज एजेन्सी ‘अनाडुलू’ ने कहा कि अमेरिका के विदेश मंत्रालय ने विमान दिए जाने का समर्थन किया है।

तीसरा कारण: जो ज्यादा बड़ा है। नाटो सम्मेलन के लिए रवाना होते समय हवाईअड्डे पर प्रेस से बातचीत में तुर्की के राष्ट्रपति ने कहा, “पहले तुर्की के यूरोपीय संघ में प्रवेश का मार्ग प्रशस्त हो उसके बाद हम स्वीडन का रास्ता आसान बनाएंगे, जैसा कि हमने फिनलैंड के मामले में किया था”। तुर्की सन् 1987 से यूरोपीय संघ, ईयू में शामिल होने के लिए वार्ताएं कर रहा है लेकिन अर्दोआन के शासनकाल में सन् 2018 से देश में तानाशाही शासन और मानवाधिकारों के उल्लंघन के मामले बढ़ने के मद्देनजर वार्ताएं बंद हैं। रिश्तों में कड़वाहट की शुरुआत सन् 2015 के प्रवासी संकट से शुरू हुई थी जब ईयू के सदस्यों ने अर्दोआन पर कूटनीतिक ब्लैकमेल करने के आरोप लगाए थे। नवंबर 2016 में जब अर्दोआन ने अपने विरोधियों के खिलाफ सख्त कदम उठाए और उस साल हुए असफल विद्रोह में उनका हाथ होने का आरोप लगाए तब यूरोपीय संसद ने चर्चाएं स्थगित करने के पक्ष में मतदान किया। तब से तुर्की को ईयू में शामिल करने के प्रति न तो कोई उत्साह दिखाया गया और ना ही कोई इच्छा।

यदि तुर्की में हाल में हुए चुनावों में उदारवादी छवि वाले कमाल किलिकडारोग्लू की जीत हुई होती तो शायद तुर्की के साथ अलग व्यवहार होता।

इसमें कोई संदेह नहीं कि अंतिम समय में हुए अर्दोआन के ‘ह्दय परिवर्तन’ की कीमत बाकायदा चुकाई गई है। ईयू की सदस्यता और एफ-16 विमान दोनों मामलों में तुर्की को ठोस आश्वासन दिए गए हैं। विमानों के बारे में फैसले से यूनान (जो लंबे समय से तुर्की का प्रतिद्वंदी रहा है) चौकन्ना और चिंतित है और यह आश्वासन मांग रहा है कि तुर्की अमेरिका से मिलने वाले इन विमानों का इस्तेमाल उसके खिलाफ नहीं करेगा। इसके अलावा रूस-यूक्रेन युद्ध के बारे में अर्दोआन की रोज बदलती नीतियों का मुद्दा भी है।

एक ओर उन्होंने काले सागर से होते हुए अनाज के जहाजों को निकलने देने के मामले में मध्यस्थता की थी, जिससे यूक्रेन अपने बंदरगाहों से कृषि उत्पादों का निर्यात कर पाया था। तुर्की की सहायता से ही यह समझौता कायम रह पाया हालांकि रूस ने कई बार इसे तोड़ने की धमकी दी। वहीं दूसरी ओर तुर्की द्वारा यूक्रेन को हथियारबंद ड्रोन देने से क्रेमलिन नाराज है। रूसी अधिकारी सप्ताहांत में तब आगबबूला हो गए जब एक हैरान करने वाला कदम उठाते हुए तुर्की ने यूक्रेन के मारियोपोल स्थित सैन्य अड्डे के पांच पूर्व कमांडरों को यूक्रेन के राष्ट्रपति वोलदोमीर जेलेंस्की की यात्रा के बाद कीव के लिए उड़ान भरने की अनुमति दे दी।

इस सारे घटनाक्रम के चलते इसका सटीक अनुमान लगाना कठिन है कि अर्दोआन आखिर क्या चाहते हैं। उनके ह्दय परिवर्तन का असली कारण जानना मुश्किल है। यही कारण है कि नाटो प्रमुख इस सवाल का जवाब देने से बचते रहे कि स्वीडन कब नाटो में शामिल होगा। उन्होंने केवल यह कहा कि अर्दोआन ‘जल्दी से जल्दी’ संसद से इसकी पुष्टि करवाने का प्रयास करेंगे। लेकिन, अभी तो अर्दोआन खबरों के केंद्र में होने का मजा ले रहे हैं। स्वीडन को हरी झंडी दिखाकर वे साथी देशों की प्रशंसा के पात्र बन गए हैं और ईयू की सदस्यता हासिल करने की ओर बढ़ने से देश में उनकी लोकप्रियता बढ़ गई है।

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Published by श्रुति व्यास

संवाददाता/स्तंभकार/ संपादक नया इंडिया में संवाददता और स्तंभकार। प्रबंध संपादक- www.nayaindia.com राष्ट्रीय और अंतरराष्ट्रीय राजनीति के समसामयिक विषयों पर रिपोर्टिंग और कॉलम लेखन। स्कॉटलेंड की सेंट एंड्रियूज विश्वविधालय में इंटरनेशनल रिलेशन व मेनेजमेंट के अध्ययन के साथ बीबीसी, दिल्ली आदि में वर्क अनुभव ले पत्रकारिता और भारत की राजनीति की राजनीति में दिलचस्पी से समसामयिक विषयों पर लिखना शुरू किया। लोकसभा तथा विधानसभा चुनावों की ग्राउंड रिपोर्टिंग, यूट्यूब तथा सोशल मीडिया के साथ अंग्रेजी वेबसाइट दिप्रिंट, रिडिफ आदि में लेखन योगदान। लिखने का पसंदीदा विषय लोकसभा-विधानसभा चुनावों को कवर करते हुए लोगों के मूड़, उनमें चरचे-चरखे और जमीनी हकीकत को समझना-बूझना।

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