राज्य-शहर ई पेपर व्यूज़- विचार

नेता और अपराध: तीन हजार लंबित- नेता निपट जाएंगे… उनके केस नहीं….?

भोपाल। भारत में अपराध और राजनीति का चोली-दामन का साथ है, यहां यह मान लिया जाता है कि कोई सीधा-सच्चा सिद्धांतवादी शख्स राजनीति कर ही नहीं सकता, यहां जिस पर जितने आपराधिक मामले वह उतना बड़ा नेता माना जाता है। एक रिपोर्ट के अनुसार इस देश में 99% नेता अपराधों में लिप्त रहे हैं और अपराध भी कैसे हत्या, बलवा, बलात्कार, अपहरण आदि जैसे मामलों में। केंद्र सरकार ने इन नेताओं के अपराधों को शीघ्र निपटारे के लिए विशेष अदालतों व फास्ट्रेक कोर्ट के गठन का फैसला लिया, इस फैसले के 5 साल बाद भी आज देश की न्यायालयों में नेताओं के खिलाफ 2729 आपराधिक मामले लंबित हैं, जिनमें से 5 साल में केवल 6% ही मामले निपट पाए। नेताओं के न्यायालयों के फैसलों की चिंता इसलिए नहीं है, क्योंकि अपराधी घोषित होने संबंधी फैसले तक उन्हें कोई चुनाव लड़ने से रोक नहीं सकता, यहां तक की जेल में रहकर भी नेता चुनाव लड़ सकता है, ऐसा कानूनी प्रावधान बना हुआ है। नेताओं के आपराधिक मामले निपटाने के मामले में पूरे देश के राज्यों में 3 राज्य ऐसे हैं जिनमें पिछले 5 वर्षों में एक भी मामले का निपटारा नहीं हुआ, उनमें मध्यप्रदेश के साथ तेलंगाना और आंध्र प्रदेश है।

आज देश भर में 2556 मौजूदा और पूर्व सांसद विधायकों पर हत्या, लूट, बलात्कार अपहरण व अन्य गंभीर अपराधों के 4442 मामले दर्ज हैं, इन मामलों का निपटारा फास्ट्रेक न्यायालयों में किया जाना है, जिनका गठन ही इसी कार्य के लिए हुआ है, किंतु इन न्यायालयों में चार कारणों से मामलों का निपटारा नहीं हो पा रहा है- पहला कारण अपराधों के दोषी सांसदों के पास पैसे और समय की कमी नहीं होना है, ऐसे हाई प्रोफाइल अपराधी महंगे वकील करके अपने मामलों का निपटारा नहीं होने देते। दूसरा कारण यह कि जिस नेता के खिलाफ मामले चल रहे हैं और उसकी पार्टी चुनाव बाद सत्तारूढ़ हो जाती है तो वह या तो न्यायाधीश को परेशान करती है या केस वापस ले लेती है, ऐसे में निपटारा कैसे हो? तीसरा कारण यह भी है कि अपराधिक मामलों का कोई भी गवाह बार-बार कोर्ट आना नहीं चाहता, गवाहों को धमकाया जाता है, व कई बार उन पर हमला भी कराया जाता है, इसके कारण कई बार गवाह अपने बयान बदल देते हैं। ….और इसका चौथा कारण यह है कि जब जज महोदय को नेताओं के आपराधिक मामलों की जिम्मेदारी दी जाती है तो उनके पास के पुराने मामले वापस नहीं लिए जाते या उनकी जिम्मेदारी किसी अन्य न्यायाधीश को नहीं सौंपी जाती, इस कारण विशेष न्यायाधीशों पर कोर्ट के मामले निपटाने का दोहरा दबाव रहता है, इस कारण नेताओं के मामलों की सुनवाई लंबी खिंच जाती है।

अब यहां यह चर्चा करना तो व्यर्थ ही है कि किस दल मे अपराधी नेताओं की संख्या ज्यादा है, क्योंकि अपराध की यह भांग तो हर दल के कुएं में घुली हुई है फिर भी मनोवैज्ञानिक रूप से केंद्र और राज्यों में सत्तारूढ़ दल के नेताओं की संख्या इस मामले में ज्यादा रहती है, क्योंकि उनका दल सत्तारूढ़ होने के कारण उनके दिल दिमाग में किसी भी तरह का खौफ नहीं रहता और वह कभी अपने लिए तो कभी अपने आकाओं के इशारों पर गंभीर से गंभीर अपराध को अंजाम देने में हिचकिचाते नहीं है।

सबसे बड़े दुख की बात इस संदर्भ में यह है कि भारत सरकार और चुनाव आयोग दोनों ने ही ऐसे मामलों में सख्त कानून बना रखे हैं, लेकिन यह सिर्फ कहने को ही सख्त हैं, राजनीति के पालने में नेताओं ने थपकी देकर इन्हें गहरी नींद में सुला रखा है, इसलिए इनका होना या नहीं होना बराबर है।

अब इस महारोग का पूरा इलाज तभी संभव है, जब सत्तारूढ़ दल चुनाव आयोग को इस दिशा में कानूनों के सही परिपालन की मंजूरी दे और स्वयं शीर्ष नेता अपने दल व नेताओं का मोह त्याग देशहित की सोचें?

Tags :

Leave a comment

Your email address will not be published. Required fields are marked *