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अब किसी तोड़फोड़ से राहुल नहीं रुकेंगे !

अब किसी तोड़फोड़ से राहुल नहीं रुकेंगे !

तेलंगाना की राहुल की जनसभा ने दिखा दिया कि जनता किसके साथ है।…यही है फासिज्म कि हम  उठा कर ले जाएंगे, तोडेंगे, बता रहे हैं!  क्या कर लोगे? जी हां! न्यूज चैनलों और अखबारों में ऐसे ही हैडिंग भरे पड़े हैं। एनसीपी के बाद जेडीयू तोडेंगे। उत्तर प्रदेश में भी विपक्ष टूटेगा। कर्नाटक बचेगा नहीं, कांग्रेस मध्य प्रदेश को याद रखे!…मीडिया का हाल बैंड बाजा टीम से भी बुरा हो गया है। बैंड वाले शोक सभा मेंखुशी की घुन नहीं बजाएंगे। चाहे आप कितना ही पैसा दे दो। एक नैतिकता, प्रोफेशनलिज्म उनमें है। मगर इस मीडिया से आप कुछ भी कहलवा लो लिखवा लो।

यह चेतावनी या धमकी नहीं है, यही है फासिज्म कि हम  उठा कर ले जाएंगे,तोडेंगे, बता रहे हैं!  क्या कर लोगे?

जी हां! न्यूज चैनलों और अखबारों में ऐसे ही हैडिंग भरे पड़े हैं। एनसीपीके बाद जेडीयू तोडेंगे। उत्तर प्रदेश में भी विपक्ष टूटेगा। कर्नाटक बचेगा नहीं, कांग्रेस मध्य प्रदेश को याद रखे!

मतलब रोक सकते हो तो रोक लो। आज तुम्हारे यहां चोरी होगी। चोरी औरसीनाजोरी का मुहावरा यहीं से निकला है। सामंतवाद में ऐसी ही दबंगी होतीथी। उसी के खिलाफ जनता को संरक्षण देने के लिए लोकतंत्र आया।

लोकतंत्र मतलब लोग अपनी मर्जी से अपनी शासन व्यवस्था चुनें। दलीयलोकंतत्र। जहां आप किसी दल को उसके प्रतिनिधि को अपने लिए चुनते हैं। मगरअब तो उन्हें उठाकर ले जाया जा रहा है। और कहा जा रहा कि और ले जाएंगे।

महाराष्ट्र में ले गए। बिहार में करेंगे। यूपी में भी होगा। और गोदीमीडिया इसको बहुत बहादुरी का काम बता रहा है।

माफ कीजिए यह बिल्कुल भांडों का काम है। जो किसी लड़की का अपहरण करने कोभी राजा की बहादुरी और वीरता बता देते थे। कुछ इस तरह जैसे हमारे यहांडाकुओं पर बनने वाली फिल्मों में डाकू दिन तारीख बता कर कहते थे सेठ तेरेयहां आएंगे। जो कर सकता है कर लेना। लूट कर जाएंगे।

बड़ी अच्छी बात है! एकदम गैर-कानूनी, अनैतिक, दबंगी का काम करने वालेनायक की तरह पेश किए जा रहे हैं। और पीड़ितों को अयोग्य बताया जा रहा है।कहा जा रहा है कि अपने घर की रक्षा नहीं कर पाए। मतलब हम तो डाकाडालेंगे, तुम अगर बचा नहीं पाए तो दोष तुम्हारा। नालायक हो निकम्मे हो!

यह नया दौर चल रहा है। पीड़ित को ही दोषी ठहराने का। और आरोपी को हीरोबनाने का। अभी ब्रजभूषण शरण सिंह को बनाया जा रहा था हीरो। और ओलम्पिकमें मैडल लाने वाली पहलवानों पर उल्टे इल्जाम लगाए जा रहे थे। उनसे हीसवाल किए जा रहे थे।

अब अजीत पवार को हीरो बनाया जा रहा है। अभी कुछ दिन पहले ही वे जब सुबहमुंह अंधेंरे भजपा के मुख्यमंत्री फड़नवीस के साथ शपथ लेकर फिर वापस माफीमांगते हुए शरद पवार के पास आ गए थे तो उनको डरपोक, अस्थिर सोच काव्यक्ति बताया जा रहा था। अब फिर उन्होंने दल बदल किया तो वे वीर बहादुरहो गए। असली पवार हो गए।

मीडिया का हाल बैंड बाजा टीम से भी बुरा हो गया है। बैंड वाले शोक सभा मेंखुशी की घुन नहीं बजाएंगे। चाहे आप कितना ही पैसा दे दो। एक नैतिकता,प्रोफेशनलिज्म उनमें है। और इंसानी सभ्यता, मानवता भी। मगर इस मीडिया सेआप कुछ भी कहलवा लो लिखवा लो। ये भयानक ट्रेन दुर्घटना में सैंकड़ोलाशों, घायलों के बीच मोदी मोदी के नारे कवर करते हैं। और उत्साह पूर्वकबताते हैं कि देखिए कैसा माहौल है।

लेकिन मूल सवाल मीडिया का नहीं, उसकी तो अब कोई हैसियत बची नहीं है, वहतो उस फिल्मी गाने की तरह हो गई कि – बैठ जा, बैठ गई, खड़ी हो जा खड़ीगई, घूम जा घूम गई! उससे क्या कहना। वह तो बस में हो गई। सवाल भाजपा काहै कि महाराष्ट्र में अपनी चलती हुई सरकार के बावजूद अचानक उसे वहां तोड़फोड़ की क्या सूझी?

यह दरअसल महाराष्ट्र के लिए नहीं है। महाराष्ट्र में यह दांव उसे उल्टापड़ना है। वहां तो इस नए ड्रामे के बाद उद्धव ठाकरे का कद सबसे ज्यादाबढ़ गया। एक तो भाजपा के खुद बहुमत में आने के बाद एकनाथ शिंदे महत्वहीनहो गए। इससे उनके वापस कभी भी उद्धव ठाकरे के पास लौटने की संभावनाएं बढ़गई हैं। दूसरे एकनाथ सहित, फड़नवीस, अजीत पवार, शरद पवार सब का भोकाल खतमहो गया है। जनता में सीधा मैसेज गया है कि राज्य में सबसे ज्यादापरिपक्व, गंभीर और सरकार चलाने की योग्यता रखने वाला नेता उद्धव ठाकरेहै। इसके साथ ही उनके बेटे आदित्य ठाकरे की स्थिति मजबूत हो रही है।

आदित्य ने अपने छोटे से राजनीतिक जीवन में तीन बार सरकार बदलते और अपनीपार्टी सहित सभी पार्टियों में टूट फूट देख ली है। उन्हें पिता के साथपटना जाने का भी मौका मिला था। उद्धव को ऐसे मौके नहीं मिले। क्योंकि बालठाकरे कहीं जाते नहीं थे। इसलिए उनके बाद उद्धव को राजनीति समझ में आनेमें टाइम लगा। लेकिन आदित्य की राजनीतिक शिक्षा दीक्षा अच्छी हो रही है।समय उन्हें अनुभव भी खूब दे रहा है। संभवत: वे विपक्ष की दूसरी बैठक मेंबंगलूरू भी आएं। ये महाराष्ट्र का घटनाक्रम है। जो ठाकरे परिवार के पक्षमें जाता हुआ दिख रहा है।

तो इसके लिए मोदी जी ने एनसीपी में तोड़फोड़ नहीं करवाई है। दरअसल यह राहुल गांधी के लगातार एक के बाद एक मोर्चे जीतते चले जाने और इससेहिम्मत पाकर दूसरे विपक्षी दलों के उनके साथ आने को रोकने के लिए की गईकार्रवाई है। इसका सीधा उद्देश्य विपक्षी दलों में खौफ पैदा करना है किअगर राहुल के साथ गए तो तुम भी सलामत नहीं रहोगे। एनसीपी तोड़ दिया और अबकिसी भी पार्टी को तोड़ सकते हैं। और तोड़ने के लिए हमारे पास ईडी, इनकमटैक्स, सीबीआई, एनआईए और कई एजेन्सियां हैं।

देखिए इसी डर से अखिलेश सीधे तेलंगाना पहुंच गए। वहां एक दिन पहले हीराहुल बीआरएस पार्टी को भाजपा की रिश्तेदार समिति और मुख्यमंत्री केसीआरको मोदी की कठपुतली बता कर आए थे। बहुत विशाल सभा में और ऐसी भीड़ में जोजोश में थी। राहुल को देखकर रिस्पांस कर रही थी। इससे जितना  केसीआर कोखतरा महसूस हुआ उससे ज्यादा प्रधानमंत्री मोदी को।

ठीक है मामला राहुल केसीआर और मोदी का था। मगर इसमें अखिलेश यादव ने काहेको एन्ट्री ले ली! दरअसल अखिलेश की एन्ट्री में ही सारी कहानी छुपी हुईहै। अखिलेश तेलंगाना पहुंचे और बोले कि केसीआऱ से मिलकर मोदी से लड़ेंगे। वाह! वैरी गुड! केसीआर तो खुद अभी राहुल से लड़ रहे हैं। उनके यहांविधानसभा चुनाव है। केसीआर के मोदी से लड़ने का सवाल कहां आता है? मोदीसे तो राहुल लड़ रहे हैं। लेकिन अखिलेश कहते हैं कि केसीआर के साथ मिलकरमोदी से लड़ेंगे।

यही एनसीपी को तोड़ने का बाय इफेक्ट है। अखिलेश हिल गए। अप्रत्यक्ष रूपसे मोदी की मदद करने लगे। केसीआर के साथ मिलकर मोदी से लड़ने का मतलबतीसरे मोर्चे की सुगबुगाहट को फिर से तेज करना है। और तीसरा मोर्चा मतलबमोदी को फायदा पहुंचाना। मगर अब एक मजेदार बात है। तीसरा मोर्चा फिर से बनवाने की कोशिशें भाजपाचाहे जितनी कर ले। बंगलुरू में होने वाली 17- 18 जून की बैठक में जाने सेकिसी को रोक ले मगर इन सबसे अब राहुल को नहीं रोक सकते।

राहुल फार्म में आ गए हैं। और क्रिकेट में कहते हैं कि बड़ा बैट्समेनबड़े मैच के पहले ही फार्म में आता है। 2024 लोकसभा बड़ा मैच है। फाइनल।और उससे पहले राहुल के लिए सारे मैच क्वार्टर, सेमी सब आसान होने जा रहेहैं। पांच राज्यों के चुनाव हैं इसी साल। इनमें से एक में भी भाजपा मजबूतनहीं है। मोदी जी को इसकी ज्यादा चिन्ता नहीं है। असली चिन्ता है 2024लोकसभा जीतना। और उसके लिए सबसे बड़ी बाधा विपक्षी एकता है। उसे मोदी जीतोड़ना चाहते हैं। महाराष्ट्र इसी लिए किया गया और मीडिया के जरिए माहौलबनाया गया कि राहुल की वजह से एनसीपी टूटी।

मीडिया और भाजपा को नहीं मालूम कि अब घबराहट में कही और की गई उनकी हरबात का फायदा राहुल को मिल रहा है। मैसेज क्या गया कि राहुल इतने ताकतवरहो गए हैं कि उनके कुछ बिना किए उनके असर से दूसरी पार्टियां प्रभावितहोती हैं! वे कुछ भी कर सकते हैं! ऐसी छवि तो कभी मोदी जी की थी। वह अब राहुल में स्थानान्तरित हो गई है।इसलिए अब विपक्ष कम साथ आए। ज्यादा शर्तें रखे कोई फर्क पड़ने वाला नहींहै। एक माहौल जो बनना था कि मोदी के मुकाबले कौन? वह बन गया।

राहुल सामने खड़े हैं। अब केजरीवाल कुछ कहें, अखिलेश कुछ करें और भी एकदो दल ढुलमुल हों मगर जनता राहुल के नेतृत्व वाली विपक्षी एकता के पक्षमें दिख रही है। तेलंगाना की राहुल की विशाल सभा ने दिखा दिया कि जनताकिसके साथ है।

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Published by शकील अख़्तर

स्वतंत्र पत्रकार। नया इंडिया में नियमित कन्ट्रिब्यटर। नवभारत टाइम्स के पूर्व राजनीतिक संपादक और ब्यूरो चीफ। कोई 45 वर्षों का पत्रकारिता अनुभव। सन् 1990 से 2000 के कश्मीर के मुश्किल भरे दस वर्षों में कश्मीर के रहते हुए घाटी को कवर किया।

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