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समुदायों के बीच अलगाव बढ़ाने का काम

उत्तर से लेकर दक्षिण और पूरब से लेकर पश्चिम तक किसी न किसी रूप में समुदायों के बीच अलगाव बढ़ाने वाले काम हो रहे हैं। दुर्भाग्य से यह काम या तो सरकारी तौर पर हो रहा है या सत्तारूढ़ दल के समर्थन से हो रहा है। भाजपा के नेता कांग्रेस और लेफ्ट के ऊपर टुकड़े टुकड़े गैंग का आरोप लगाते हैं लेकिन भाजपा की सरकारें और उनके समर्थकों की तरफ से लगातार ऐसे काम हो रहे हैं, जिनसे टुकड़े होने का खतरा पैदा होता है। अलग अलग गैर हिंदू समुदायों की परीक्षा ली जा रही है, उनके संयम को आजमाया जा रहा है। ऐसा नहीं है कि सिर्फ मुस्लिम समुदाय के लोग इसका शिकार हो रहे हैं। हर अल्पसंख्यक समुदाय के लोग इस तरह की घटनाओं में निशाने पर है।

मणिपुर में इस बात की सबसे ज्यादा चर्चा है कि हिंदू मैती और कुकी आदिवासी के बीच विवाद चल रहा है लेकिन सोचें, इस विवाद में चर्च तोड़ने या जलाने का क्या मतलब है? मणिपुर जैसे छोटे से राज्य में पिछले दो महीने में 357 चर्च तोड़े गए हैं। मणिपुर में चर्च तोड़े जाने के विरोध में मिजोरम भाजपा के उपाध्यक्ष आर वनरामछौंगा ने इस्तीफा दिया है। क्या इसलिए कि आदिवासी धर्म बदल कर ईसाई बने हैं? ध्यान रहे 2011 की जनगणना के हिसाब से मणिपुर में साढ़े आठ फीसदी के करीब मुस्लिम हैं। 32 लाख की आबादी वाले मणिपुर में ढाई लाख के करीब मुस्लिम हैं। लेकिन आश्चर्यजनक रूप से वहां मुस्लिम निशाने पर नहीं हैं और न मस्जिदें निशाने पर हैं। वहां आदिवासी और चर्च निशाने पर हैं। पूर्वोत्तर के कुछ राज्यों में और केरल, कर्नाटक जैसे दक्षिणी राज्यों में ईसाई समूह निशाने पर है। उनके ऊपर हमले हो रहे हैं।

बाकी हिस्सों में मुस्लिम समुदाय को टारगेट किया जा रहा है। देश में इस समय समान नागरिक संहिता यानी यूसीसी की चर्चा चल रही है और इस चर्चा के बीच असम के मुख्यमंत्री हिमंत बिस्व सरमा ने कहा है कि उनकी सरकार कानून बना कर बहुविवाह को रोकेगी। सोचें, जब विवाह, तलाक, गोद लेने और संपत्ति के कानून को ही एक जैसा बनाने के लिए यूसीसी लाया जा रहा है तो फिर असम में बहुविवाह रोकने के लिए अलग कानून लाने की क्या जरूरत है? जाहिर है इसका मकसद राज्य की 32 फीसदी के करीब मुस्लिम आबादी को यह संदेश देना है कि सरकार कानून के जरिए उनकी धार्मिक परंपराओं और मान्यताओं को समाप्त कर सकती है। इसका मकसद विशुद्ध रूप से राजनीतिक है। ध्यान रहे कुछ समय पहले राज्य में मदरसों का सर्वे करने और उन्हें बंद कराने का अभियान चला था।

इसी तरह संविधान में धर्मांतरण को लेकर स्पष्ट रूप से प्रावधान है और उसी आधार पर कानून भी बना हुआ है लेकिन कई भाजपा शासित राज्यों ने लव जिहाद रोकने के नाम पर अपने अपने राज्य में धर्मांतरण विरोधी कानून बनाया। पिछले दिनों कर्नाटक में कांग्रेस सरकार ने वहां के इस कानून को निरस्त करने का फैसला किया। इससे पहले सुप्रीम कोर्ट ने तीन तलाक को अवैध बताते हुए उसे खारिज किया था। लेकिन बाद में केंद्र सरकार ने संसद से कानून पास करा कर तीन तलाक को अपराध बनाया। मुस्लिम समुदाय ने तीन तलाक को अवैध बनाने के सुप्रीम कोर्ट के फैसले का स्वागत किया था लेकिन उसे अपराध बनाने के सरकार के कानून को गैरजरूरी बताते हुए उसका विरोध किया था। सुप्रीम कोर्ट के फैसले के बाद तीन तलाक को अपराध बनाने का कानून यह मैसेज बनवाने के लिए था कि सरकार मुसलमानों को ठीक कर रही है।

ऐसे ही देश में अचानक ऐसी फिल्मों की बाढ़ आई है, जिसमें मुसलमानों को जिहादी, अत्याचारी और हिंदुओं का धर्मांतरण कराने वाला दिखाया जा रहा है। कश्मीर से हिंदुओं के पलायन पर ‘कश्मीर फाइल्स’ नाम से फिल्म बनी, जिसने सैकड़ों करोड़ रुपए का कारोबार किया। इसके बाद ‘द केरल स्टोरी’ नाम से फिल्म बनी, जिसमें बताया गया कि हजारों हिंदू लड़कियों को मुस्लिम बना कर उनको आतंकवादी संगठन इस्लामिक स्टेट में भर्ती कराया जा रहा है। हालांकि बाद में फिल्म बनाने वालों को आंकड़ा हटाना पड़ा क्योंकि उनके पास इसका कोई आधार नहीं था। इसके बाद ‘72 हूरें’ नाम से फिल्म आई। हालांकि यह फिल्म चली नहीं है। हर बार इस तरह की फिल्म बनाने वालों का कहना होता है कि उनकी फिल्म किसी धर्म के खिलाफ नहीं है। लेकिन असल में वह एक खास धर्म के खिलाफ होती है, जिसका मकसद समाज में नफरत फैलाना होता है। हो सकता है कि उसमें कुछ तथ्य सही हों लेकिन उसका बुनियादी मकसद समुदायों के बीच दूरी बढ़ाना होता है।

सरकार यूसीसी लाने की बात कर रही है, जिसका विरोध सिख समुदाय कर रहा है। उसकी सर्वोच्च संस्था शिरोमणि गुरुद्वारा प्रबंधक कमेटी ने इसका विरोध किया है। ऑल इंडिया मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड ने भी इसका विरोध किया है। मेघालय, नगालैंड, मिजोरम जैसे राज्यों में भाजपा की सहयोगी पार्टियों ने इसका विरोध किया है। केरल, तमिलनाडु और तेलंगाना की सरकारों ने इसका विरोध किया है। आदिवासी समूह इसका विरोध कर रहे हैं। लेकिन खुद प्रधानमंत्री इसकी वकालत कर रहे हैं। जबकि अभी तक इसका कोई मसौदा सरकार ने जनता के सामने नहीं रखा है लेकिन एक एजेंडे के तौर पर इसका हल्ला, प्रचार हो रहा है। सोशल मीडिया में इसे लेकर हो रही चर्चाओं को देखें तो ऐसा लगेगा कि इसका प्रचार मुसलमान को सबक सिखाने वाले कानून के तौर पर किया जा रहा है। साफ लग रहा है कि देश के नागरिकों को दो हिस्सों में बांटने का प्रयास हो है। पहला, निष्ठावान, भरोसेमंद, राष्ट्रवादी प्राथमिक नागरिक और दूसरा, अविश्वसनीय, संदिग्ध, दोयम दर्जे का नागरिक।

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By हरिशंकर व्यास

मौलिक चिंतक-बेबाक लेखक और पत्रकार। नया इंडिया समाचारपत्र के संस्थापक-संपादक। सन् 1976 से लगातार सक्रिय और बहुप्रयोगी संपादक। ‘जनसत्ता’ में संपादन-लेखन के वक्त 1983 में शुरू किया राजनैतिक खुलासे का ‘गपशप’ कॉलम ‘जनसत्ता’, ‘पंजाब केसरी’, ‘द पॉयनियर’ आदि से ‘नया इंडिया’ तक का सफर करते हुए अब चालीस वर्षों से अधिक का है। नई सदी के पहले दशक में ईटीवी चैनल पर ‘सेंट्रल हॉल’ प्रोग्राम की प्रस्तुति। सप्ताह में पांच दिन नियमित प्रसारित। प्रोग्राम कोई नौ वर्ष चला! आजाद भारत के 14 में से 11 प्रधानमंत्रियों की सरकारों की बारीकी-बेबाकी से पडताल व विश्लेषण में वह सिद्धहस्तता जो देश की अन्य भाषाओं के पत्रकारों सुधी अंग्रेजीदा संपादकों-विचारकों में भी लोकप्रिय और पठनीय। जैसे कि लेखक-संपादक अरूण शौरी की अंग्रेजी में हरिशंकर व्यास के लेखन पर जाहिर यह भावाव्यक्ति -

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