अयोध्या। राम के अयोध्या लौट आने की उम्मीदों पर राम नगरी अर्से से जिंदा है। इस इच्छा पर सन् 2019 में सुप्रीम कोर्ट का ठप्पा लगा। राम जन्मभूमि-बाबरी मसजिद विवाद हल हुआ। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने लपक कर 5 अगस्त 2020 को मंदिर निर्माण का शिलान्यास किया। अब अयोध्या के लोगों को चुनाव में बताना है कि वे खुश है या नाराज? रोजमर्रा की जिंदगी की तकलीफों पर वोट देंगे या योगी सरकार के ‘न्यू अयोध्या’ पर? रामनगरी भगवाई या लाल टोपी वालों की? योगी के रोड शो व अखिलेश की जनसभा और लोगों की बातों से यदि अनुमान निकाले तो वह अयोध्या में लोग नाराज ही नाराज है। गुस्से की गरम हवा से भाजपा की हवाईयां उडी हुई है। भाजपा, वीएचपी, बजरंग दल, एबीवीपी से लेकर नोएडा के महेश शर्मा, संघ के वरिष्ठ प्रचारक कौशल किशोर सब अयोध्या में डेरा डाल यह मंत्र फूक गए है कि ईश्वर के लिए उम्मीदवार पर न सोचे, भाजपा पर नहीं और गुस्सा-नाराजगी थूंक कर अयोध्या की नाक बचाने के लिए वोट करे। मंदिर निर्माण के ठप्पे का वोट दें! Up assembly election Ayodhya
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लोग नाराज है। कारण कई है। जातिय समीकरण बिगड़ा हुआ है। ‘न्यू इंडिया’ में ‘न्यू अयोध्या’ बनाने के लिए राम की पैढी से ले कर पुराने फैजाबाद सिटी तक स़डकों को चौड़ा करने, 800 दुकानों, इमारतों को ढहाने की जो निशानदेही हुई है, लोगों के आगे जिविकोपार्जन का संकट बनता हुआ है, उसकी नाराजगी के साथ भाजपा के मौजूदा विधायक वेदप्रकाश गुप्ता के खिलाफ ऐसी एंटी इनकेंबसी है कि जहां भाजपा के कार्यकर्ता रूठे बैठे है वही जन्मभूमि ट्रस्ट और मंदिर के आगे के रोडमैप के लिए बाहर से आए लोगों से लोकल साधू, संतों, (खासकर नई पीढी के) बाबाओं, मठ-आश्रमों में नाराजगी है।
तीन पीढियों पुरानी दुकान के 25 साला नौजवान प्रदीप यादव के अनुसार- ‘ये हमारी आमदनी के साथ-साथ हमारी जमीन भी छीनना चाहते है।“ डिमोलेशन के लिए चिंहित एक दुकान के शिव प्रसाद का कहना था कही सुनवाई नहीं है। मौजूदा एमएलए के दफ्तर गए, घर गए, उसे फोन करते है तो वह फोन नहीं उठाता। सरकारी दफ्तर हो या एमएलए और भाजपा के लोग किसी के लिए कुछ करना तो दूर वे लोगो से बात भी करने को तैयार नहीं होते। पूरे शहर में हवा बनी है कि योगी सरकार विकास के नाम पर बडे पैमाने पर जमीन का अधिग्रहण करके उसे उद्योगपतियों, बड़े लोगों व प्रदेश की सरकारों को देगी। ‘न्यू अयोध्या’ में मूल लोगों, मूल दुकानदारों, बाबाओं, आश्रमों, साधू-संतों के लिए न जगह है और न मान-सम्मान।
इस नाराजगी को ही बूझ कर अखिलेश यादव ने ब्राह्यण तेजनारायण उर्फ पवन पांडे को उम्मीदवार बनाया है। अयोध्या के एक वरिष्ठ पत्रकार के अनुसार कल्पना नहीं थी कि ब्राह्यण घर-परिवारों में तेजनारायण का ऐसा स्वागत होगा। अयोध्या के ब्राह्मणों और साधू-संतों में सपा उम्मीदवार की जहां चर्चा है तो वहीं भाजपा और उसके नेताओं के गिडगिडाने के भी चर्चे है। भाजपा कार्यकर्ता दिखावे को सक्रिय था।
अयोध्या में नाराजगी के चलते संघ परिवार ने प्रचार खत्म होने के पहले यह हल्ला बनाने में पूरी ताकत लगाई कि अयोध्या की नाक का सवाल है। यदि भाजपा अयोध्या में हार गई तो देश में कैसा मैसेज जाएगा।
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मगर प्रचार के खत्म होने से ठिक पहले अखिलेश यादव की सभा की भीड और उत्साह ने संघ परिवार की चिंता को और बढा दिया। मंदिर नगरी का मतदाता केवल रोना रोते हुए है। 26 वर्षीय सुभाष का कहना था- उसने एसआई की नौकरी की परीक्षा दी, रिजल्ट का इंतजार कर रहा है, वह नौकरी की कोशिश में योगी सरकार के झांसो से तंग आ गया है। उसका भाई पांच साल से सेना में भर्ती की इंतजार में है। ‘पहले सेना की हर साल वेकेंसी खुलती थी, पर पिछले पांच साल में कोई वेकेंसी नहीं आई… और फिर ये बोलते है कि हम देश द्रोही है, हम तो अपने देश के लिए सेवा करना चाहते है।‘
डा मधुसूदन तिवारी ने भाजपा के समर्थक होने की बात कहीं लेकिन इस नाराजगी के साथ कि सांड-आवारा पशुओं से किसानों को भारी मुश्किल हुई पडी है।“ एक लोकल पत्रकार मनोज गौतम ने अपने परिवार की पांच बीघा जमीन की खेती के हवाले कहां फ्री राशन का क्या मतलब जब आवारा पशुओं से फसल को बचाने के लिए दिन-रात चौकीदारी करनी पड रही है।
एक दुकानदार ने कहां- 2017 में उम्मीद आई थी, लगा अब सब बदलेगा, पर…
आज अयोध्या में मतदान है। कई मुद्दों पर वोट पडेंगे। ‘न्यू अयोध्या’ के नाम के विकास पर पडेगा। लोकल लोगों का जीवोपार्जन दांव पर है। मंहगाई और बेरोजगारी को लेकर नाराजगी है।
ध्यान रहे अयोध्या की सीट 1991 से भाजपा का गढ़ है। लल्लू सिंह निर्विवाद नेता रहे है। वे एक ही बार सन् 2012 के चुनाव में समाजवादी पार्टी के तेजनारायण पांडे से कोई छह हजार वोटों से हारे है। 2017 में मोदी की हवा में भाजपा के वेदप्रताप गुप्ता एक लाख से ज्यादा वोटों से जीते थे और लल्लू सिंह 2019 में सांसद बन दिल्ली पहुंचे। सन् 2017 की भाजपा की भारी जीत में एक कारण बसपा के उम्मीदवार को मिले चालीस हजार वोटों का गणित भी था। इस दफा मुस्लिम वोट एकमुश्त किधर जाएगा, यह सब जान रहे है। बावजूद इसके 2017 की जीत का अंतर और 2019 के लोकसभा चुनाव में भाजपा के रिकार्ड वोटों की हकीकत में अयोध्या की मौजूदा लडाई में भाजपा को आसानी ही होनी चाहिए, खासकर मंदिर निर्माण की हकीकत में।
लेकिन विधायक के खिलाफ एंटी इनकंबेसी और ब्राह्यण समाजवादी उम्मीदवार तेजनारायण पांडे को यदि बीस-तीस प्रतिशत भी ब्राह्मण वोट मिले व कुछ साधू-सतों तथा यादवों-मुसलमानों एकमुश्त वोट पड़ा तो अयोध्या में गुलगपाडा होगा। अयोध्या की नाक बचने या न बचने के संशय में भाजपा दस मार्च तक सर्वाधिक बैचेन रहेगी।