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चल कर देखें, गैय्या चर गई वोट!

गोरखपुर। जनार्दन गुस्से में हैं। बहुत गुस्से में। उनके दो बेटे हैं। 28 वर्षीय सत्यवान सिंह भी पिता की मदद करने वाला किसान है, जबकि छोटा बेटा पुलिस नौकरी की परीक्षा के नतीजे का इंतजार कर रहा है। जर्नादन भाजपा सरकार से खफा हैं। कहते हैं न नौकरी है और न किसानों को कुछ मिला। उलटे खेतों को चरने के लिए आवारा पशु दे दिए। ‘हमने इनको (मोदी-योगी) दिल खोल वोट दिया था… पर अब नहीं देंगे’.. उसने चिल्लाते हुए कहा। stray animals election issue

इतने भी आप क्यों नाराज? जवाब में गुस्साए जनार्दन ने कहा चलके देखिए कैसे पूरी रात खेत में बैठ कर चौकीदारी करनी होती है।… और उसकी बात समझने के लिए हम जर्नादन के साथ उनके खेत गए। समझ आया कि दिल्ली और शहरों में गैय्या चर रही खेत का हल्ला फालतू लगता है लेकिन रियलिटी में इससे किसानों का जीना सचमुच हराम है।

जनार्दन के पास खेती के अलावा कमाने के लिए और कुछ नहीं है। कोई दूसरा साधन नहीं। खेत की फसल पर ही जिंदगी। जनार्दन, उनके बेटे और पड़ोसी किसान की बात मानें तो गैय्या (आवारा पशु, गाय, सांड, नील गाय, जंगली सूअर) फसल का लगभग 30-35 प्रतिशत हिस्सा खा जाते हैं।.. मुझे विश्वास नहीं हुआ।

अंधेरे में रात पसरी हुई। लंबी रात की चुप्पी हवा में जकड़ी हुई। ठंड काटती हुई। हल्की हवा में गेहूं की बालियां झूमती हुईं। लंबे-चौड़े खेत के बीच एक टॉर्चलाइट अंधेरे में प्रकाशस्तंभ की तरह जलती-बूझती-झपकी लेते हुए। यह 65 वर्षीय किसान जनार्दन सिंह की वह फ्लैशलाइट है, जो रात में आवारा जानवरों (गाय, सांड, नील गाय जंगली सूअरों) को चमकाती हुई होती है। खेत के बीच में मचान पर ट्रैक्टर बैटरी से बल्बों की जलती-बूझती लड़ी। हमें जनार्दन और उनका बेटा सत्यवान खेत घूमाते हैं। बड़ा खेत। सत्यवान वह जगह बताता है, जहां जंगली सूअर ने उस पर हमला किया था। इसके कूल्हे-पांव घायल हो गए थे।… इनके दांत बड़े होते हैं… सारा मांस छील दिया… सत्यवान के पिता ने गुस्से में कहा। गांव के लोगों के साथ ऐसा आए दिन होता रहता है। गांव की एक बूढ़ी औरत जान गंवा बैठी। एक लड़के को दो महीने बिस्तर पर पड़े रहना पड़ा।

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बगल के गांव का जगदंबा अपने खेत की और जाते हमारे साथ हो गया। वह खाना खा, गर्म कपड़े पहन बारह बीघा जमीन की फसल की निगरानी के लिए जा रहा था। उसने कहा- बहुत बड़ी प्रॉब्लम है आवारा पशुओं की।.. गौशाला के नाम पर गंदगी मची हुई है।… एक दिन के लिए रखते हैं और दूसरे दिन उनको छोड़ दिया जाता है।… पूरी-पूरी रात हम सो नहीं पाते, मच्छर भी बहुत हो रहे हैं और फिर लगातार उठ कर देखते रहना होता है।

पूरे साल फसल के वक्त, हर रात चौकीदारी का गुस्सा जिंदगी की आम तकलीफों में मानों विस्फोट। इसके मुकाबले ये शिकायतें कि लड़कों के लिए नौकरी नहीं है, किसानों के लिए कुछ नहीं हुआ है और ऊपर से सब कुछ महंगा बहुत छोटी बात समझ आएगी। राशन और नमक की बात छेड़ी तो भड़कते हुए कहना था- हमको क्या करना इनके नमक का.. फ्री नमक देते हैं..उसका क्या करें जब हमारी आमदनी (फसल) ही कुछ नहीं बचती…

जर्नादन ने बताया- अभी आलू और गेहूं की फसल का सीजन है। आलू-गेहूं के साथ सब्जियां भी बो रखी है।… आलू के आसपास तो जाल बिछा लिया पर पूरा खेत कैसे बचाएं? आलू की फसल को आवारा और जंगली पशुओं से बचाने के लिए जर्नादन ने जानवरों को डराने-भगाने के लिए पटाखों पर 15-20 हजार रुपए खर्च कर दिए हैं। पटाखों का इस्तेमाल भी रात में मचान से चौकीदारी से होता है। समस्या ने चार सालों से किसानों की नींद हराम कर रखी है। जनार्दन और उनका बेटा दोनों पूरी रात बारी-बारी खेत की निगरानी करते हैं।

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जनार्दन जाति से सैंथवार हैं। मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ के गढ़ गोरखपुर से कोई 22 किलोमीटर दूर उसका गांव है। 70-80 घरों के गांव में सैंथवार जाति के परिवार या यादव परिवार। सन् 2017 में गांव के हर व्यक्ति ने भाजपा को वोट दिया था। तब सबका साथ सबके विकास के नारे से मोदीजी पर भरोसा था। अब वह नहीं। वैसा मूड नहीं है।.. हमारे वोट से शीतल पांडे (भाजपा) सहजनवा से विधायक बने थे। उन्हें वोट देंगे या नहीं के सवाल पर जवाब मिला- रोड की हालत देखिए।…एक दिन नहीं आए जीतने के बाद से।..

मोटा मोटी पूर्वांचल में या तो एंटी इनकम्बैंसी मतलब जीतने के बाद नहीं आए विधायक से वोटों का भाजपा को नुकसान होता लग रहा है या खेतों में छूटी गैय्या से भाजपा के वोटों के चर जाने का मामला है। 

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By श्रुति व्यास

संवाददाता/स्तंभकार/ संपादक नया इंडिया में संवाददता और स्तंभकार। प्रबंध संपादक- www.nayaindia.com राष्ट्रीय और अंतरराष्ट्रीय राजनीति के समसामयिक विषयों पर रिपोर्टिंग और कॉलम लेखन। स्कॉटलेंड की सेंट एंड्रियूज विश्वविधालय में इंटरनेशनल रिलेशन व मेनेजमेंट के अध्ययन के साथ बीबीसी, दिल्ली आदि में वर्क अनुभव ले पत्रकारिता और भारत की राजनीति की राजनीति में दिलचस्पी से समसामयिक विषयों पर लिखना शुरू किया। लोकसभा तथा विधानसभा चुनावों की ग्राउंड रिपोर्टिंग, यूट्यूब तथा सोशल मीडिया के साथ अंग्रेजी वेबसाइट दिप्रिंट, रिडिफ आदि में लेखन योगदान। लिखने का पसंदीदा विषय लोकसभा-विधानसभा चुनावों को कवर करते हुए लोगों के मूड़, उनमें चरचे-चरखे और जमीनी हकीकत को समझना-बूझना।

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