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पूर्वांचल की सनसनी नेहा सिंह राठौर!

वाराणसी। लखनऊ, मध्य यूपी से पूर्वांचल की और बढते संयोग से सोमवार को बनारस के घाट पर नेहा सिंह राठौर से बात हुई! पूर्वांचल की जीवंतता की सनसनी। उम्र 24 वर्ष लेकिन यूपी की सच्चाई को ‘यूपी में का बा’ से घर-घर पहुंचा देने का अनहोना काम कर देने वाली। आज के समय में लोक सत्य को बेधड़क लोकगायकी से बता कर बेफिक्री से भी रहा जा सकता है, इसकी एक मिसाल नेहा सिंह राठौर भी हैं। Purvanchal Neha Singh Rathore

नेहा सिंह राठौर भोजपुरी की सनसनी हैं, सोशल मीडिया की सनसनी हैं तो यूपी की राजनीति, योगी-मोदी के वक्त में हवा बदलवाने वाली सनसनी भी। बनारस में पूर्वांचल की चुनावी हवा को लेकर जितना सुना-समझा है उससे लगा कि पश्चिम से अधिक पूर्वांचल के आखिरी दो चरणों के कहीं मतदान भाजपा के लिए घातक तो नहीं? दूसरी बात, भोजपुरी के पूर्वांचल इलाके की हवा पिछले छह महीनों में क्या नेहा की गायकी से तो नहीं बदली? छोड़ें नरेंद्र मोदी, योगी आदित्यनाथ या अखिलेश यादव के भाषणों, इनके जादू और करिश्मे को, असली कमाल घर-घर पहुंची नेहा सिंह राठौर की आवाज का दिख रहा है।

मैं भोजपुरी नहीं जानती, समझ भी नहीं पाती। उन्होंने घाट पर ही दो टुकड़े गा ‘नया इंडिया’ को जो वीडियो (nayaindia.com पर देखें) दिया, उसके भी कम ही शब्द समझ आए। लेकिन नेहा सिंह राठौर का अंदाज, लय व उनकी बिंदास-बेफिक्र-अल्हड़ गायकी से साफ लगा यह सनसनी बिंदास है। मेरे दिमाग का सबसे बड़ा सवाल था- डर नहीं लगता?

नेहा का जवाब था- ट्रोलिंग ने हौसला तोड़ा था। घर वाले शुरू में मेरी गायकी के खिलाफ थे। ट्रोल करने वाले गंदे कमेंट करते थे। मेरे पिता उन्हें पढ़ते, मुझ पर गुस्सा होते और इज्जत का हवाला दे डांटते कि क्या कर रही हो। मेरा फोन टूटा। मुझसे कहा यह सब अपलोड करना बंद करो। लेकिन धीरे-धीरे परिवार वाले शांत हो गए और अब वे मेरे पर गर्व करते हैं। मैं अपनी मां से कहती हूं- आज भोजपुरी में म्यूजिक की वजह से अंग्रेजी और हिंदी मीडिया मेरे से बात करना चाहता है।

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मैने पूछा- लोगों के हालातों पर गाना कैसे शुरू हुआ?

निजी अनुभव के कारण। मेरी मदर-इन-लॉ इंजेक्शन से डरती थीं मगर जब उन्हें कोरोना हुआ तो वे इंजेक्शन के लिए रोती हुई थीं। सही इलाज नहीं हो सका। उनकी मृत्यु के बाद मैंने सोचा यह क्या? तब मैंने ‘यूपी में का बा’ लिखना-गाना शुरू किया। लोग लावारिस मरते हुए दिखे, गंगा में शव बहते दिख रहे थे लेकिन बावजूद इसके रवि किशन योगीजी की तारीफ करते हुए गा रहे थे- कोरोना गईल हार बा।

नेहा की सियासी लोक गायकी बिहार चुनाव से शुरू हुई। ‘बिहार में का बा’ के अलावा सन् 2020 के लॉकडाउन बाद से ही वे लगातार गाती रही हैं। गर्मी के महीनों में लॉकडाउन के बाद बिहारी परिवारों के लंबे पैदल सफर से नेहा बहुत विचलित हुईं। ‘मैं इमोशनल हूं, प्रवासियों की दशा देख में दुख और गुस्से से भर उठी और मैंने उसे अपने गानों से, अपनी भाषा में जाहिर किया’।

नेहा के गानों में मौजूदा हालातों, घटनाओं के हवाले सवाल होते हैं। उसने बेरोजगारी के मुद्दे पर, हाथरस कांड पर, किसानों की बदहाली, लखीमपुर-खीरी कांड, महंगाई, कोविड लहर आदि सब पर गाया और सवाल किया है कि ‘यूपी में का बा’!

नेहा के सोशल मीडिया में लाखों मुरीद हैं। उनके एक-एक गाने को देखने वालों की संख्या लाखों में होती है। अब उन्हें ट्रोल करने वाले कम हैं और एक-एक गाने पर पचास-साठ लाख श्रोताओं की संख्या का वह जादू बना है कि चुनाव से पहले यूपी भाजपा ने उनको जवाब देने के लिए भोजपुरी गायकों की पूरी फौज उतारी लेकिन सब नेहा के आगे फेल। इसलिए पूर्वांचल में लोक मान्यता सी बनी है कि घर-परिवारों में नेहा के कारण लोगों में जीवन की सच्चाई बोलती और वोट का मूड बनवाते हुए है। मगर विरोधी और ट्रोल करने वाले भी कम नहीं। नेहा ने बताया हाल में वे काशी विश्वनाथ मंदिर गई और कुछ लड़कों ने उन्हे पहचान लिया तो कोसना, गालियां देना, चिल्लाना शुरू किया। कुछ पत्थर भी फेंके। हालांकि वे दुपट्टे से अपना चेहरा लपेटे हुए थीं।

हम जब आज अस्सी घाट पर बात कर रहे थे तब कई लड़के-लड़कियों ने उन्हें पहचान लिया और उनके साथ फोटो, सेल्फी की भीड़ हो गई। सभी उनके मुरीद और उनकी लोक गायकी की वाह-वाह करते हुए।

नेहा साड़ी पहन, भोजपुरी घर-परिवार की बतौर प्रतीक मध्यवर्गीय महिला के हाव-भाव में लोकगीत गाती हैं। ऐसा इसलिए कि गांव की महिला सोचती तो होती हैं लेकिन अपनी बात नहीं कह पाती। इसलिए वे उन सबकी आवाज बनें, इसी की कोशिश में वे गाती हैं।

नेहा ने न संगीत सीखा और न संगीत लिखना। स्वयंस्फूर्त अपने आप गाने और लिखने का सिलसिला बना तो अब लोकगायकी शगल भी है और करियर भी। परिवार वाले बीएड करवाना चाहते थे ताकि खाते-पीते परिवार में शादी हो। नेहा ने लोकगायकी के साथ भोजपुरी भाषा की प्रतिष्ठा बनवाने का मिशन बनाया है। नेहा के अनुसार आज भोजपुरी वल्गर और भदेस भाषा के रूप में जानी जाती है जबकि इस लोकभाषा का मूल बहुत सुंदर है, उस रूप में वापिस उसे रिवाइव कराना है इसके लिए नेहा मे भोजपुरी बचाओ फाउंडेशन बनाया है।

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ट्रोल करने वालों के लिए नेहा ने कहा- सामने होते तो मुंह तोड़ देती, पीछे से अटैक करना बहुत आसान होता है।

उन्होंने एक पारंपरिक लोकगीत के जरिए बताया कि सरकार ने लोगों के कितने बड़े बड़े वादे किए थे और मिला कुछ नहीं। उन्होंने ‘नया इंडिया’ के लिए शादियों में गाया जाने वाला पारंपरिक लोक गीत गाया- हथिया-हथिया शोर कईले, गदहों ना ले अईले रे। यानी हाथी-हाथी का शोर किया और गदहा भी नहीं ले आए। नेहा ने कहा- सरकार ने इतना शोर मचाया, इतने वादे किए और मिला क्या- गदहा!

यह नेहा सिंह राठौर हैं, साहसी-बिंदास और बेबाकी से अपनी राय रखने वाली। वे विशुद्ध भोजपुरी में गाती हैं। हां, नेहा को सुर्खियों में रहना भी पसंद है, यह कहते हुए उनकी आंखों में एक अलग चमक थी!

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By श्रुति व्यास

संवाददाता/स्तंभकार/ संपादक नया इंडिया में संवाददता और स्तंभकार। प्रबंध संपादक- www.nayaindia.com राष्ट्रीय और अंतरराष्ट्रीय राजनीति के समसामयिक विषयों पर रिपोर्टिंग और कॉलम लेखन। स्कॉटलेंड की सेंट एंड्रियूज विश्वविधालय में इंटरनेशनल रिलेशन व मेनेजमेंट के अध्ययन के साथ बीबीसी, दिल्ली आदि में वर्क अनुभव ले पत्रकारिता और भारत की राजनीति की राजनीति में दिलचस्पी से समसामयिक विषयों पर लिखना शुरू किया। लोकसभा तथा विधानसभा चुनावों की ग्राउंड रिपोर्टिंग, यूट्यूब तथा सोशल मीडिया के साथ अंग्रेजी वेबसाइट दिप्रिंट, रिडिफ आदि में लेखन योगदान। लिखने का पसंदीदा विषय लोकसभा-विधानसभा चुनावों को कवर करते हुए लोगों के मूड़, उनमें चरचे-चरखे और जमीनी हकीकत को समझना-बूझना।

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