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योगीजी ही वापिस आएंगे

लखनऊ। उत्तर प्रदेश की राजधानी की सियासी आबोहवा में चुनाव की चर्चा, कौन सही और कौन गलत, किसे वोट देना है और किसे नहीं वाली बातें मतदान पूर्व बेबाकी से सुनने को मिलीं। नौजवान-बूढ़े, पुरूष और महिला जिसको भी कुरेदा तो वह बेबाकी से बताता मिला कि चुनाव में क्या होगा। यूपी सचमुच सियासी समझदारी, तेजतर्रार प्रतिक्रिया, जुमलों के चुनावी भौकाल में बिहार के लोगों से पीछे नहीं है। मतदान के पूर्व महानगर के मतदाताओं का मूड, कुछ उत्साह व एक निश्चय बतलाता हुआ था। जिससे भी पूछा वह बोलता मिला- योगी वापिस आएगा! up assembly election Yogi

महानगर के सेंटर हजरतगंज में एक बुकस्टॉल पर मध्य उम्र के दो लोग राजनीति और नेताओं पर बातचीत कर रहे थे। मैंने उनसे समझना चाहा तो अंत में दोनों का निश्चयात्मकता यह जवाब था- ‘योगीजी ही वापिस आएंगे! योगी से ही प्रदेश का भविष्य है’!

“पहले शाम सात बजे के बाद औरतें सड़कों पर नहीं दिखती थीं। अब देखिए सब फ्रीली बिना डर के घूम सकती हैं’’।

पेट्रोल पंप पर तेल भरते कर्मचारी इंतजार कर रहे थे कि कब उनकी ड्यूटी खत्म हो वे वोट डालने जाएं। एक कर्मचारी महेश ने कहा “भगवा आएगा… जैसे हमारा यूनिफॉर्म भगवा हो गया है, उत्तर प्रदेश में फिर भगवा छाएगा’’।

मैंने पूछा- योगीजी का राज क्यों है इतना अच्छा?

“पहले पेट्रोल भरा कर लोग बिना पैसे दिए भाग जाते थे, अब नहीं होता, अब ‘ऑर्डर’ आ गया है”।

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निश्चित ही कानून-व्यवस्था प्रमुख मुद्दा बना है। यह एक ऐसा मसला है, जिसने मतदाताओं के दिमाग को बेचैन बना रखा है। बाकी मुद्दे सब ठीक हैं और लोगों के ध्यान में भी हैं लेकिन ‘सेफ्टी’ की चिंता सर्वोपरि। फिर वह यादवों की दबंगी से सेफ्टी या मुसलमान के खौफ से सुरक्षा का ख्याल हों।

ऐसी बारीकी से यह मुद्दा मतदाताओं के दिमाग में पैठा है कि उसके आगे प्रदेश की राजधानी में न कोविड के वक्त के अनुभव का मुद्दा है और न बेरोजगारी का मसला मतलब रखता है। मगर हां, स्थानीय विधायक-उम्मीदवार के खिलाफ नाराजगी, एंटी इनकम्बैंसी जरूर मतदाताओं को प्रभावित करती मिली। लखनऊ में भाजपा ने सन् 2017 में आठों सीटे जीती थीं। इन सबमें एक बृजेश पाठक के अपवाद को छोड़ भाजपा के सभी उम्मीदवार के खिलाफ लोग कुछ न कुछ बोलते मिले। कोविड काल में बतौर मंत्री बृजेश पाठक की लोगों को मदद और बेबाकी ने मतदाताओं के दिमाग में गहरी छाप बनाई है। तभी उनकी सीट के मुकाबले पर पूछने पर एक वोटर का कहना था “अरे, उन्होंने संकट के समय लखनऊ के लोगों को बहुत मदद की। वे किसी भी सीट से चुनाव लड़ते चुनाव जीतते”।

मतदाता वोट किसके नाम पर दे रहे हैं? सन् 2017 में मोदी के नाम पर वोट पड़ा था तो इस बार भी क्या उनके नाम पर वोट है या डबल इंजन की सरकार पर?

लोगों के जवाब में शब्द “योगी” का है। योगी के नाम पर ही लोग वोट का फैसला किए हुए हैं। यह महानगर लखनऊ की ही बात नहीं है, बल्कि लखनऊ से आगे पूर्वांचल की और जाते हुए भी लोग योगी का नाम लेते मिले। लोकल विधायक-उम्मीदवार का मतलब नहीं। न ही नरेंद्र मोदी का लोग नाम लेते हुए हैं। लोगों के दिल-दिमाग में योगी का नाम मंत्र की तरह पैठा है।

तो दूसरा नाम अखिलेश यादव का। महानगर लखनऊ से बाहर निकलते-निकलते योगी बनाम अखिलेश में कड़ा मुकाबला सुनाई देने लगा। शोर और भौकाल योगी, योगी का मगर उसके साथ एक मौन अंडरकरंट भी। एक मौन गुस्सा और परिवर्तन की ललक। इसे योगी का नाम लेते हुए उनके वे समर्थक भी अपने इस वाक्य से बताते है कि– “पर अखिलेश कोई विकल्प नहीं”। बदलाव की जरूरत और उसका गुस्सा लिए चेहरे हैं मगर लखनऊ के इर्दगिर्द भी छिटपुट।

मैं लखनऊ में सवेरे मतदान केंद्रों की कतार देख जौनपुर की और बढ़ी तो मुझे पिछले दिन की सुनी बातें कुछ समझ आईं। मगर यह क्या? पूर्वांचल पहुंचते-पहुंचते शाम पांच बजे तक के मतदान आंकड़े देखे तो लखनऊ में 55 प्रतिशत ही मतदान हुआ! क्यों? चौथे चरण में कुल मतदान यदि 57.5 प्रतिशत हुआ है तो योगी के जादू की राजधानी लखनऊ में वोट कम क्यों? जबकि योगी विरोध के भौकाल वाले पीलीभीत, लखीमपुर खीरी जिलों में 62 प्रतिशत मतदान की खबर है। up assembly election Yogi

लखनऊ से श्रुति व्यास

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By श्रुति व्यास

संवाददाता/स्तंभकार/ संपादक नया इंडिया में संवाददता और स्तंभकार। प्रबंध संपादक- www.nayaindia.com राष्ट्रीय और अंतरराष्ट्रीय राजनीति के समसामयिक विषयों पर रिपोर्टिंग और कॉलम लेखन। स्कॉटलेंड की सेंट एंड्रियूज विश्वविधालय में इंटरनेशनल रिलेशन व मेनेजमेंट के अध्ययन के साथ बीबीसी, दिल्ली आदि में वर्क अनुभव ले पत्रकारिता और भारत की राजनीति की राजनीति में दिलचस्पी से समसामयिक विषयों पर लिखना शुरू किया। लोकसभा तथा विधानसभा चुनावों की ग्राउंड रिपोर्टिंग, यूट्यूब तथा सोशल मीडिया के साथ अंग्रेजी वेबसाइट दिप्रिंट, रिडिफ आदि में लेखन योगदान। लिखने का पसंदीदा विषय लोकसभा-विधानसभा चुनावों को कवर करते हुए लोगों के मूड़, उनमें चरचे-चरखे और जमीनी हकीकत को समझना-बूझना।

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