जहाँ तक हालिया वर्षों में हुई आर्थिक तरक्की का सवाल है, बांग्लादेश की कोई सानी नहीं है। हालिया विकास यात्रा अद्भुत और बेहतरीन है। सन् 1971 में तीसरे भारत-पाकिस्तान युद्ध से जन्में बांग्लादेश को हैनरी किसिंजर ने “द बास्केट केस” (एकदम घटिया) बताया था। बांग्लादेश के बारे में तब माना गया कि वह एक नाकाम मुल्क बनकर रह जाएगा। मगर इस धारणा को झुठलाते हुए बांग्लादेश ने एक धर्मनिरपेक्ष लोकतंत्र, कम संसाधनों के साथ सामाजिक विकास के मॉडल और दक्षिण एशिया का सबसे तेज आर्थिक विकास दर वाला देश बनकर दिखाया है।
इस शानदार सफ़र का श्रेय देश की लौह महिला मानी जाने वाली शेख हसीना को है। उनके दो दशकों के राज में 17 करोड़ की आबादी वाले इस देश ने 7 प्रतिशत प्रति वर्ष की जीडीपी वृद्धि दर के साथ गरीबी हटाने की दिशा में देखने लायक प्रगति की। पचहत्तर साल की शेख हसीना के नेतृत्व में उनकी आवामी लीग पार्टी ने लगातार तीन चुनाव जीते है। उन्हें पूरा भरोसा है कि 2024 के शुरू में होने वाले अगले चुनाव में भी उनकी जीत होगी।
लेकिन बांग्लादेश की जनता का मूड कुछ और ही इशारा कर रहा है। पर्दे के पीछे शेख हसीना राजनैतिक जमावट का ऐसा अभियान चला रही हैं जिसका लक्ष्य विपक्षी नेताओं, विश्लेषकों और कार्यकर्ताओं के अनुसार, आने वाले चुनाव में इस दक्षिण एशियाई गणतंत्र का एक पार्टी वाले देश में कनवर्ट होना है। अपने 14 साल के कार्यकाल में हसीना ने अपने वफादारों को नियुक्त करके देश की प्रमुख संस्थाओं जैसे पुलिस, सेना और अदालतों पर अपना कंट्रोल स्थापित कर लिया है। मैसेज एकदम साफ़ है: जो उनका विरोध करेगा उसके नतीजे अच्छे नहीं होंगे। ऐसा लगता है कि शेख हसीना को उनका विरोध करने वाले और उनसे बेहतर नजर आने वाले बर्दाश्त नहीं होते। इसलिए विभिन्न संस्थाओं में हस्तक्षेप कर उन्हें इस प्रकार चलाया जा रहा है कि असहमति को कुचल दिया जाए। उन्होंने अपने राजनैतिक विरोधियों के खिलाफ बदले की कार्यवाही की है। वे किसी को भी नहीं बख्शतीं। यहां तक कि 2006 के नोबेल पुरस्कार विजेता मोहमम्द यूनुस को भी नहीं, जिनके ज़मीनी स्तर पर विकास कार्यों से देश मज़बूत बना और आर्थिक, सामाजिक व स्वास्थ्य के क्षेत्रों में उसकी स्थिति बेहतर हुई। हसीना अपने चुनावी भाषणों में यूनुस पर तीखे हमले कर रही हैं। उन्होंने युनुस को भ्रष्ट, गरीबों का खून चूसने वाला और राष्ट्र-विरोधी बताया है। कहा है कि वे बंगाल की खाड़ी पर अमेरिका का नियंत्रण स्थापित करने में मदद कर रहे हैं।
इस बीच विपक्षी बीएनपी – बांग्लादेश नेशनलिस्ट पार्टी – के 800 से अधिक कार्यकर्ताओं को गिरफ्तार कर लिया गया है। विपक्षी दल का दावा है कि सन् 2009 से लेकर अब तक उसके नेताओं और समर्थकों के खिलाफ 40 लाख से अधिक मामले दर्ज किए गए हैं। लगभग प्रतिदिन विपक्षी दलों के नेताओं, सदस्यों और समर्थकों को अदालतों में हाजिरी लगानी होती है। उन्हें अस्पष्ट आरोपों और झूठे सबूतों का सामना करना पड़ता है। ह्यूमन राईट्स वॉच ने इसे विपक्ष पर ‘सुनियोजित हमला’ बताया है। बीएनपी की एक रैली में उसके कार्यकर्ताओं को आंसू गैस और रबर की गोलियों का सामना करना पड़ा।
शेख हसीना सत्ता पर अपना हक समझती हैं। उनका अरमान मरते दम तक गद्दी पर काबिज़ रहने का है। उनके पिता शेख मुजीबुर रहमान, जो बांग्लादेश के पहले प्रधानमंत्री थे, अपने प्रायः सभी नजदीकी रिश्तेदारों के साथ सन् 1975 में हुए सैन्य तख्तापलट में मारे गए थे। एक साक्षात्कार में जब हसीना से न्यायपालिका के जरिए विपक्ष को प्रताड़ित किए जाने के आरोपों के बारे में पूछा गया तो उन्होंने कहा कि वे जो कर रही हैं “वह राजनीतिक नहीं है”।यह कहते हुए उन्होंने अपने सहायक को भेजकर एक फोटो एलबम बुलवाया। इस एलबम में आगजनी, बम विस्फोटों और अन्य हिंसक घटनाओं में मारे गए लोगों की क्षत-विक्षत लाशों की भयावह तस्वीरें थीं। इन तस्वीरों की तरफ इशारा करते हुए उन्होंने उन्हें बीएनपी की निर्दयता का नमूना बताया। उन्होंने कहा, “उनके (बीएनपी) साथ जो हो रहा है वह उनके पापों का नतीजा है। शुरुआत उन्होंने की है”।उन्होंने दावा किया कि जब बीएनपी सत्ता में थी तब उसने उनकी पार्टी के साथ ऐसा ही सलूक किया था। उसके हजारों समर्थकों की हत्या की और उन्हें जेलों में ठूंसा।
बांग्लादेश में दो महिलाओें का टकराव जारी है -शेख हसीना और बीएनपी की नेता 77 वर्षीय खालिदा जिया जो देश की प्रथम महिला प्रधानमंत्री हैं। दोनों महिलाओं ने अपने नजदीकी लोगों को तख्तापलट और हत्याकांडों में खोया, और तबसे सत्ता हासिल करने की इन दोनों की लड़ाई के इर्दगिर्द ही बांग्लादेश का लोकतंत्र सिमट गया है। शेख हसीना का दावा है कि जिया के राज की वजह से ही देश में सैन्य तानाशाही आई, वहीं बीएनपी के नेताओं का कहना है कि उन्होंने ही देश में बहुदलीय लोकतंत्र को फिर से स्थापित किया जबकि हसीना के पिता ने देश में एक दलीय प्रणाली लागू करने की घोषणा कर दी थी।
इस सारी तू-तू मैं-मैं और जैसे को तैसा के बीच राजनैतिक उथल-पुथल के कारण बांग्लादेश की विकास यात्रा में रूकावट आ रही है। महामारी और यूक्रेन-रूस युद्ध के कारण टेक्सटाइल उद्योग और विदेशों में काम कर रहे बांग्लादेशियां द्वारा भेजे जाने वाले पैसे पर काफी हद तक निर्भर बांग्लादेश की अर्थव्यवस्था डावांडोल है। ईधन और खाद्यान्न के आयात पर होने वाला खर्च बढ़ता जा रहा है। देश में विदेशी मुद्रा की कमी होती जा रही है, जिसके चलते इस साल जनवरी में बांग्लादेश को अंतर्राष्ट्रीय मुद्रा कोष से 4.7 अरब डालर का क़र्ज़ लेना पड़ा। यदि शेख हसीना स्वतंत्र चुनाव होने देती हैं तो भी शायद वे जीत जाएं क्योंकि विपक्ष बहुत कमजोर हो गया है। लेकिन वे यह खतरा मोल नहीं लेंगीं क्योंकि उन्हें नहीं लगता कि मनमानी करने में कोई समस्या है। जहां तक पश्चिमी देशों और अन्यों का सवाल है, उनमें से अधिकांश उनके दमनकारी रवैये पर चुप्पी साधे हुए हैं। इसका एक कारण तो यह है की चीन उन्हें साधने की जुगत में है। लेकिन यदि मोहम्मद युनुस – जिन्हें पश्चिम संत का दर्जा देता है – को गिरफ्तार किया जाता है तो पूरी दुनिया में उनकी थू-थू होना तय है। फिलहाल बांग्लादेश का लोकतंत्र छिन्न-भिन्न है। वह तेजी से आगे बढ़ रहा था। मगर अब उसकी दिशा पलट गई है और वह किसिंजर की भविष्यवाणी के अनुसार ‘बास्केट केस’ बनने की ओर अग्रसर है। (कॉपी: अमरीश हरदेनिया)