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नेतन्याहू से बरबादी की और इजराइल!

रणनीति का सवाल

इजराइल के प्रधानमंत्री बेंजामिन नेतन्याहू जीत गए हैं। पर यह एक ऐसी जीत है जो उन्हें सत्ता के नज़दीक तो बनाए रखेगी लेकिन उन्हें बाकी सब से – जनता से, समर्थकों से, साथियों से – दूर कर देगी।

चौबीस जुलाई को इजराइल की संसद नेसेट ने देश के सुप्रीम कोर्ट की ताकत को कम करने वाले कानूनों की सीरीज का पहला कानून पास किया। इस दौरान संसद के बाहर लोग विरोध प्रदर्शन करते रहे। संसद में विपक्षी सदस्य चिल्ला-चिल्लाकर अपशब्द बोलते रहे।फिर वोटिंग के समय वाकआउट किया। इस सबके बीच प्रधानमंत्री बेंजामिन नेतन्याहू, जिनका दिल मशीन की मदद से धड़क रहा है, शांत बैठे रहे। उनके मंत्रिमंडलीय सहयोगी चीख-चीखकर अपनी बात कहते रहे मानो वे अपने बॉस की मौजूदगी से बेखबर हों।

‘तर्कसंगतता’ के आधार पर सरकारी फैसलों को रद्द करने के अदालत के अधिकार को समाप्त करने वाला यह कानून 64-0 के बहुमत से निर्विरोध पारित हो गया।

इजराइल में पिछले सात माह से अनिश्चितता का माहौल था। नेतन्याहू ने उम्मीद जगाई थी कि वे सबकी सहमति से संवैधानिक सुधार लाने का प्रयास करेंगे। लेकिन उम्मीदों पर पानी फिर गया। जनभावनाओं के लिए सम्मान पर सत्ता की भूख भारी पड़ी।

सोमवार की रात येरूशलम में संसद भवन के चारों ओर की सड़कों पर करीब 20,000 प्रदर्शनकारियों की भीड़ जमा थी जो नीले और सफेद झंडे लहरा रही थी। जैसे ही मतदान के नतीजे की खबर फैली, प्रदर्शनकारियों ने चीखना-चिल्लाना और ‘‘हम कभी हार नहीं मानेंगे”  के नारे लगाना शुरू कर दिया। दीवारों और चाहरदीवारों पर स्टिकर लगे थे जिन पर लिखा था “हम तानाशाह का हुक्म नहीं मानेंगे” “लोकतंत्र या बगावत”  और “इजराइल को नेतन्याहू से बचाओ”।इजरायली लेखक और मानवता के इतिहास में दिलचस्पी रखने वाले युवाल नोआ हरारी का विचार है कि इसका नतीजा भयावह और घातक होगा। वे कहते हैं, “मुमकिन है हम इजराइल में यहूदी श्रेष्ठतावादी तानाशाही देखें, जो न सिर्फ इजराइल के नागरिकों के लिए एक खौफनाक स्थिति होगी  बल्कि फिलिस्तीनियों, यहूदी परंपराओं और संभवतः संपूर्ण मध्यपूर्व  के लिए भी भयावह होगा।”

लेकिन इस सबसे बेफिक्र प्रधानमंत्री नेतन्याहू ने मतदान के कुछ घंटे बाद प्राईम टाईम पर टेलिविजन पर भाषण देते हुए सभी आशंकाओं को बेबुनियाद बताते हुए कहा, ‘‘इजराइल में सभी के वैयक्तिक अधिकारों की रक्षा पहले की तरह होती रहेगी। इजराइल धर्म आधारित राष्ट्र नहीं बनेगा। स्वतंत्र न्यायपालिका कायम रहेगी”।लेकिन, समाज के एक तबके का मानना है कि नेतन्याहू के नेतृत्व वाले कट्टर धार्मिक एवं अति राष्ट्रवादी गठबंधन के राज में देश धार्मिक निरंकुश शासन की ओर बढ़ेगा।

देश की स्थिरता को लेकर भी अब चिंता है। इजरायली सेना के हजारों रिजर्व अधिकारियों ने घोषणा की है कि वे ऐच्छिक सेवा के लिए उपलब्ध नहीं रहेंगे। इसके अलावा सामाजिक उथल-पुथल भी हो रही है। डॉक्टर हड़ताल पर चले गए हैं। मजदूर नेताओं ने आम हड़ताल की धमकी दी है। मॉल और दुकानें चलाने वाले एकजुटता दिखाने के लिए अपने प्रतिष्ठानों पर ताला डाले हुए हैं। पहले से ही कई कारोबारी अपना व्यवसाय इजराइल के बाहर ले जा चुके हैं या उसे बंद कर चुके हैं। और जैसे-जैसे अराजकता के हालात गंभीर होते जाएंगे, उथलपुथल बढ़ेगी और सड़कों पर असहमति दिखाते लोगों की संख्या में बढ़ोत्तरी होती जाएगी। टकराव, गिरफ्तारियों, हिंसा, शोरशराबा सब बढ़ेगा।

इसके अलावा अंतर्राष्ट्रीय संबंध भी बिग़ड़ेंगे।  इजराइल के सबसे नजदीकी सहयोगी  अमेरिका ने संसद के निर्णय को ‘दुर्भाग्यपूर्ण’ बताया है। इससे राष्ट्रपति बाइडन के नेतन्याहू को अमेरिका आने के निमंत्रण को लेकर आशंका उत्पन्न हो गई है। अमेरिका में यहूदी समूहों ने भी इस मतदान की आलोचना की है। इसे लोकतंत्र के लिए खतरा बताते हुए चेतावनी दी है कि इससे इजराइल और अमरीकी यहूदियों के संबंधों पर बुरा असर पड़ सकता है। फिलिस्तीनी इस बात से चिंतित हैं कि वेस्ट बैंक में इजरायली बस्तियों का इलाका आक्रामक ढंग से बढ़ाया जाएगा, जिसकी कई मामलों में सर्वोच्च न्यायालय ने खिलाफत की थी। इसके अलावा इजराइल में रह रहे अल्पसंख्यक अरबों में भी भय बढ़ रहा हैं।

संदेह नहीं है कि नेतन्याहू ने देश के भीतर और अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर इजराइल की बेहतरी और उसकी छवि सुधारने में महत्वपूर्ण भूमिका अदा की है। वे स्वयं को हर राजनीतिक घटनाक्रम के केन्द्र में रखने में सफल रहे हैं, कई बार जिसका सन्देश यह था कि इजराइल और तबाही के बीच वे अकेले खड़े हैं। लेकिन कल के घटनाक्रम से वे इजराइल को तबाही के कगार पर ले आए हैं। बिगड़ती सेहत से जूझ रहे 73 वर्षीय नेतन्याहू नेसेट आने के पहले पेसमेकर लगवाने के लिए अस्पताल में थे।

वे अपने गठबंधन सहयोगियों को मतदान टालने के लिए राजी नहीं कर सके। इससे यह संकेत मिलता है कि उनका प्रभाव कम हो चला है और वे अपनी राजनीतिक विश्वसनीयता खो चुके हैं। कहना मुश्किल है कि वे गठबंधन के सबसे घोर राष्ट्रवादी और धार्मिक कट्टरपंथी दलों को न्यायिक सुधारों के ज़रिये और अन्य तरीकों से उनका राजनैतिक एजेंडा आगे बढ़ाने से रोक सकेंगे। आखिर उनके खिलाफ भ्रष्टाचार के मामले भी चल रहे हैं।

इजराइल में इस साल ठंड तीखी थी और वसंत, नीरस। प्रदर्शकारी अपनी बात पर जमे हुए हैं।  नेतन्याहू के गठबंधन साथी भी दृढ़ हैं। ऐसे में दोनों के बीच जबरदस्त टकराव तय है जो इजराइल में गर्मी के मौसम को और ज्यादा गर्म और तूफानी बनाएगा। जहां तक प्रधानमंत्री नेतन्याहू का प्रश्न है, वे अभी अपनी सत्ता कायम रखने में भले ही कामयाब रहे हों उन्हें आज के बाद से इजराइल में तबाही लाने के लिए याद किया जाएगा। देश के इतिहास में एक ऐसा नया दौर प्रारंभ हो गया है, जो खूनखराबे से भरा और त्रासद हो सकता है। (कॉपी: अमरीश हरदेनिया)

By श्रुति व्यास

संवाददाता/स्तंभकार/ संपादक नया इंडिया में संवाददता और स्तंभकार। प्रबंध संपादक- www.nayaindia.com राष्ट्रीय और अंतरराष्ट्रीय राजनीति के समसामयिक विषयों पर रिपोर्टिंग और कॉलम लेखन। स्कॉटलेंड की सेंट एंड्रियूज विश्वविधालय में इंटरनेशनल रिलेशन व मेनेजमेंट के अध्ययन के साथ बीबीसी, दिल्ली आदि में वर्क अनुभव ले पत्रकारिता और भारत की राजनीति की राजनीति में दिलचस्पी से समसामयिक विषयों पर लिखना शुरू किया। लोकसभा तथा विधानसभा चुनावों की ग्राउंड रिपोर्टिंग, यूट्यूब तथा सोशल मीडिया के साथ अंग्रेजी वेबसाइट दिप्रिंट, रिडिफ आदि में लेखन योगदान। लिखने का पसंदीदा विषय लोकसभा-विधानसभा चुनावों को कवर करते हुए लोगों के मूड़, उनमें चरचे-चरखे और जमीनी हकीकत को समझना-बूझना।

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